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जय गुरुदेव,
परम पूज्य स्वामीजी महाराज अभी मथुरा आश्रम पर ही हैं और सेवाकार्य चल रहे हैं. दर्शन और सेवा का लाभ लेने के लिए प्रेमियों का लगातार आना-जाना लगा हुआ है.
आज देश में जो घटनाचक्र चल रहा है चाहे वो भ्रष्टाचार का हो, घोटालों का हो, आतंकवाद का हो, हत्या का हो या काले धन का हो, अपहरण का हो, झूठे मुकदमों का हो या किसी और का हो, झूठे मुकदमों का हो या किसी और का हो उन सबका हल दिखाई नहीं दे रहा है और जनता चिल्ला रही है, रो रही है और और अपने को पूर्ण रूप से असुरक्षित महसूस कर रही है। पूरे देश के लोगों का भविष्य अन्धकारमय दिखाई दे रहा है। बाबा जी ने लगभग 40 वर्ष पहले कहा कि परिवर्तन होगा और ऐसा परिवर्तन होगा जो अभी किसी के दिल-दिमाग में नहीं है। परिवर्तन ऐसे होगा कि रात को कुछ और सवेरे कुछ और नजारा होगा। जब सबके धीरज के बांध टूट जायेंगे तब उस मालिक की दया का एहसास होगा।
मत सताओ गरीब हो, गरीब रो देगा।
जब सुनेगा उसका मालिक,
तो तुमको जड़ से खो देगा।
समय ही बलशाली है।
एक समय था ‘त्रेता’। लोग धार्मिक के साथ-साथ सदाचारी, दयावान, आदर-सत्कार करने वाले तथा उच्च चरित्रवान थे। राजा राज करता था और यह उसकी जिम्मेदारी थी कि उसके राज्य में कोई भूखा सोता नहीं था। यदि ऐसा कुछ हो जाये तो राजा को दोष लगता था और परमात्मा की ओर से उसे सजा का प्रावधान तो था ही किन्तु वह अपना नैतिक दायित्व समझते हुए भी अपने को सजा का भागीदार मानकर कुछ न कुछ प्रायश्चित करता था। ऐसे अच्छे समय में जब रावण का अत्याचार बढ़ा तो भगवान राम के रूप में शक्ति को अवतरित होना पड़ा जिसने रावण का संहार कर उस समय के अनुरूप धर्म की पुनर्स्थापना की।
ऐसे अच्छे समय में रावण के अत्याचार से दुनियां, समाज अथवा मानवजाति को मुक्ति दिलाने के लिए राम को आना पड़ा वह इसलिए कि दस प्रकार की विज्ञानों से निपुण, दस प्रकार के ज्ञान के भण्डार, दस प्रकार की विद्याओं में पारंगत रावण को मारने के लिए उस समय धरती पर कोई शक्ति मौजूद नहीं थी। अतः राम जो कि बारह प्रकार की विद्याओं के पारंगत, बारह प्रकार के विज्ञानों में निपुण, बारह प्रकार के ज्ञान के भण्डार थे उन्होंने यहां मानव शरीर धारण करके रावण का संहार किया और उसके अत्याचार से समाज तथा मानव जाति को मुक्ति दिलाकर पुनः धर्म की स्थापना की।
युग बदला, समय बदला और आया द्वापर। इस समय में भी समाज के लोग अच्छे, सद्भाव वाले, मेल-मिलाप से रहने वाले, सादाचारी, उच्च चरित्र वाले, दयालु, अतिथि सत्कार करने वाले तथा धर्मावलंबी थे। ऐसे समय में भी एक बुरे हृदय वाला व्यक्ति हुआ जिसे आज हम ‘कंस’ के नाम से जानते हैं। कंस के समय में अत्याचार बहुत क्रूर किस्म के हुए। नवजात् शिशुओं को उसने अपने हाथों शिला पर पटक कर मार डाला। आसुरी शक्तियों का प्रयोग कर कितने ही जघन्य कांड कर डाले। समाज में, मानव जाति में उसका भारी भय उत्पन्न हो गया था। समय को बदलने के लिए व पुनः धर्म की स्थापना करने के लिए फिर से किसी शक्ति की आवश्यकता हुई। उस समय में धरती पर कोई ऐसी शक्ति नहीं थी जो कंस जैसे बलशाली को परास्त कर धर्म की स्थापना कर सके। अतः उस समय के अनुरूप श्री कृष्ण को मानव शरीर धर कर आना पड़ा। उन्होंने यहां आकर कंस का संहार किया, 56 करोड़ यदुवंशियों का नाश हुआ फिर महाभारत के युद्ध में करोड़ों का सफाया हुआ तब जाकर धर्म की पुनः स्थापना हुई।
यहां यह विचार करने की आवश्यकता है कि त्रेता में रावण था जिसका संहार करने के लिए राम को आना पड़ा। रावण के समय में उसने किसी का घर नहीं फूंका, किसी को जिन्दा नहीं जलाया, शराब व मांस का प्रचार नहीं किया, किसी के साथ अनाचार नहीं किया, (सीता माता को उठाकर ले गया तो उन्हें अशोक वाटिका में ही रखा, अपने घर में नहीं) उसके राज्य में किसी प्रकार का घोटाला नहीं हुआ, उसने विदेश के किसी बैंक में अपने देश की संपदा को अपने नाम जमा नहीं किया, उसके राज्य में मां-बहनों के चरित्र नहीं गिरे न ही उसने चरित्र गिराने की प्रचार किए। तो भी उसके अत्याचार से उस समय की पीड़ित मानव जाति को मुक्ति दिलाने के लिए राम को आना पड़ा।
समय बदला तो कंस का समय आया। कंस के समय में भी मानव जाति का चरित्र बहुत अच्छा ही था। राज्य में किसी प्रकार का घोटाला, घपला, लूटपाट, दिन-दहाड़े डकैती, हत्या, मारकाट चरित्र हनन, दुराचार आदि न था। पर उसका अत्याचार रावण से अधिक जघन्य था जिस कारण श्रीकृष्ण को आना पड़ा। ऐसे समय में राम जैसी शक्ति से काम नहीं होना था अतः उनसे अधिक शक्ति के स्वामी श्री कृष्ण जो कि 16 प्रकार की विद्याओं में पारंगत थे, 16 प्रकार के विज्ञानों में निपुण थे, 16 प्रकार के ज्ञान के भण्डार थे। उन्होंने आकर कंस वध, यदुवंशियों का नाश तथा महाभारत आदि कराकर धर्म को पुनः स्थापित किया।
आज कलयुग है और रावण व कंस के अत्याचारों को एक पलड़े में रखें और आज के राजाओं के अत्याचारों को दूसरे पलड़े में रखें तो आज के राजाओं का पलड़ा तराजू को तोड़ते हुए घड़ाम से जमीन पर गिर जाएगा। आज के राजाआंे का अत्याचार इतना भारी, जघन्य, क्रूरतम, आपराधिक, घोटालों से परिपूर्ण है कि शायद पिछले युगों का सम्पूर्ण अत्याचार भी एक पलड़े में रख दिया जाए तो भी आज के राजाओं का पलड़ा सब पर भारी है और इसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
आज घर-घर में रावण, घर-घर में कंस हैं। तो क्या आज एक राम या एक श्रीकृष्ण से काम चलेगा ? या फिर राम और श्रीकृष्ण दोनों को एक साथ आने से काम चलेगा ? नहीं। यह कलयुग है और कलयुग में भी कलयुग का सबसे मलीन समय है। इसमें किसी के चरित्र सही नहीं रहे। समाज में शिष्टाचार, आचार-विचार, संस्कार, आपसी व्यवहार, बड़े-छोटे का यथायोग्य मान-सम्मान, किसी बड़े की शर्म-लिहाज़ कुछ नहीं रहा। यहां तक कि आज बच्चों के भी चरित्र ठीक नहीं रहे। जिन बच्चों को 18-20 साल तक परिवार, पति-पत्नी के संबंधों का ज्ञान नहीं होता था वहीं आज छोटे बच्चों को आज पूरा-पूरा ज्ञान है। आज गरीब और गरीब होता चला जा रहा है तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है। देश की संपदा की खुली लूट देश के राजाओं के द्वारा ही हो रही है। देश की संपदा विदेशी बैंकों में थोड़े से लोगों ने अपने नाम से जमा कर ली है। आज हर काम में लूट-खसोट, मारा मारी, डकैती, राहजनी, हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि हो रहा है। रावण और कंस के समय में तो जनता फिर भी इन सब बातों से सुरक्षित रही पर आज के राजाओं के समय में उसकी जनता रो रही है, लूटी जा
रही है, हत्या हो रही है, राजाओं द्वारा ही बलात्कार हो रहे हैं। राजाओं द्वारा ही राज्य की संपदा को विदेशों में जमा कराया जा रहा है। तो अब आप ही विचार कीजिए कि क्या आज के समय में राम या श्रीकृष्ण से काम चलेगा ? या फिर दोनों एक साथ आ जायें तो काम चलेगा ? नहीं, कभी नहीं होगा।
ऐसे कठोर समय में 12 कला अवतार या 16 कला अवतार से नहीं 64 कला अवतार से काम होगा और वे केवल संत हैं। वे जो नित्य आते-जाते हैं उस परमात्मा के दरबारी हैं वे 64 प्रकार की विद्याओं में पारंगत हैं, 64 प्रकार के विज्ञानों में निपुण हैं, 64 प्रकार के ज्ञान के भण्डार हैं, वे संपूर्ण हैं। अब उन्हीं से ही काम होगा।
जय गुरुदेव नाम प्रभु का
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