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इलाहबाद त्रिवेणी संगम पर आयोजित भूमिजोतकों के सम्मेलन में 28-29 जुलाई 1996 को बाबा जयगुरूदेव जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि यह भूमिजोतकों का वैचारिक सम्मेलन है, सत्य-असत्य के निर्णय का सम्मेलन है।
जब आप में वैचारिक विवेक आ जाए तो वैचारिक क्रांति चल पड़ेगी। वैचारिक क्रांति में विवेक होता है, बोध होता है, सत्य-असत्य का ज्ञान होता है। इससे किसी को नुकसान नहीं।
विदेशी लोगों को यहां व्यापार करने का मुहूर्त नहीं है। यहां के लोगों का भी दूसरे देशों में व्यापार करने का मुहूर्त नहीं है क्योंकि चण्डी धन को गायब कर देगी। चण्डी एक देवता है, शक्ति है जो देश-विदेश का भ्रमण कर रही है। दिल्ली, बम्बई, लखनऊ आदि में बोर्ड लगाकर कम्पनियों के नाम पर खरबों रूपये के शेयर बेचकर भारत का पैसा लेकर विदेशों में चले गए जबकि फैक्ट्री के नाम पर उन्होंने यहां एक ईंट भी नहीं रखी। एक छोटा सा कागज का टुकड़ा तुमको पकड़ा दिया। कल यदि कह दें कि भारत के लोग हड़ताल, तोड़फोड़ बहुत करते हैं तो क्या करोगे ? तुम ऐसे ही रह गए।
भूमिजोतकों तुम्हारी संख्या देश में सबसे अधिक है। तुम दिन में खेती का काम करो, शाम को बच्चों की सेवा, फिर जो समय बचे उसमें भगवान का भजन करो तो तुमको बरक्कत मिलने लगेगी। बरक्कत एक देवता है। उसका तुमने अपमान कर दिया।
मैंने तुमसे कहा था कि रोज एक-एक माला यानी सुमिरन करना कि ‘‘हम पर शासन वही करेगा जो ब्याज हमारा माफ करेगा।’’ इसमें किसी भी राजनीतिक, कर्मचारी, नौजवान, छात्र की बुराई नहीं
जो दो सौ के थे कुछ न कर सके और जो छोटे-छोटे थे वो दिल्ली में बैठकर शासन करने लगे और बड़े-बड़े रह गए। जो लोकसभा व राज्यसभा किसी का भी सदस्य नहीं सीधा आया और गद्दी पर बैठ गया। जिसको कोई जानता नहीं था देश का गृह मंत्री बन गया। यह ईश्वरीय चमत्कार नहीं तो और क्या है। अभी तो ईश्वर के चमत्कार को आपने देखा नहीं है। अभी तो बड़ी घटना और बड़ा चमत्कार होने वाला है। 1996 का साल बहुत खराब है इस बात को ध्यान में रखना।
भूमि जोतकों के संबंध में सारे देश में चर्चा फैल गई है। मैंने पिछले महीने राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के शहरों और गावों का दौरा किया। वहां उन लोगों से मिलने से, उनकी बात सुनने से यह मालूम होता है कि वे अपनी-अपनी चीज सुनने और समझने के लिए उत्सुक हैं। वो चाहते हैं कि ऐसा अवसर उन्हें मिल जाए कि उन्हें खूब सुना दें कोई खूब समझा दंे। अस्सी प्रतिशत इनकी आबादी है तो सबका विचार और सबका ध्यान इनके हितों की तरफ होना ही चाहिए।
आप सब भूमिजोतकों ने गल्ती की। अगर आप गल्ती न करते तो यह बुरे दिन आपको देखने न पड़ते। आप लालच में पड़ गए, बहक गए। कोई आया और बोला कि दिल्ली चलो, लखनऊ चलो, तोड़फोड़ करो, मारामारी करो। उन लोगों ने सोचा कि यह तोड़फोड़, हड़ताल कराने से उन लोगों को उन लोगों को लाभ मिलेगा पर बजाय शान्ति मिलने के, लाभ मिलने के तरह-तरह के झगड़े झंझट मिले।
उनका जो लक्ष्य है वो जानें, हमारा जो लक्ष्य है हम जानते हैं। ये प्रयाग त्रिवेणी संगम है। हम यहां आए हैं तो प्रतिज्ञा करेंगे कि ‘‘हे गंगा महारानी, हे यमुना महारानी’’ हमें सद्बुद्धि दो, हमसे कोई बुरा काम न बने।’’
स्नान करने जाओ तो एक दृढ़ संकल्प करो कि एक बुराई हमें छोड़नी है। डुबकी लगाओ तो प्रतिज्ञा करो हम हिन्सा नहीं करेंगे। भजन की कमाई, शब्द की कमाई सार कमाई है पर जब कोई कमाई करने वाला पुरूष, महापुरूष आपको मिल जाए तभी आप नाम कमाई कर सकते हो। शब्द का भेद इसी कलयुग में जारी हुआ। पहले के युगों में शब्द जारी नहीं था। सुरत यानी जीवात्मा जो दोनों आंखों के पीछे बैठी हुई है वो इतनी सुन्दर और प्रकाशवान है कि इतनी सुन्दर कोई चीज है ही नहीं।
तीन धारायें हैं काल की, माया की और दयाल की। यही त्रिवेणी संगम है। वहां से पता लगता है कि जीवात्माऐं कैसे पार उतरती हैं। सब लोग महात्माओं के पास आकर कोई न कोई रोना रोते हैं पर सच तो ये है कि मालिक के लिए कोई नहीं रोता। क्षणभंगुर चीजों के लिए रोता रहता है, इन्हीं को मांगता रहता है। सत्संग और सत्संग की बड़ी महिमा है। ऐसा सत्संग प्राप्त हो यह जीवों का बड़ा भाग्य है।
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