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जय गुरुदेव,
11 मार्च 2011 को जापान में आये विनाशकारी भूकंप और उसके बाद महासागर में मची हलचल से आये सुनामी ने व्यापक पैमाने पर जनमानस की हानि पहुचाई. जापान तकनीकी रूप से काफी विकसित देश है परन्तु यह प्रकृति का ऐसा प्रकोप था जो उच्च तकनीकी द्वारा पहले से भापा नहीं जा सका और देखते देखते बड़ी बड़ी इमारते जमीदोज हो गयी और बड़े बड़े भारी भरकम समुद्री और हवा में उडने वाले जहाज तिनको कि तरह समुद्र की लहरों में बह गए. मकान, फसले और पूरे के पूरे शहर एक झटके में गायब हो गए. इन सबमे जो लोग मारे गए उनकी गिनती लगा पाना संभव नहीं. बड़ी बड़ी इमारतों में रहने वालो के लिए वो इमारते उनकी कब्रगाह साबित हुई. देखते देखते इमारते और मकान में जो जिस हालत में था वैसे ही उनमे दबकर रह गया. ऐसी खबरे भी आ रही हैं कि इसके चलते प्रथ्वी अपनी धुरी से ४ इंच खिसक गयी है. आज १४ मार्च को उत्तराँचल के चमोली जिले में भी भूकंप का हलके झटके महसूस किये गए.
प्रकृति के सामने मनुष्य हमेशा से ही बेबस रहा है. जब भौतिक विज्ञानं प्राकृतिक आपदाओ के कारण खोजता है तो वो मूल कारण तक नहीं जा पाता. यदि वो ऐसा कर पाता तो ऐसी घटनाओ का पूर्वानुमान लगाकर बचने का प्रयास करता. अध्यात्मिक विज्ञानं जो कि भौतिक विज्ञानं से अलग और सांसारिक बुद्धि से परे कि चीज़ है मानवता पर आने वाले हर खतरे से आगाह करता हैं और बचने का उपाय भी बताता हैं. इसी अध्यात्मिक विज्ञानं का प्रचार प्रसार करने के लिए संत सतगुरु मृत्युलोक में आते हैं और और काल जाल में फसे जीवो को समझाते हैं. उनमे से कुछ लोग तो उन संतो को पहचान कर उनकी बातो को अमल में लाते हैं और अपना जीवन सफल बनाते हैं परन्तु अधिकांश उन्हें समझ नहीं पाते और उन्हें संतो पर और उनके वचनों और विश्वास नहीं होता और दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से वे काल के ग्रास बन जाते हैं. जो संतो को समझ जाते हैं उनसे प्रेम भाव रखते हैं और हर कार्य को उनके अधीनस्थ हो कर करते हैं वो मृत्युलोक के आपदायों से अछूते रहते हैं. संत सदगुरु उनके अंग संग रहते हैं हुए उनकी पल पल संभाल करते हैं. 700 साल पहले मृत्युलोक में पधारे प्रथम प्रकट संत कबीर जी ने कहा:
गुरु को सिर पर राखिये , चलिए आज्ञां माहिं |
कहें कबीर ता दास को , तीन लोक भय नाहीं ||
भारी पैमाने पर जगह जगह हो रहे भारी जनमानस की हानि पर जहाँ विश्व भर के लोग चिंतित हैं वोहीं परम पूज्य स्वामीजी महाराज के वचनों को अपने हृदय से लगाने वालो पर इसका कोई असर नहीं. गुरु महाराज कि असीम कृपा से प्रेमियों को जीते जी इस क्षणभंगुर मृत्युलोक का रहस्य और इसके पार का रहस्य पता चल गया और साथ ही जीते जी ‘हरि कि पौढ़ी’ यानि नामदान मिल गया. जिनको नाम रुपी धन मिल गया और उन्होंने इसकी घिसाई यानि भजन कर लिया और गुरु कृपा हो गयी तो वो हो गए भवसागर से पार.
परम पूज्य बाबा जय गुरुदेव जी महाराज ने 15 दिसम्बर 1983 को मथुरा आश्रम में कहा था “परिवर्तन निकट है”. युग का परिवर्तन, भावनाओ का परिवर्तन, आचार विचार का परिवर्तन. रहन सहन का परिवर्तन, खान पान का परिवर्तन, देश दुनिया समाज का परिवर्तन. कहने का मतलब अमूल परिवर्तन होने वाला है लेकिन हसते खेलते कभी परिवर्तन नहीं होता. इतिहास गवाह है कि जब भी कोई भारी परिवर्तन हुआ बिना नुकसान के नहीं हुआ.
जय गुरुदेव नाम प्रभु का
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