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आपने दरवाजा खोल दिया और बीमारी, लड़ाई-झगड़े, छल-कपट, झूठ-धोखाधड़ी, मारकाट सबको बुलाकर स्वागत किया। अब आप अपने से ही निराश होने लगे, घबराने लगे और भयभीत हो गए हैं। जब सब लोग चारों तरफ से निराश हो जाऐंगे तब महात्माओं की तरफ मुड़ेंगे। यह भी समझ लीजिए कि कुदरत कुछ ऐसी क्रिया करने वाली है जिससे सबकी बुद्धि चकित हो जाऐगी। परिवर्तन अवश्य होगा। कुदरत बहुत बड़ी ताकत है और उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। उससे लड़ने की कोशिश मत करां। पलक झपकते हीे वह बड़ों-बड़ों का ढेर कर देती है।
अभी तो वक्त बहुत खराब आने वाला है। आगे ऐसा दुखी समय आऐगा, ऐसी भयंकर
और विकराल स्थिति हो जाऐगी जब मां बच्चे को और बच्चा मां को कुछ नहीं समझेगा। चारों तरफ कोहराम मच जाऐगा। उस समय पर ऐसे लोग खड़े हो जाते हैं जो त्रिकालदर्शी होते हैं। फिर उनके द्वारा बुराइयां खत्म हो जाती हैं और नये और अच्छे युग का सूत्रपात होता है। फिर लोग धर्म की तरफ, ईश्वर की तरफ लग जाते हैं। मैं इसी का तो घूम-घूमकर चारों तरफ प्रचार करता हूं।
आप लोग आऐ लेकिन आप लोग न तो परमात्मा के इच्छुक थे और न ही जिज्ञासु थे। आप तो दुनियां मांगने आते हो। ये तो बीच में घेर-घारकर आपको धर्म की तरफ मोड़ा गया। यह कोई मामूली बात नहीं है। आज के भौतिकवादी युग में आपके हाथ में माला पकड़ाया आपके अन्दर में प्रभु चर्चा सुनने की थोड़ी इच्दा पैदा की। लोकतंत्र के नाम पर आप इतने भाग निकले कि सब बंधनों को तोड़ दिया। न कोई धर्म का बंधन रहा, न ईश्वर का बंधन रहा, न जाति का, समाज का बंधन रहा और न ही घर-परिवार का बंधन रहा। छोटे-बड़े सब आजाद हो गऐ। कोई किसी के बंधन में नहीं रहना चाहता। नतीजा आजके सामने है। चारों तरफ लड़ाई हो गई। आपने लोकतंत्र का अर्थ नहीं समझा और अब तो प्रजा छोटे-छोटे राजाओं को भी याद करने लगी कि वो लोग इन लोगों से बहुत अच्छे थे।
ऐसा नहीं है कि किसी मर्ज की दवा नहीं है, किसी समस्या का समाधान नहीं है। हर मर्ज की दवा है हर समस्या का हल है। आपने तो सोच लिया कि आपसे बढ़कर कोई बुद्धिमान है ही नहीं। जो खुल मंच से चिल्ला रहा है कि हर समस्या सुलझाई जा सकती है उसके पास आप कभी जाते ही नहीं। मुझे तो कोई बात नहीं। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा।-(1991)
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