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विनय शौरी, पटियाला
अब इसे कानून की जटिलता कहें या प्रक्रिया में खामी, लेकिन वास्तविकता यह है कि खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है। अपनी जमीन हासिल करने के लिए पटियाला के एक परिवार ने 31 जुलाई 1980 को अदालत की शरण थी, लेकिन आज तक फैसला नहीं हो सका है। इतना ही नहीं यह मामला करीब दस बार हाईकोर्ट और एक बार सुप्रीम कोर्ट का चक्कर लगा चुका है, लेकिन कुछ तकनीकी कमी की वजह से 1996 में यह केस सुप्रीम कोर्ट ने वापस निचली अदालत में भेज दिया। खास बात यह कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की फाइल को निचली अदालत तक आने में 12 साल लग गए। वर्ष 2008 में पटियाला अदालत पहुंची इस केस की फाइल के आधार पर नए सिरे से मामले की सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान 13 वकील बदल गए और लाखों रुपये खर्च हो गए। स्थिति यह है कि दोनों पक्ष कुल मिलाकर जमीन की कुल कीमत से ज्यादा की राशि मुकदमा लड़ने में खर्च कर चुके हैं। पटियाला की पातड़ा तहसील के कलवाणू गांव के रहने वाले बदामा राम और उसके भाई भजना राम पुत्र कली राम की गांव में 184 कनाल (23 एकड़) जमीन थी। 1974 में इस जमीन पर उनकी रिश्तेदारों निहालो और परसिन्नी ने दावा जताना शुरू कर दिया। बदामा राम और भजना ने रिश्तेदारों के माध्यम से मामला सुलझाने का प्रयास किया लेकिन जब कोई हल निकला तो बदामा भाइयों ने अदालत की शरण ली, लेकिन अदालत तीस वर्षो में इस जमीन का फैसला नहीं कर सकी है। मामले के शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों की मौत के बाद उनके वंशज इस जमीन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। अब जमीन हासिल करने को परिवार की तीसरी पीढ़ी केस लड़ रही है। बदामा राम के पुत्र हाकम सिंह, कपूर सिंह, सुखवंत सिंह और नैब सिंह में कपूर सिंह की मौत हो चुकी है और उसके पुत्र अमनदीप, दर्शन सिंह, बलविंदर सिंह और संदीप सिंह केस की पैरवी कर रहे हैं। इसी प्रकार भजना राम के पुत्र मोहार सिंह, मग्घर सिंह, रघुबीर सिंह, लक्खा और बलदेव सिंह में बलदेव की मौत हो चुकी है और बलदेव का पुत्र गुरविंदर सिंह केस की पैरवी कर रहा है। अपनी जमीन होने के बावजूद पूरा परिवार गांव में ठेके पर जमीन लेकर खेती कर रहा है। कुछ सदस्य मजबूरी में यहां-वहां नौकरी कर रहे हैं।
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