Menu
blogid : 357 postid : 134

समरथ संत सदगुरु की ज़रुरत

जय गुरुदेव
जय गुरुदेव
  • 44 Posts
  • 54 Comments

आज हर तरफ दुःख और अशांति का वातावरण है। जिसके पास पैसे की कमी है वो भी दुखी और जिसके पास है वो भी परेशान। बड़े बड़े धनी मानी कहे जाने वाले लोग जिनके पास सुख सुविधा का सारा साजो सामन है वो भी दुखी। मतलब कहने का कोई सुख में नहीं। हम अक्सर जब परेशानियाँ और दुखो से घिर जाते हैं तो सोचते हैं कि इससे कैसे मुक्ति मिलेगी। संतो की वाणी में सब समस्याओं का हल है गुरु नानक जी ने कहा: ‘नानक दुखिया सब संसारा, सोही सुखिया जो नाम अधारा। सहजो बाई ने कहा: धनवन्ते सब ही दुखी। निर्धन है दुख रूप। साध सुखी सहजो कहे। पायो भेद अनूप।. गुरु नानक जी सुख की प्राप्ति के लिए नाम की ओर इशारा करते हैं और सहजो बाई कहती है कि वो साधुजन जिन्हें परमात्मा का अनुपम भेद मिल गया वो ही सुखी हैं। गोस्वामी जी राम चरित मानस में लिखते हैं: ‘कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।। संतो ने नाम कि महिमा का बखान किया और कहा कि परमानन्द इसी से मिल सकता है। तो ‘नाम’ की खोज करनी चाहिए। ‘नाम’ यानी कि वक्त के संत सद्गुरु द्वारा जगाया प्रभु का नाम जिसके अन्दर श्रष्टि की सभी शक्तियां समाहित हो। जो न केवल संसार में आने वाली विभिन्न प्रकार की परेशानियों से हमे बचाए बल्कि मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाकर जीते जी मोक्ष का रास्ता दिला सके। इस नाम की प्राप्ति पूर्ण पहुचे हुए संत सद्गुरु द्वारा ही हो सकती है। आज के इस भाग दौड़ के वातावरण में हम इस ओर नहीं सोचते और न ही संत सद्गुरु की खोज करने का प्रयास करते हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि समय समय पर संत फ़कीर धरती पर आते रहे और संसार के भ्रम जाल में फसे हुए जीवो पर दया करके निजघर जाने का रास्ता यानि मोक्ष का मार्ग बताया और उनके कष्टों को अपने ऊपर लेकर उनकी संभाल भी की। लेकिन यहाँ गौर करने वाली बात यह की उस आत्मीय खजाने की सुलभता केवल उन्ही को थी जिनको उसकी चाहत थी। संत सतगुरु की महिमा का वेदों, शाश्त्रो और पुराणों में बखान किया गया है। संत कबीर जी ने कहा सब धरती कागद करुँ, लेखनि सब बनराय। सात समुन्दर मसि करुँ, गुरु गुन लिखा न जाय।। लेकिन इस कलयुग में धन मान की चाहत और अपने स्वार्थो के चलते बहुत से पाखंडियों ने खुद को गुरु बताकर भोले भाले लोगो को अन्धकार के तरफ धकेल दिया। जिसके चलते लोगो में मन में गुरु शब्द से ही खिन्नता हो गयी। सच्चे संत के अभाव में सत्संग का लोप हो गया जिसके फलस्वरूप हम जीवन के असली मायने, मनुष्य शरीर का उद्देश्य, असली परमानन्द सुख की प्राप्ति का रास्ता और मृत्यु के पार का रहस्य पता न कर सके और कर्मकांडो में फसकर रह गए। मतलब धर्म का लोप हो गया और अधर्म का विस्तार हो गया। धर्म के विलुप्त होने के लिए हम अक्सर उन पाखंडियों को जो अपने तो गुरु कहते हैं उन्हें ही दोषी मानते हैं। परन्तु यदि देखा जाये तो हम भी इस गलती के बराबर के दोषी हैं क्योंकि हम असली गुरु की पहचान ही न कर सके। हम संसार के सुखो की खोज में लगे रहे और जिसने कुछ अच्छे शब्द बोल दिए, पाठ कर दिया, थोडा दिखावा कर दिया, कुछ जादू चमत्कार दिखा दिए उसे ही गुरु मान बैठे। हम उसकी अध्यात्मिक शक्तियों की परीक्षा न कर सके और खुद को धोखा दे बैठे। यदि हमारे अन्दर सच्चे सुख को पाने की चाहत और जनम मृत्यु के बन्धनों से मुक्त होने का भाव होता और फिर हम गुरु की खोज करते तो निश्चय ही वक्त का सच्चा सद्गुरु मिल सकता था। सच्चा संत सद्गुरु वोही है जिसने खुद इसी मनुष्य शरीर में रहकर आत्मा और परमात्मा के भेद को पा लिया, मौत के बाद के रहस्य को खोज लिया और परम आनद की प्राप्ति कर ली। ऐसे पूरे पहुचे हुए संत के लिए सासारिक चमत्कार कोई मायने ही नहीं रखते वो समरथ होते हैं और जब जो चाहे कर सकते हैं। पुस्तकों के माध्यम से ऐसे बहुत से संतो फकीरों के प्रमाण मिलते है जिन्होंने अपने समय में आकर धर्म और जाति की सीमा से ऊपर उठकर जीवो को दिशा दिखाई और मानवता के मूल सिधान्तो के साथ साथ अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों यानि रूहानी दौलत के बारे में लोगो को बतायाl जिन्होंने उन पर पर विश्वास और उनके वचनों पर अमल किया वो सदा सदा के लिए जन्म मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो गए, निजात पा गए और परम सुख परमानद को प्राप्त किया।

ऐसे ही संतो की श्रंखला में एक नाम है परम संत बाबा जय गुरुदेव जी महाराज, जिनकी आयु 110 वर्ष से भी ऊपर है। इन्होने सन 1952 से उत्तर प्रदेश के बनारस शहर से अध्यात्म का प्रचार प्रसार शुरू किया जो कि आज भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों, जिलो और गाँव तक पहुच चुका है। एक जीव से शुरू हुआ यह अभियान आज समंदर का रूप ले चुका है। गाँव शहरों के लाखो करोणों लोगो ने इनके वचनों को अपने जीवन में उतार कर अपने जीवन की दशा और दिशा बदल ली। बाबा जय गुरुदेव जी के अनुसार ‘जय गुरुदेव’ मेरा नाम नहीं मेरा नाम तो आपका रखा हुआ ‘तुलसीदास’ है. ‘जय गुरुदेव’ नाम तो वक़्त का जगाया हुआ प्रभु का नाम है और मैं इस नाम का प्रचारक हूँ। इस नाम के सुमिरन मात्र से आपको दुःख तकलीफों में आराम मिलेगा और ज़रुरत के समय मालिक की मदद भी मिल जाएगी। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कबीर जी ने अपने समय में ‘साहिब’ नाम जगाया, गोस्वामीजी जी ने ‘राम’ नाम जगाया और गुरु नानक जी ने ‘वाहे गुरु’. जब तक नाम को जगाने वाले महापुरुष मनुष्य शरीर में थे तब तक वो नाम भी काम करते थे। जब जगाने वाले चले गए तो नाम ने भी काम करना बंद कर दिया। इसलिए वक्त के सच्चे सद्गुरु की ज़रुरत है।

बाबा जय गुरुदेव की जनता से अपील: परम पूज्य स्वामीजी महाराज का सभी से अनुरोध है कि आप सभी जीव हत्या मत करो और शाकाहारी हो जाओ। बुद्धि विवेक का नाश कर देने वाले नशे से दूर रहो और शराब मत पियो. अंडा या अंडे से बनी वस्तुओ का सेवन मत करो क्यूंकि यह मुर्गी के मासिक के खून से बनता है। आपको यह मनुष्य शरीर दिया गया है प्रभु को प्राप्त करने के लिए और आप इसी संसार में फस कर यह दुनियाबी कार्यो में उलझ कर उस प्रभु को, खुदा को, GOD को भूल गए। अपने हिसाब से नियम बनाकर सुख भोग में लग गए। लेकिन यह संसार तो छोड़कर जाना ही पड़ेगा। आपके पीछे कई आए वो चले गए और आपका भी नंबर आयेगा। आप जीते जी इस मनुष्य मंदिर में, जिस्मानी मस्जिद में बैठकर उस सच्चे भगवान का खुदा का दर्शन दीदार कर लो। जीते जी ही आप उस भेद को पा सकते हो मरने के बाद नहीं। जिन देवी देवताओं की आप पूजा आराधना करते हो वो अपने लोको में स्वर्ग और बैकुंठ में विराजमान हैं लेकिन वो मिटटी की इन जड़ आँखों से नहीं देखे जा सकते वो चेतन हैं और उन्हें देखने के लिए जीवात्मा की आँख जिसे तीसरा नेत्र यानि शिव नेत्र भी कहते हैं खुलना चाहिए। आप सभी के पास तीसरी आंख है आपको पूरे गुरु की खोज करनी चाहिए। वो संत सद्गुरु जिसकी तीसरी आंख खुली होगी वो आपकी मदद करेगा तो आपकी भी खुल जाएगी और आत्मा इस जनम मृत्यु के बंधन से सदा सदा के लिए मुक्त हो जाएगी। इसे ही मोक्ष कहते हैं। अध्यात्म का मूल तो मानवता है इसलिए आप सभी मानवीय मूल्यों को जीवन में उतार कर आपस में प्रेम, सौहार्द से रहो। परम पूज्य स्वामीजी महाराज कहते हैं हम आपके गुरु नहीं हम तो सेवादार हैं और हम कुछ नया नहीं बताते हम तो आपको पुरानी बाते ही याद दिलाते हैं।

परिवर्तन निकट है: परम पूज्य बाबा जय गुरुदेव जी महाराज ने 15 दिसम्बर 1983 को मथुरा आश्रम में कहा था “परिवर्तन निकट है”। युग का परिवर्तन, भावनाओ का परिवर्तन, आचार विचार का परिवर्तन, रहन सहन का परिवर्तन, खान पान का परिवर्तन, देश दुनिया समाज का परिवर्तन। कहने का मतलब अमूल परिवर्तन होने वाला है लेकिन हसते खेलते कभी परिवर्तन नहीं होता। इतिहास गवाह है कि जब भी कोई भारी परिवर्तन हुआ बिना नुकसान के नहीं हुआ। कलयुग जायेगा और सतयुग आयेगा और इस युग परिवर्तन में भारी पैमाने पर जनमानस की हानि होगी, बीसों करोड़ लोग एक बार में साफ़ हो जायेंगे। लाशो का ऐसा अम्बार लगेगा उनको उठाने वाले नहीं मिलेंगे। यदि समय रहते चेत गये और महापुरुषों की बातो को मान लिया शाकाहारी हो गए, अंडा और शराब छोड़कर मानवीय मूल्यों को जीवन में उतार लिया तो ही बचाव हो सकेगा। आपको पहले ही बता दिया बाद में मत कहना कि किसी ने बताया नहीं।

जय गुरुदेव आश्रम मथुरा के बारे में: जय गुरुदेव आश्रम मथुरा में दिल्ली-आगरा राजमार्ग संख्या 2 के किनारे स्थित है। आश्रम पर लगभग 200 बीघे जमीन है जिसका उपयोग कृषि सम्बन्धी कार्यो में किया जाता है जिससे वर्ष भर आने-जाने वाले प्रेमियों की भोजन व्यवस्था हो सके। आश्रम में अन्दर एक गौशाला भी है जहाँ 1500 से ऊपर गाये, बैल और बछड़े हैं। आश्रम की फसलो से निकलने वाले भूसे से इनके चारे का बंदोबस्त हो जाता है। आश्रम में ही एक विद्यालय भी है जहाँ निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। यही पर नाम योग साधना मंदिर भी स्थित है जो जय गुरुदेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। सफ़ेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का सौंदर्य अद्भुत है और राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले देशी-विदेशी पर्यटक कौतूहलवश इसे दखते हैं और इसके तस्वीरे अपने कमरों में यादगार के तौर पर कैद करके ले जाते हैं। इस मंदिर की अनुपम सौंदर्य के अलवा एक विशेष बात यह है कि यहाँ आप अपनी एक बुराई को छोड़ने की प्रतिज्ञा करे और उसके बदले में कोई उचित मनोकामना मांग लीजिये और वो पूरी हो जाएगी। परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने कहा कि यह हमारे गुरु महाराज की निशानी है और यहाँ बरक्कत बंट रही है आप इसका अनुभव स्वयं कर सकते हैं। लाखो प्रेमी हर वर्ष इस मंदिर में आते हैं। यहाँ तस्वीरे खीचने पर कोई रोक नहीं है। मंदिर में दानपात्र रखे हैं जिसमे दर्शनार्थी स्वेक्षा से दान डाल सकते हैं। दान राशि का उपयोग मंदिर के रखरखाव में होता। मांसाहारी, शराब पीने वालो और अंडा खाने वालो से यहाँ दान न देने की विनती दान पात्रो पर स्पष्ट लिखी हुई है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh