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16 दिसंबर 2010: भंडारे के चौथे दिन भी हुआ अमोलक सत्संग/नामदान

जय गुरुदेव
जय गुरुदेव
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जय गुरुदेव,

आज मथुरा आश्रम पर वार्षिक भंडारे का चौथा दिन है और आज भी सतगुरु दयाल की सत्संग और नामदान देने की मौज हुई. भंडारे के पावन अवसर पर दुनिया के कोने कोने से आये हुए प्रेमीजनो के हुजूम ने आज भी गुरुमुख से सत्संग और अमोलक नामदान का आनंद लिया. परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने पहले भी कई बार इस बात की ओर इशारा किया और कहा कि “यह अवसर कभी कभी किसी किसी को बड़े भाग से मिलता है”. चौराशी नर्को में युग युगांतर तक भ्रमण करने के बाद दुर्लभ मनुष्य शरीर का मिलना और उस पर प्रराब्धो के संचित कर्मो से समरथ सतगुरु दयाल का मिलना उस पर भी उनके श्री मुख से सत्संग और निजधाम जाने का रास्ता मिलना, अब इससे बड़ा भी कोई भाग्य हो सकता है क्या? सतगुरु दयाल भी ऐसे कि वो स्वयं कहते हैं कि ‘मैं अन्दर भी मिलूँगा और बाहर भी”. “भजन और सेवा में लगे रहोगे तो इधर भी जीवन अच्छा और अन्दर की दुनिया का नज़ारा भी देख सकते हो”. अब इससे अच्छा भी कोई अवसर आयेगा क्या? परम पूज्य स्वामीजी महाराज बार बार इस ओर इशारा करते हैं कि अनगिनत बार इसी संसार में आकर आप जन्मते मरते रहे हो और असहनीय दुःख झेलते रहे हो अबकी बार मौका मिला है चूको मत. इस बार निकल चलो यहाँ से अपने निजधाम को.

पावन पर्व भंडारा जो कि हर वर्ष मनाया जाता है, के दिन हमारे परम पूज्य स्वामीजी महाराज के गुरु सतगुरु दयाल परम पूज्य दादा गुरु जी महाराज जो कि ग्राम चिरौली, जिला अलीगढ के रहने वाले थे ने अपना पंचभौतिक शरीर का त्याग किया था. हम सभी प्रेमीजन परम पूज्य दादा गुरु जी महाराज के विशेष आभारी हैं क्यूंकि उनकी दया और कृपा से आज हमारे पास हमारे गुरु परम पूज्य स्वामीजी महाराज हैं. कई प्रेमीजन परम पूज्य दादा गुरु जी महाराज से यह अरदास भी करते हैं कि वो हमारे गुरु परम पूज्य स्वामीजी महाराज को सदैव स्वस्थ रखे. यद्यपि परम पूज्य स्वामीजी महाराज सर्व समरथ हैं लेकिन प्रेमियों के भाव अपने होते हैं. परम पूज्य दादा गुरु जी महाराज गुप्त संत थे और गृहस्थ आश्रम में रहते थे. उनके आदेश को शिरोधार्य करते हुए हमारे गुरु परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने प्रकट रूप से इस अमोलक पूँजी को बाँटना शुरू किया. कई बार परम पूज्य स्वामीजी जी महाराज ने कहा कि “हमें ये सब करने कि क्या ज़रुरत थी हम तो अपने गुरु महाराज के आदेश का पालन कर रहे हैं.”

भंडारे के अवसर पर प्रातः सात बजे के लगभग परम पूज्य स्वामीजी महाराज के सत्संग कार्यक्रम के बाद शाम ४ बजे श्री सतीश यादव जी द्वारा सत्संग और उसके बाद श्री उमाकांत तिवारी जी द्वारा साधन और भजन कराया जाता है. कार्यक्रम स्थल की मनमोहक छटा है. सभी प्रेमी भाई और बहनों ने जो सेवा की जिम्मेदारी पर हैं वो लगातार अपनी सेवावो पर लगे हुए हैं. सभी प्रेमियों के लिए भोजन व्यवस्था का इंतज़ाम है और कोई भी किसी भी भंडारे में भोजन प्रसाद खा सकते हैं.

प्रभु का पावन नाम जय गुरुदेव.

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