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जिनसे आप त्रस्त हो उन्हें तो आपकी अकल ने ही चुना

जय गुरुदेव
जय गुरुदेव
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जय गुरुदेव, 

 वर्तमान समय में सभी परेषान नजर आ रहे हैं। चाहे पैसे वाले हों, ओहदे वाले हों या सामान्य वर्ग हो, सभी के होठों पर एक ही प्रष्न है कि आगे क्या होगा। सभी में एक प्रकार का भय सा व्याप्त है, डर रहे हैं कि न जाने अब क्या होने वाला है। लोग आषंकाओं से भरे हुए हैं, भयभीत हैं, नौकरी हो, व्यापार हो, मार्ग हो, तीर्थ स्थान हो, देवी-देवताओं के मन्दिर हों या घर चारों ओर असुरक्षा की भावना व्याप्त है। हर कहीं भय का साम्राज्य है। इसका उत्तर किससे मांगा जाए? क्या राजा से? लेकिन उनका जीवन तो सबसे अधिक असुरक्षित है, वे ही देश में सबसे अधिक सुरक्षा घेरे में रहते हैं।पूंजीपति भी डरे हैं और ओहदे वाले भी डरे हुए हैं। तो क्या इसका उत्तर साधरण जनता या गरीब किसान देंगे? नहीं, क्योंकि वे तो स्वयं ही त्रसित हैं। बाबा जयगुरूदेव की आवाज कर्मों की गहन गति है। इसे योगी पुरूष ही समझते हैं। आपको ये नहीं बताया गया कि मतदान देने का मतलब क्या है? मतदान यानि बुद्धि का दान। आप किसी को भी अपना मतदान देते हैं इसका मतलब ये है कि आप उसके हर अच्छे-बुरे कर्म में समर्थन देते हैं आपने मतदान देकर लोगों को देश की राजधानी दिल्ली और अन्य राज्यों की राजधानी जैसे लखनऊ पटना, जयपुर, भोपाल आदि स्थानों पर भेजा। अब वो तो जो भी अच्छा बुरा करेंगे तो आप को दुख भोगना पड़ेगा। इस रहस्य को आपने समझा नहीं। अब आप चिल्लाओ कोई सुनने वाला नहीं है। आपको चाहिए कि अच्छे चरित्रवान, सत्य और अहिंसावादी, निःस्वार्थ काम करने वालों को ले आते तो सुख मिलता। सुख मिलने वाला नहीं है आपको। महापुरूषों ने कहा है किः

कर्म प्रधान विष्व रचि राखा जो जस करहिं सो तस फल चाखा।

अपने लिए कर्म के अलावा मनुष्य को दूसरों के कर्मों को भी भोगना पड़ता है ऐसा ईष्वरीय विधान है। फिर कहा है किः-

यह रहस्य रघुनाथ कर, वेगि न जाने कोय।

से जाने जो गुरू कृपा, सपनेहुं मोह न होय।

जय गुरुदेव नाम प्रभु का

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