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75 प्रतिशत लोगों का न्याय प्रणाली से भरोसा डिगा

जन जागरण
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली

देश में इंसाफ की आखिरी उम्मीद भी अब चुकने लगी है। न्यायिक सुधार पर आठ राज्यों के 29 शहरों में करीब दो सप्ताह चले जनजागरण अभियान ने यह तल्ख सच्चाई उघाड़ दी है कि आम लोग न्याय प्रणाली में विश्वास खो रहे हैं। करीब एक लाख लोगों के बीच हुए अपनी तरह के पहले एवं सबसे बड़े जनजागरण सर्वेक्षण में 75 फीसदी लोगों ने दोटूक कहा कि न्याय प्रणाली में उनका भरोसा डगमगाने लगा है। जनता न केवल एक पारदर्शी न्याय प्रणाली के लिए बेचैन है, बल्कि यह भी चाहती है कि मुकदमों के निपटारे के लिए समय-सीमा तय की जाए। आम लोगों की बेबाक राय है कि कानून से ऊपर कोई न हो, न्यायमूर्ति भी नहीं। 26 जुलाई से आठ अगस्त तक चले इस अभियान में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर के उच्च न्यायालय केंद्रों सहित 29 शहरों को शामिल किया गया। जनजागरण अभियान में यह बात बहुत मुखर होकर सामने आई कि आम लोग न्यायिक प्रणाली में विश्वास खो रहे हैं। यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि न्याय से भरोसा उठना अराजकता को आमंत्रण है। उच्च न्यायालय और जिला अदालतों में हुए सर्वेक्षण में लोगों से यह पूछा गया था कि न्यायिक व्यवस्था में उनको कितना भरोसा है, आधा, पूरा या बिल्कुल नहीं। लगभग 75 फीसदी लोगों की प्रतिक्रिया थी कि उनको न्यायपालिका में या तो बिल्कुल भरोसा नहीं है या भरोसा आधा-अधूरा है। जब न्याय व्यवस्था में भरोसा नहीं है तो संतुष्टि कैसे होगी। इसलिए न्याय व्यवस्था से संतुष्टि का प्रतिशत आश्चर्यजनक तौर पर दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सका। ऐसे लोग चार फीसदी से भी कम थे जिन्हें न्यायिक प्रणाली संतुष्ट कर रही थी। देश की आम जनता अदालतों में अंधेर से बुरी तरह परेशान है।


सर्वेक्षण के तहत एक सवाल के जवाब में 81.1 प्रतिशत प्रतिभागियों ने न्याय व्यवस्था को भ्रष्ट बताया। अदालतों की साख के लिए यह निष्कर्ष बहुत गंभीर है। अदालतों में अपारदर्शिता से परेशान लोगों ने बेबाक तौर पर कहा कि उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण को भी सख्त कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। जनजागरण के तहत दैनिक जागरण ने जनता के सामने त्वरित न्याय, पारदर्शी न्याय, सस्ता न्याय और सक्षम न्याय जैसे चार मुद्दे रखे थे और सर्वेक्षण में एक सवाल के जरिये यह पूछा था लंबित मामले, भ्रष्टाचार, पुराने कानून या महंगा इंसाफ में सबसे बड़ी समस्या क्या है। जवाब में लोगों ने अपारदर्शिता व लंबित मामलों को न्याय प्रणाली के सामने बड़ी चुनौती बताया। लंबित मामलों से परेशानी का आलम यह है कि 88 फीसदी लोग मामलों के निपटारे की समय-सीमा तय करने के पक्ष में हैं जबकि 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने इस बात की हामी भरी है कि ऑनलाइन मुकदमे दायर करने की इजाजत दी जाए। हालांकि सर्वे में 36.6 फीसदी से अधिक लोगों ने इस सुझाव पर असहमति भी जताई है। दैनिक जागरण ने अपने अभियान एवं सर्वेक्षण के जरिए यह जानने की भी कोशिश की थी कि मुकदमा लड़ रहे या अदालतों के चक्कर काट चुके लोगों को न्यायिक प्रणाली से कैसा अनुभव मिला है। सवालों के जवाब में 55 फीसदी लोगों ने माना कि वह मुकदमा लड़ रहे हैं या मुकदमे में उलझ चुके हैं। वहीं 35.8 फीसदी लोगों की नजर में उन्हें अदालत से केवल आंशिक न्याय ही हासिल हो पाया। अर्थात करीब 70 फीसदी लोग न्याय से संतुष्ट नहीं हुए। मुकदमे को लेकर 41.2 फीसदी लोगों ने अपने अनुभव को खराब और 27.6 प्रतिशत लोगों ने बेहद खराब बताया।

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