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इस समय देश में चुनावी माहौल है. देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों ने इस माहौल में अपने आप को रंग दिया है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है. पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ बोलने के लिए कोई भी मौका नहीं छोड़ रही हैं. कहीं से कोई भी मुद्दा यदि बाहर आता है तो राजनीतिक दल उसको राजनीतिक रूप देने में पीछे नहीं हटते. लेकिन फिलहाल जो मुद्दा अभी सामने आया है वह भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की फांस बनता जा रहा है. कर्नाटक विधानसभा सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी के विधायकों द्वारा अश्लील वीडियो देखना जहां कांग्रेस के लिए हमला करने का मौका देता है वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव में एक बुरे सपने की तरह है. पहले से ही कर्नाटक की करतूतों से बीजेपी अपने आप को पूरी तरह से धो नहीं पाई कि उनके सामने एक और मुद्दा उसकी सेहत को बिगाड़ सकता है.
लोकतंत्र का मंदिर अपने बुरे कामों के लिए प्रसिद्ध है और इसका भी अपना एक अलग इतिहास है. जनता अपनी तरफ से साफ छवि के नेता को इस मंदिर में भेजती है ताकि वह देश के हित के लिए कुछ कानून बना सके लेकिन अच्छे कानून तो बनना दूर नेता वहां पहुंच कर हैवानियत का रूख अपना लेते हैं.
एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अश्लील भाषा का प्रयोग करना लोकतंत्र के मंदिर में आम हो चुका है जिसे इस मंदिर के प्रत्येक सत्र में सुना और देखा जा सकता है. चप्पल-जूते फेंकना, कुर्सियों और मेजों की तोड़फोड़ करके कई बार इन्होंने हमारे मंदिर को शर्मशार किया है. अध्यक्ष के उपर जुबानी और शारीरिक हमले भी इसका एक नया रूप है. यहां तक तो ठीक है लेकिन अब तो हद हो गई जब इन्होंने अपने विशेषाधिकारों का इस तरह से प्रयोग किया कि लोकतंत्र के मंदिर को वेश्यालय बना दिया. इस पर मुझे ओम पुरी की वह टिप्पणी याद आ गई जो उन्होंने रामलीला मैदान में कही थी. उन्होंने इन नेताओं को “गंवार” और “नालायक” का दर्जा दिया था जिससे हमारे कु’माननीय’ नेता काफी तिलमिला गए थे. लेकिन मेरा मानना है कि उपरोक्त शब्द का इस्तेमाल करके ओम पुरी ने उनका सम्मान किया था.
विधानसभा या संसद में इनकी जो हरकत है वह किसी को बताने या फिर दिखाने लायक नहीं है. ना जानकर भी सारी दुनिया इनके करतूतों से भलीभांति परिचित है. यह नेता चुनाव में जीतने के लिए बेशर्मी की सारी हदें पार कर देते हैं. जब देश की छवि की बात आती है वहां भी अपने बुरे कामों से देश को अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. अधिकतर ऐसा देखने में आया है कि जो काम इन्हें दिया गया है उससे कोसों दूर हटकर यह गलत कामों में संलिप्त होते हैं. अब यहां यह समस्या आती है कि न बर्दाश्त किए जाने वाले इनके बुरे आचरण से हमारी आम जनता कैसे निपटे. इन्हें वोट देते समय इनकी कौन सी योग्यता वह अपने दिमाग में रखे.
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