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युवा देश में उम्रदराज कानूनों का राज

जन जागरण
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माला दीक्षित, नई दिल्ली


नया देश, युवा पीढ़ी मगर कानून बाबा के जमाने के। भारत के कानून निर्माता नए कानून गढ़ने के फेर में पुराने कानून बदलना ही भूल जाते हैं। देश पुरातात्विक महत्व वाले कानूनों का एक दिलचस्प संग्रह बन गया है, वहीं नए कानून कुछ विसंगतियां पैदा कर देते हैं।

प्रशासनिक विधि समीक्षा आयोग (कमीशन आन रिव्यू ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ) तो 12 साल पहले 1300 कानूनों को पुराने और अनुपयोगी बताकर बदलाव की सिफारिश कर चुका है लेकिन सरकारी कानूनों की सूची में दर्जनों पुराने कानून बाकायदा मौजूद और लागू हैं। दिल्ली कितनी बदल गई पर 1958 का रेंट कंट्रोल एक्ट अब तक गले में फंसा है। जानलेवा दुर्घटनाओं से संबंधित फैटल एक्सीडेंट एक्ट तो गदर से भी पहले 1855 का है। कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं रहा लेकिन अभी इसे आधार बनाकर जीवनसाथी से तलाक लिया जा सकता है। देश में 1869 का तलाक कानून आज भी लागू है।

हमारे यहां पोस्ट ऑफिस 1898 के कानून के तहत चलता है और रेलवे बोर्ड 1905 के कानून के तहत। देश में 1880 का काजी एक्ट अब भी मौजूद है और 1879 का लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट भी। किसानों के कर्ज से जुड़ा कानून 1884 का है और फैक्ट्रीज एक्ट 1948 का। गंगा पुल पर चुंगी 1867 के कानून के तहत लगती है और सरकारी इमारतें 1899 के कानून के तहत हैं। आधुनिक रेस्टोरेंटों पर 1867 का सराय एक्ट लागू है जो मुसाफिरों को पानी पिलाने के लिए बना था। ..पुराने कानूनों की यह कथा बहुत लंबी है, क्योंकि यहां न तो सही वक्त पर कानूनों की समीक्षा होती है और न ही ज्यादातर कानूनों में उनके समाप्त होने की कोई सीमा अर्थात सनसेट क्लॉज तय हैं। भारत की नई पीढ़ी को नए कानून तो नहीं मिलते अलबत्ता कानूनों में ढेर सारे संशोधन जरूर मिल जाते हैं। 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में कई संशोधनों के बावजूद पुरानापन कायम है। आईपीसी की धारा 497 में एडल्टरी (व्यभिचार) अपराध माना गया है लेकिन इसके तहत सिर्फ पुरुष ही अपराधी हैं, महिला को उकसाने तक का अपराधी नहीं माना जाता। आईपीसी (धारा 375) 15 साल की पत्नी से सहवास को बलात्कार नहीं मानती लेकिन कानून में वयस्कता की आयु 18 वर्ष है। 15-16 वर्ष के दंपति माता पिता तो बन सकते हैं लेकिन सरकार नहीं चुन सकते। 1861 का पुलिस एक्ट सबसे बड़ा उदाहरण है। पुलिस एक्ट को बदलने की बहस पुरानी है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी पुलिस सुधार का आदेश दे चुकी है। भारत के विधि निर्माताओं को कानूनों के पुरानेपन का अहसास है, लेकिन विधायी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कानून बदलना आसान नहीं। कानून मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि कानूनों को बदलने से संबंधित विधि आयोग की 37 रिपोर्टो पर सरकार विचार कर रही है। इनमें एक रिपोर्ट तो करीब 42 साल पुरानी है जो कि कांट्रैक्ट से संबंधित है।

पीढि़यां बदलीं, कानून नहीं


13वीं रिपोर्ट : भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 17वीं रिपोर्ट : भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 65वीं रिपोर्ट : विदेशी तलाकों की मान्यता 70वीं रिपोर्ट : संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 83वीं रिपोर्ट : संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 और हिंदू अप्राप्यवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के कतिपय उपाबंध 86वीं रिपोर्ट : विभाजन अधिनियम, 1893 89वीं रिपोर्ट : परिसीमन अधिनियम, 1963 108वीं रिपोर्ट : वचन-विबंध 111वीं रिपोर्ट : घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 133वीं रिपोर्ट : स्त्री में अवयस्कों की संरक्षकता और संरक्षा के विषय, विभेद का हटाया जाना 136वीं रिपोर्ट : केंद्रीय विधियों (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 (1) और धारा 23 तथा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 ख, धारा 19, धारा 28 क और 28 (5) के संबंध में उच्च न्यायालय के विनिश्चयों में टकराव) 157वीं रिपोर्ट : संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 का संशोधन 176वीं रिपोर्ट : माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996 178वीं रिपोर्ट : सिविल और दांडिक दोनों में अनेक अधिनियमितियां 183वीं रिपोर्ट : कानूनों के निर्वचन और विधि आयोग की 60वीं रिपोर्ट की सुसंगतता/वांछनीयता की बाह्य सहायता ग्राह्यता से संहिताकरण के विशेष निर्देश से साधारण खंड अधिनियम, 1897 की निरंतरता  185वीं रिपोर्ट : भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 166 क) (धारा 113 सहित)  192वीं रिपोर्ट : तंग करने वाले मुकदमे का निवारण  193वीं रिपोर्ट : राष्ट्र-पार मुकदमे, विधि संघर्ष, परिसीमा विधि  194वीं रिपोर्ट : माध्यस्थम् पंचाट का रजिस्ट्रीकरण और स्टांप शुल्क का सत्यापन द्य 199वीं रिपोर्ट : संविदा में अत्रृजु प्रक्रिया और अधिष्ठायी निबंधन  204वीं रिपोर्ट : 2005 के अधिनियम 39 द्वारा यथासंशोधित हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 को संशोधित करने का प्रस्ताव  205वीं रिपोर्ट : बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 तथा अन्य सहबद्ध विधियां संशोधित करने का प्रस्ताव  207वीं रिपोर्ट : बिना उत्तराधिकारी के अपनी अर्जित संपत्ति को निर्वसीयत छोड़कर मरने वाली महिला के मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15 में संशोधन का प्रस्ताव 208वीं रिपोर्ट : विभाजन की परिभाषा में मौखिक विभाजन तथा कौटुंभिक समझौता को शामिल करने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 के स्पष्टीकरण में संशोधन का प्रस्ताव द्य 209वीं रिपोर्ट : भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 में धारा 213 के लोप का प्रस्ताव  211वीं रिपोर्ट : विवाह और विवाह विच्छेद के रजिस्ट्रीकरण पर विधियां-समेकन और सुधार का प्रस्ताव 212वीं रिपोर्ट : भारत में सिविल विवाह विधि-कतिपय विरोधों को दूर करने के प्रस्ताव  217वीं : असुधार्य विवाह भंग-विवाह विच्छेद के लिए एक और आधार 218वीं रिपोर्ट : अंतर्राष्ट्रीय बालक अपहरण के सिविल पहलुओं पर हेग कन्वेंशन को मान लेने की आवश्यकता द्य 219वीं रिपोर्ट : अनिवासी भारतीयों के लिए कुटुंब विधि विधानों की आवश्यकता 221वीं रिपोर्ट : शीघ्र न्याय के लिए आवश्यकता-कुछ सुझाव  222वीं रिपोर्ट : अनुकल्पी विवाद समाधान, आदि के माध्यम से न्याय-वितरण की आवश्यकता 223वीं रिपोर्ट : निर्धनों के भाग्य को सुधारने की आवश्यकता-उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्य 224वीं रिपोर्ट : अनधिवसित अलग कर दी गई ईसाई पत्नियों को विवाह-विच्छेद मांगने के लिए समर्थ बनाने हेतु विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1869 की धारा 2 का संशोधन  226वीं रिपोर्ट : भारतीय दंड संहिता विनिर्निष्ट अपराधों के रूप में तेजाब से आक्रमणों को और अपराध के पीडि़तों के लिए प्रतिकर संबंधी किसी विधि को सम्मिलित किए जाने पर 227वीं रिपोर्ट : इस्लाम से संपरिवर्तन द्वारा द्विविवाह का निवारण उच्चतम न्यायालय विनिर्णयों को कानूनी प्रभाव देने के लिए प्रस्ताव 228वीं रिपोर्ट : सहायता प्राप्त जननीय प्रौद्योगिकी (एआरटी) क्लीनकों और साथ ही स्थानापन्नता सरोगेसी के प्रति पक्षकारों के अधिकारों और बाध्यताओं को विनियमित करने के लिए विधान की आवश्यकता

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