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हेमंत करकरे शहीद या देशद्रोही!

mera desh
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देश में बहुत सारे लोग बिना कुछ किये-धरे चौकीदार बन गए और वही लोग एक ऐसे शहीद पर सवाल उठा रहे हैं,जो देश के लिए, आम लोगों की जान बचाने के लिए फ़र्ज़ पर क़ुर्बान होने निकल पड़ा। वह यह कर सकता था कि हैलो-हैलो करता रहता और मौक़ा-ए- वारदात पर तब पहुंचता जब सब कुछ खत्म हो चुका होता। जैसा कि बहुत सारे सांप्रदायिक दंगों के समय राजनीतिक संरक्षण प्राप्त पुलिस के आला अफसर करते रहे हैं। गुजरात के कांग्रेसी नेता एहसान जाफरी के साथ हुआ मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है।

लेकिन हेमंत करकरे ने जान की परवाह नहीं की। जैसा कि सब जानते हैं कि 26/11के हमले में वह ड्यूटी करते हुए शहीद हो गए।
एक वीर,साहसी पुलिस आफिसर जिसने फ़र्ज़ पर जान दिया। अपने फ़र्ज़ से भागा नहीं, उसने साध्वी प्रज्ञा को फर्जी फंसाया होगा, इस पर कैसे विश्वास किया जा सकता?

प्रज्ञा हेमंत करकरे को देशद्रोही बता रही हैं। अब चूंकि वह केंद्र में सत्तासीन दल की प्रत्याशी हैं तो वह ज़िम्मेदारी से यह कह रही होंगी।
एक बात और साध्वी प्रज्ञा ने हेमंत करकरे को सर्वनाश का श्राप दिया था और उन्हें परम आनंद प्राप्त हुआ जब वह देश के दुश्मनों के हाथों शहीद हुए। एक आदमी देश के लिए लड़ते हुए शहीद हुआ और वह खुश हैं कि चलो उनका श्राप देश के दुश्मनों के हाथ से पूरा हुआ। आखिर क्या कारण था कि उनके श्राप को पूरा करने के लिए पाकिस्तान से आतंकी आए और इस सब में सैकड़ों दूसरे मासूम लोगों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी और वह इस बात की परवाह किये बिना कि यह आतंकवादियों का देश पर हमला था,इस बात से प्रसन्न हैं कि इस हमले में हेमंत करकरे मारे गए।

बहरहाल शहीद हेमंत करकरे के बारे में उनकी बात को सच मान लिया जाए तो उनसे शहीद का दर्जा और उन्हें प्राप्त वीरता का पुरस्कार अशोक चक्र वापस ले लेना चाहिए। यह काम तो जब भाजपा सरकार बनी,तभी किया जाना चाहिए था। किसी देशद्रोही(साध्वी के शब्दों में) के पास अशोक चक्र रहे यह स्वीकार्य नहीं और यदि भारत सरकार हेमंत करकरे को देशद्रोही नहीं मानती तो साध्वी को भाजपा का प्रत्याशी बनाये रखना क्या है ?
हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बार-बार कह चुके हैं कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। यह अच्छी बात है,हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। मैं थोड़ा आगे बढ़ कर कहना चाहता हूँ । यदि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता तो देशद्रोही भी नहीं हो सकता। लेकिन साध्वी प्रज्ञा कह रही हैं करकरे देशद्रोही था। हमने आपकी बात भी मान ली और साध्वी प्रज्ञा की भी,दुविधा के साथ सही। अब स्पष्ट है दोनों तो सही नहीं हो सकते। हेमंत करकरे या प्रज्ञा सिंह,दोनों में से कोई एक ही सही है। यदि साध्वी सही हैं तो करकरे देशद्रोही थे और किसी देशद्रोही को शहीद कहना उसे प्राप्त अशोक चक्र को बनाये रखना उचित नहीं। फिर भाजपा इस मामले में कुछ करती क्यों नहीं? यदि भाजपा हेमन्त करकरे को सही मानती है तो साध्वी गलत हैं,ऐसे में उनको अपना प्रत्याशी बनाये रखकर भाजपा क्या साबित करना चाहती है?

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