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हम न भागेंगे
यकीं मानो तुम,
इसी मिट्टी में,
हुए हैं पैदा,
इसी में खेलकर ,
सीखा है हमने जीना,
और एक दिन ,
इसी में मिल जायेंगे,
पर न भागेंगे कभी,
हम न जिन्ना के,
बहकावे में आये थे,
न तुम्हारी,
उस दहशत में,
जिसे बहाना बनाकर ,
मुल्क को टुकड़े में ,
बांटा गया,
जिन्हें जाना था,
वह चले गए,
हम न उस वक़्त गए,
न अब जाएंगे,
न हम उस वक़्त तुमसे,
डरे थे न अब डरे हैं,
तुम्हारी धमकियाँ,
हम पर बेअसर हैं,
यह ज़मीं ,
उतनी ही हमारी है,
जितनी तुम्हारी है,
तुम्हारा तो पता नहीं,
हमारी रगों में,
लहू बनकर ,
वतन की ,
मोहब्बत दौड़ती है,
उसे मौत का खौफ,
मिटा नहीं सकता,
लहू की ,
आखिरी बूँद तक,
यह मोहब्बत,
और वतन पर,
न्यौछावर होने का जज़्बा,
बाक़ी रहेगा,
हमें हमारे घर से ,
निकालने की ,
कोई सोचे भी न,
क्योंकि,
यह वतन हमारा है,
कोई भी अपना घर,
किसी की धमकी से,
नहीं छोड़ता,
फिर यह तो,
वतन की बात है,
मर मिटेंगे,
अपने वतन पर,
मगर भागेंगे नहीं,
क्योंकि,
तारीख गवाह है,
हम भागने वालों में नहीं.
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