- 18 Posts
- 25 Comments
माला दीक्षित, नई दिल्ली
नॉट विद स्टैंडिंग.. कानूनों का सबसे परिचित शब्द, जो हर कानून की हर दूसरी-चौथी धारा के बाद लिखा जाता है। इसका मतलब है कि इस कानून के बावजूद सरकार इसके विपरीत प्रावधान कर सकती है। बात सीधी है लेकिन समझ में नहीं आती। आए भी कैसे देश के कानून लिखने का ढंग वर्ष 1835 में लॉर्ड मैकाले ने तय किया था जो आज तक बदस्तूर जारी है। इसकी भाषा से कानून लागू करने वाले भी चक्कर खा जाते हैं और अदालतें कानूनों की व्याख्या में उलझ जाती हैं। मुकदमों के ढेर का एक कारण यह भी है। अंग्रेजी हो या हिंदी तर्जुमा, कानून की एक भी धारा पढ़ते ही समझ नहीं आती। कानूनों की कठिन भाषा और दर्जनों व्याख्याएं न्याय की कोशिशों को पेंचदार बना देती हैं। संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसी अनुच्छेद का तीसरा उपखंड इसे नकार देता है। वर्ष 1951 में पहले संविधान संशोधन के जरिए इसी अनुच्छेद में चौथा उपखंड जोड़ा गया। अब संशोधित कानून की भाषा देखिए यह अनुच्छेद या अनुच्छेद 29 का उपखंड-दो, राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के उत्थान के लिए विशेष उपबंध बनाने से नहीं रोकेगा। संशोधन को समझने के लिए अनुच्छेद-29 और उपखंड-दो का भी मतलब पता होना जरूरी है।
अनुच्छेद-29 में भाषा और संस्कृति के आधार पर अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने की व्यवस्था है। इसका उपखंड-दो कहता है कि सरकार की ओर से या सरकार की मदद से चलाई जा रही शिक्षण संस्थाओं में किसी व्यक्ति को सिर्फ धर्म, नस्ल, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता। संविधान और इसके तहत बने कानून दर्जनों कानून व्याख्याओं के लिए सुप्रीम कोर्ट गए हैं और व्याख्याओं से इनके असर भी बदलते रहे हैं। शुरू के चार दशक में सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों का अधिकार सरकार के पास था। वर्ष 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की ऐसी व्याख्या कर दी कि नियुक्ति व्यवस्था सरकार के हाथ से खिसककर न्यायपालिका के हाथ में आ गई। अगर प्रावधान स्पष्ट होते तो इतने बड़े बदलाव के लिए संविधान में संशोधन होता।
कानून विशेषज्ञ डॉ. माधव मेनन ने कहा था कि भारत में कानूनों की ड्राफ्टिंग शैली ठीक नहीं है। इसीलिए कानून की व्याख्या के लिए अदालत के पास जाना पड़ता है। विधि आयोग की कई रिपोर्टो में कानून लिखने में स्पष्टता का विषय उठाया गया है। अब जाकर सरकार चेती है और कानून की ड्राफ्टिंग सिखाने के लिए एक संस्थान बना है। हालांकि सैकड़ों मौजूदा कानूनों की पेंचदार भाषा से बचने का फिलहाल कोई रास्ता नहीं है।
आगे पढ़ने के लिए यहॉ क्लिक करें
जन जागरण वेबसाइट पर जाने के लिए यहॉ क्लिक करें
Pledge your support to Jan Jagran for Justice
Read Comments