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मुद्दई रहे न पैरोकार, चल रहा मुकदमा

जन जागरण
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रमेश शुक्ला सफर, अमृतसर

23 वर्ष गुजर गए इंतजार में। जमीन का मुआवजा तो मिला नहीं, हां मौत ने जरूर दस्तक दे दी। मुआवजे के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले 22 लोगों में अधिकांश स्वर्ग सिधार गए। केस लड़ने वाले दो वकील भी गुजर गए। जिस शुगर मिल के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था, उसके बंद होने के बाद किसानों के बच्चों को मिली नौकरी भी छिन गई है। मुकदमा अमृतसर की जिला अदालत से चलकर हाईकोर्ट व अब सुप्रीमकोर्ट की चौखट पर है। तरनतारन के शेरो गांव के 22 लोगों ने 1987 में सरकार द्वारा लगाई गई शुगर मिल (माझा को-ऑपरेटिव शुगर मिल) के लिए जमीन अधिग्रहण के बाद मुआवजे के लिए अदालत की शरण ली थी। मुआवजे के इंतजार में केस लड़ने वाले 22 लोगों में अधिकांश की मौत हो चुकी है, जो जीवित हैं उनमें भी सोहन सिंह की उम्र 85 साल है। सकतर सिंह 90 के करीब हैं, जबकि दीप कौर की उम्र 90 के आसपास है। फिर भी इन्हें पिछले 23 साल से मुआवजे का इंतजार है। केस की शुरुआती लड़ाई लड़ने वालों की अब दूसरी पीढ़ी केस लड़ रही है। एडवोकेट नवदीप कौर बताती हैं कि 21 मई 1987 को शिकायतकर्ताओं ने अमृतसर की अदालत में पंजाब सरकार व शुगर मिल के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया कि शुगर मिल ने 120 बीघा भू-अधिग्रहण में 12 हजार रुपये बीघा के हिसाब से मुआवजा देने का वादा किया गया था, लेकिन यह मुआवजा नहीं दिया गया और जो दिया गया वह भी तय रकम से कम था। अमृतसर की अदालत ने 10 अप्रैल 1995 को आदेश जारी किया कि किसानों को उनकी जमीन का 33 हजार रुपये (उपजाऊ जमीन) व 22 हजार रुपये प्रति बीघा (बंजर जमीन) के हिसाब से मुआवजा दिया जाए। पर किसान इस राशि से संतुष्ट नहीं थे। लिहाजा, 28 फरवरी 1996 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की गई। करीब 13 साल बाद 12 जनवरी 2009 को हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया कि सभी जमीनों का रेट एक समान 45,120 रुपये प्रति बीघा के हिसाब से दिया जाए। इससे भी किसान संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने 28 जुलाई 2009 को सुप्रीम कोर्ट की राह पकड़ ली।

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