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कानून

KAVITAYEN
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कानून
कानून का दरवाजा सबके लिए खुला रहता, खाकी और काला सभी को न्‍याय दिला देता,,जब कानून का दरवाजा हम खटखटाते है, कानून व नियम तब से लागू हो जाते है, हम अपनी गुहार के लिए अभिवक्‍ता के पास जाते, पहले उसका ही दरवाजा हम खटखटाते है,, अभिवक्‍ता साहब भी हमको इज्‍जत से बैठाते है, ठण्‍डा पानी का गिलास हमें पिलाते है,, तब हमारी जानकारी अच्‍छी प्रकार से लेते है, कानूनी वार्तालाप पौथी व पेरवी से करते है,, अभिवक्‍ता भी कहता मामला आप का लडूगाँ । सच्‍ची ईमानदारी से काम में आपका करुंगा,, अपने सामने दुश्‍मन के छक्‍के छूड़ा दूगाँ, लेकिन विश्‍वास में उस भगवान का जरूर करुंगा,, जब भी हम न्‍यायालय में जाते है, एक स्‍त्री काले कपड़े में ऑंखे-बॉंधे दिखाई देती है,, वह काली साड़ी व काला ब्‍लाउज पहने होती है,, एक हाथ तराजू होती दूसरे में करेंशी होती है,, तराजू तो न्‍याय का संकेत कराती है, लेकिन करेंशी कानून का सहरा लेती है,
आंखों पर बंधी पट्टी कानून नियम पर चलती है, जज की भावना सभी को अपनी नजर से देखती है,,
जब भी न्‍यायालय में जाते तारीख नई पाते, न्‍यायालय में न्‍याय पाने के लिए लाईन लगी रहती, अच्‍छा किया या बुरा सभी को तारीख दे दी जाती है,, तारीख पाकर सभी घरों को लोट जाते है,, जैसे ही मुक़दमे की तारीख़ों की शुरुआत होती, तारीख़ों पर तारीख मुक़दमे की लगती रहती है,, गुहार मांगने वालों की सदियों मुक़दमे में बीत जाती है, लेकिन सदिया इंसाफ की इंतजारी होती,, जज साहब भी सच्‍चाई जानते भी, नियम का सहारा लेता , गुहार लगाने वालों की मुक़दमे की गुहार सुनता,, जहां चढ़ावा ज्‍यादा आता, उस पर पैरवी करता,, आज न्‍यायधीध भी न्‍याय कुर्सी पर बैठकर,
सच्‍चाई व इमानदारी का ढोंग रचता,, उस प्रभु का तनिक भी ख्‍याल न करता, धर्म कुर्सी पर बैठकर अधर्म की बात करता,,
क़दमों में अधर्म की जीत, धर्म की हार होती है, अभिवक्‍ता गुनहगार से सबूत पर सबूत माँगते है,, तब जाकर वकील नियम व कानून बताता, और मुवेकिल से समय-समय झूठ बुलवाता रहता,, मुवेकिल आते-आते हतोत्साह हो जाता, कानून व नियम से भरोसा टूट जाता,, खुद ही दुश्‍मन से बात मुक़दमे के बारे करता, अपने निर्णय पर ही मुक़दमे को रफा दफा करता,, उस प्रभु को याद करता और कहता, किसी से लड़ाई व झगड़े न कराये,, खामों खाँ खाके मुक़दमे ना कराये,
सफेद, काले व खाकी से जिन्‍दगी में बचाये,, जयवीर सिंह यादव

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