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अयोध्या में साकेत महायज्ञ (प्रथम) – इतिहास के झरोखे से

जय गुरुदेव
जय गुरुदेव
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भारत में आपातकाल लगने के पहले जार्ज फर्नान्डीस जी अजमेर में बाबा जी से मिले। बातचीत के दौरान उन्होंने कांग्रेस सत्ता का विकल्प पूछा था जिस पर बाबा जी ने कहा था कि एकमात्र विकल्प यही है कि सारी विरोधी पार्टियां एक हो जाऐं। यही बात बाबा जी मंच से बराबर कहते भी थे। बाबा जी ने यह भी कहा कि एक समय आऐगा जबकि सभी विरोधी दलों को एक होना ही पड़ेगा। 23 जनवरी 1975 कानपुर के फूलबाग के मैदान में जब बाबा जी को बदनाम करने का भयंकर षडयंत्र किया गया था तो बाबा जी ने 30 लाख जनसमुदाय के समक्ष कहा था कि ‘‘भारत की जनता बाबा जी की मुट्ठी मंे है, जिसे बाबा जी चाहेंगे वही जीतेगा।’’
       आपातकाल समाप्त होने के बाद बाबा जी ने अपने संदेश में कहा कि मानव शरीर बड़े भाग्य से मिला है। इसका उद्देश्य यह था कि आप अपनी आत्मा की रक्षा करें और इसे नरकों और चौरासी लाख योनियों में जाने से बचायें। फिर भजन,ध्यान करके प्रभु को प्राप्त करें जिससे जन्म-मरण का चक्कर समाप्त हो जाऐ। लेकिन अब खूब खाओ, मौज करो और भरो बस यही उद्देश्य रह गया। मेरी बातें बुद्धिजीवी नहीं मानते थे पर मैं उनसे कहता था कि कागज पर नोट कर लो और जब हो जाऐ तब मान लेना।
       यह तो आप जानते हैं कि मैं जेल में एकान्त में रहा तो कुछ विचार किया, कुछ अनुभव किया होगा। मैं राजनीतिक नहीं हूं लेकिन मैं राजनीति को जानता हूं। उसको पढ़ा सकता हूं और उस पर चला भी सकता हूं।
       जेल से निकलने के बाद अयोध्या में सरयू नदी के पावन तट पर साकेत महायज्ञ कराया और घोषणा की थी कि बाबा जी का यह यज्ञ यदि सफल हो गया तो सारे देश में समान रूप से वृष्टि होगी और समान रूप से वृष्टि हो रही है। चारों तरफ अच्छी हरियाली दिखाई दे रही है जो अच्छी पैदावार की प्रतीक है। 28 मई 1977 को कलश विसर्जन के समय पूर्णाहुति के दिन कुंवारी लड़कियां सिर पर घड़े लेकर सरयू जी में चलती चली गईं और सरयू जी ने बराबर रास्ता दे दिया। जहां बीस-बीस, तीस-तीस फीट बल्लियां लगती थीं वहां बहुत थोड़ा पानी रह गया। यह लोगों ने चश्मदीद अपनी आंखों से देखा अपितु ऐसे चमत्कार तो भारत में भगवान कृष्ण के समय में भी होते आऐ। गोपिकाऐं जब दुर्वासा ऋषि को यमुना उस पार फलाहार कराने जाना चाहती थीं तो कृष्ण से कहा कि भगवान कैसे जाऐं, यमुना बहुत बढ़ी हुई हैं। कृष्ण ने कहाकि यमुना मैया से प्रार्थना करना और कहना कि हमें दुर्वासा ऋषि के लिए भोजन ले जाना है तो यमुना मैया रास्ता दे देंगी और यमुना मैया ने रास्ता दे दिया। ऐसे चमत्कार तो बराबर होते आए हैं।
       तो आप सतयुग आगवन साकेत महायज्ञ में अहमदाबाद में आयें। वहां के हाल को स्वयं अपनी आंखों से देखें। मैं अंग्रेजों के समय में भी था और आज भीहूं। पहले भी कष्ट उठाया और आज भी उठा रहा हूं। आप सबको जगाना चाहता हूं, परमात्मा की तरफ ले जाना चाहता हूं और उसके पास तक पहुंचाना चाहता हूं जिससे आपका यह मानव जीवन सफल हो जाऐ।
       मैं कानपुर के फूलबाग में 23 जनवरी 1975 को निमंत्रण पर गया था और वहां 45 मिनट तक बोला। मैं इतनी स्पीड से बोला कि मैंने अपने चार घण्टे की स्पीच को 45 मिनट में पूरा किया और उसका एक भी शब्द अखबारों में नहीं आया।  लगभग 30 लाख लोगों की भीड़ थी। गलियां भी खचाखच भर गर्ह थीं। मैंने कभी अपना  नाम नहीं बदला। मैं जयगुरूदेव नाम का प्रचार करता हूं। मेरा नाम तुलसीदास है। भूतपूर्व शासन जो समाप्त हो गया उसने बाबा जी को बदनाम करने के लिए ऐसा षडयंत्र किया था। मुझसे आपने कभी नहीं पूछा। आप मुझसे पूछते तो मैं आपको जवाब देता। आपको यह भ्रम कैसे हुआ ?
       समय का परिवर्तन आप अच्छी तरह समझ लें। सन् 81 खत्म होता है 31 मार्च 82 को। लोग मेरी बात को समझ नहीं पाते हैं, भ्रमित हो जाते हैं। इस बीच कितने करोड़ आदमी धर्म और सदाचार के प्रचार में लग जाऐंगे। तो कैसे देश में सदाचार नहीं आएगा ? सतयुग के आने का स्वागत और तैयारियां सभी को करना चाहिए।
       अगर आपने जनता पार्टी को समय काम करने के लिए दे दिया तो वो आपकी ऐसी सेवा करेगी जिससे आपकी बुद्धि चकरा जाएगी। आप सब्र रखिए, काम करने दीजिए। बहुत कम समय उन्हें मिला है। ये विद्वान भी हैं, ऐसी कोई बात नहीं कि ये विद्वान नहीं हैं। आपको धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए, उन्हें काम करने दीजिए। अगर आपने बाबा जी की अपील पर ध्यान नहीं दिया और काम नहीं करने दिया तो आपको मालूम है कि बाबा जी ने सन् 70 से 81 के बीच के लिए के लिए क्या कहा है। मेरी बहुत ही थोड़ी सी बातें चुपचाप सुन लें। आपकी समझ में आए तो उससे काम ले लीजिऐगा नहीं तो छोड़ दीजिऐगा।
       धर्म के संदेश की इस समय बहुत आवश्यकता है। मुनष्य यदि धार्मिक नहीं तो उसका सारा जीवन व्यर्थ, उसके जीवन का कोई लाभ नहीं। जिस जिन्दगी को धर्म से अलग करके बिताया जाता है वह बेकार है। इस तरह से तो पशु भी खा लेते हैं, सो लेते हैं, परिवार बसा लेते हैं और मर जाते हैं। पर मनुष्य जीवन का असली सार तब मानव पाता है जब धर्म को अपनाता है। धर्म से दूर होने पर बहुत सी बुराइयां आ जाती हैं। अच्छे-बुरे कर्मों की पहचान ऋषि-मुनियों, महात्माओं ने हमेशा बताया और धर्म पुस्तकों में लिखा। अच्छे कामों की तरफ आपको ले जाने का संदेश दिया गया लेकिन अपनी अज्ञानतावश आज मानव मानव अपने कर्मों का दुरूपयोग कर रहा है, इअका परिणाम यह हुआ कि इन अनमोल मानव शरीर में रहते हुए भी अनेक प्रकार के दुख, द्वन्द, लड़ाई-झगड़े और तरह-तरह की बीमारियां आ गई। आज से 30 वर्ष पहले इतनी बीमारियां नहीं थीं, इतने अस्पताल नहीं थे जितने इस समय हो गए। आपको आजादी मिली थी जिसका मतलब आपने नहीं समझा इसीलिए आज की अवस्था आपके सामने आई। आजादी का मतलब था कि लोग अच्छे काम करें, अच्छे आचार-विचार रखें, चरित्र और सदाचार को लायें, एक-दूसरे की परस्पर सेवा करें, गुरूओं-आचार्याें और बडे लोगों की बात मानें, लोक-परलोक की शिक्षा ग्रहण करें। दुनियां में भी सुख-चैन मिलता और मरने के बाद आत्मा परमगति को प्राप्त करती। लेकिन आपने आजादी का अर्थ ही उल्टा कर दिया। आपने समझ लिया कि आप आजाद हो गए तो अब किसी बन्धन की आवश्यकता नहीं है। धर्म का बन्धन, कर्म का बन्धन, परमात्मा का बन्धन, समाज का बन्धन और परिवार का बन्धन, बड़े और छोटे के बन्घन को आपने बिलकुल तोड़ दिया। अब कोई किसी की बात सुनने और मानने को तैयार नहीं। उसका परिणाम यह हुआ कि जन-जन दुखी हो गया, देश में तकलीफ आई, समाज में तकलीफ आई, परिवार में तकलीफ आई और सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई।
       सबसे बड़ी बात तो यह है कि अच्छे काम के लिए जब इच्छा हाती है तो किसी अच्छे व्यक्ति के सहयोग की जरूरत पड़ती है। जब इन्सान चारों तरफ से  अशान्ति से घिर जाता है तब वह शान्ति चाहता है और इसके लिए उसे ऐसे व्यक्ति के सहयोग की जरूरत होती है जो अच्छा हो, अच्छी बातें सिखा सके, अच्छी सेवा-भाव और सद्भावना भर सके। यह काम फकीर और महात्मा करते थे।
       आगे भारत विश्व का गुरू होगा। भारतवर्ष में विज्ञान का इतना बड़ा विकास होगा कि सारी दुनियां का भौतिक विकास उसके आगे छोटा हो जाएगा। दुनियां के बड़े-बड़े लोग इस प्रगति को देखकर दांतों तले उंगली दबाऐंगे। ऐसे-ऐसे साधनों का निर्माण होगा कि एक घण्टे में लोग अमेरिका जाकर एक घण्टे में भारत लौट आऐंगे। भगवान के नक्शें में कुछ देशों का अस्तित्व ही नहीं है। उसके नक्शे में जो है वही होगा। भारत के आप-पास के छोटे-छोट देश स्वेच्छा से भारत में मिल जाऐंगे। कुदरत का ऐसा करिश्मा होगा कि बहुमूल्य निधियों, हीरे-जवाहरातों  का खजाना भारत को प्राप्त होगा। जब पांचों देवता प्रसन्न हो जाऐंगे तो कुछ भी असम्भव नहीं है, सब कुछ संभव है। महात्माओं को आप हाथ पकड़ा दीजिए, उनको अच्छी तरह पकड़ लेने दीजिए तब आपके सौभाग्य का उदय  होगा। आगे एक बहुत बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है जिसमें राजनीति धर्म से जुडी होगी फिर मजबूर होकर लोगों को भगवान की तरफ चलना होगा।
       प्रेमियों तुम अपनी साधना में लगे रहो। जो बात सत्य हाती है अपनी जगह पर रहती है। कष्ट जरूर भक्तों को होता है पर विजय सत्य की होती है।

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