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इतिहास के झरोखे से – त्रिवेणी संगम पर आध्यात्मिक महाकुम्भ

जय गुरुदेव
जय गुरुदेव
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इलाइबाद में त्रिवेणी संगम पर 25 फरवरी से 6 मार्च 1997 तक आध्यात्मिक महामानव कुम्भ लगा जिसमें कई लाख श्रद्धालुओं ने भाग लिया। बाबा जयगुरूदेव जी महाराज ने कहा कि यह प्रेम का समाज है। तुम्हारा ल़क्ष्य अपने घर पहुंचने का है। जीवात्माओं का अपना घर सतलोक, सचखण्ड है जहां से नीचे उतरकर वे काल के देश में आई हैं। काल भगवान ने उन्हें कर्मों का कानून बनाकर फंसा लिया। तुम अपने लक्ष्य पर रहो। अगर बीच में किसी झगड़े-झंझट में फंस जाओगे तो लक्ष्य से दूर हो जाओगेे। साधन-भजन छूट जाऐगा। इसलिए होशियारी और बुद्धिमानी के साथ पचड़ों से दूर रहकर अपने लक्ष्य पर बढ़ते चलो। इस मनुष्य शरीर रूपी मन्दिर में जीवात्मा अपने धाम सतलोक से उतरकर शब्द के आधार पर नीचे लाई गई और दोनों आंखों के मध्य भाग में बैठा दी गई। शब्द के ही आधार पर वो लाई गई और दूसरा कोई रास्ता उसके आने का नहीं है। इससे यह मालूम होता है कि यह जमीन उसकी नहीं, यह शरीर की जमीन है। निरंजन भगवान ने जब से कर्मों का कानून बनाया तब से जीवात्मा पर कर्मों का आवरण आने लगा। अच्छा किया तो भी, बुरा किया तो भी। घीरे-धीरे अच्छे-बुरे का आवरण इतना मोटा होता गया कि इसने चट्टान की तरह जीवात्मा को घेर लिया। अब जीवात्मा को अपना होश न रहा। जैसे मछली अथाह सागर में रहना चाहती है वैसे ही जीवात्माऐं जो मालिक के दरबार से नीचे उतरकर यहां आईं हैं अपने उसी अथाह भण्डार में जाना चाहती हैं। वहां ठण्डक है, शान्ति है, आनन्द है। जैसे यहां कहीं बर्फ पहाड़ों पर जमती है, गिरती है उसकी ठंडक का असर चारों तरफ होता है इसी तरह से ये जीवात्माऐं उस आनन्द के सागर से आई हुई हैं अपने उस आनन्द को ढंूढती हैं पर वो आनन्द उन्हें नहीं मिलता। आनन्द मिलेगा नाम से, शब्द से, संगीत से जो हर क्षण इस मनुष्य मन्दिर में हो रहा है। नाम मिलेगा महात्माओं से। संतों-फकीरों के पास जाओगे तो नाम की डोरी तुम्हें पकड़ा देंगे तब तुम्हें तुम्हारा सच्चा आनन्द, सच्चा सुख मिलेगा जिसके लिए तुम इस दुनियां में भटक रहे हो। इस जीवात्मा का हृदय वो आकाश है जिसे चिदाकाश कहते हैं। इस पृथ्वी से वो कई गुना बड़ा है। इसमें तुम्हारे कर्मों का कूड़ा-कचरा जाम हो गया है। उसी गन्दगी ने तुम्हारी आत्मा को ढक लिया है। वो गन्दगी हटे तो तुम्हें प्रकाश दिखाई दे, आवाज सुनाई पड़े, आकाशवाणी सुनाई पड़े। ये गन्दगी हटेगी सत्संग से, महापुरूषों की कृपा से, नाम की, शब्द की साधना से, सुमिरन, न, भजन से। जब तुम साधना में लगोगे तब शील, क्षमा, विरह, विवेक का झाड़ू हाथ में लोगे तब कर्मों की सफाई होगी, तब तुम्हारे अन्तःकरण पर जमा कूड़ा-कचरा साफ होगा। अभी तो तुम डूबे हुए हो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में। इस सुरत (जीवात्मा) का हृदय बड़ा विशाल है। जिसकी जीवात्मा जाग जाती है तो परमात्मा का दर्शन करती है। ऐसे फकीर, ऐसे संत सबको अपना मानते हैं। ये सत्संग है ये आध्यात्मवाद है। महात्माओं का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। अगर ये मिल गया तो तुम्हारा काम बनेगा नहीं तो परेशानी ही परेशानी है। अज्ञान में रोते रहोगे। अभी भी रो रहे हो। किसी आने-जाने वाले के साथ चले जाओ जो उसके दरबार में आता-जाता है तो तुम्हें कोई नहीं रोकेगा। अकेले जाओगे तो सब तुम्हें रोक लेंगे। महात्माओं के पास सब युक्ति है। संसारी बात इतनी ही सुनाई जाती है जितनी की जरूरत है ताकि तुम उसमें से निकल सको। आप उसमें डूबे हुए हो। अगर उसी में डूबे रहोगे तो आपको मिलेगा क्या ? अब लोगों की चाह पैदा हो रही है ऐसा देखने में आ रहा है। जो आता है पूरा सुनकर ही जाता है। करोगे क्या ? चारों तरफ से चाबुक तुम पर पड़ रही है। जाओगे किधर ? सुमति सबसे जरूरी है और बिना महात्माओं के सुमति आएगी नहीं। कुमति में ही तो चारों तरफ बैर, विग्रह, लड़ाई-झगड़े होने लगे। सत्संग सुनो तो सत्संगी बनकर होश में समझदारी से। काल कर्मों का हिसाब मांगता है। वह छोड़ेगा नहीं। वह तो सजा देना चाहता है और देगा पर महापुरूष आपको बचाना चाहते हैं। आप अपने को छोटा समझो। दूसरों का कर्म लादोगे तो उसे भोगना तो पड़ेगा ही। चोरी मत करो चोरी की आदत मत डालो। चोरी का काम करना है तो यहां मत आओ। जब अपनी आदत छुड़ा लेना तब आना। हिंसा मत करो आपका यह अधिकार नहीं है कि उस परमात्मा की बनाई चीजों को आप बिगाड़ो। अपने कर्मों को ठीक कर लो। गन्दगी और गलीज को लादोगे तो तकलीफ तो होगी ही आपको। ये सच है कि वो मालिक यहां कभी नहीं आया और न कभी आएगा। अपनी बोध में वो किसी को यहां भेज देता है जो मनुष्य पोल पर आकर जीवों को जगाता है, मनुष्य पोल की पहचान होती है। अगर वो ऐसे ही बोल दे तो तुम समझोगे कि कोई भूत है या प्रेत है। तुम मनुष्य शरीर में हो इसलिए वो तुमको जगाने के लिए मनुष्य शरीर धारण करके आता है। यह जरूर है कि वो जगा हुआ है। कुम्भ तो उज्जैन, हरिद्वार, नासिक में भी लगता है लेकिन जो महाकुम्भ, महामानवकुम्भ प्रयागराज में लगा है वह अभी तक कहीं नहीं लगा। वह कोई छोटी-मोटी चीज नहीं है। तुमको नहीं मालूम कि कैसे लोग बदल जाऐंगे, कैसे पलट जाऐंगे, कैसे परिवर्तन हो जाऐगा।

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