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भारत में संसदीय प्रजातंत्र है .इस व्यवस्था में लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाया जाता है.मतलब प्रधानमंत्री का चयन मतगणना की समाप्ति के बाद ही होता है . पर इस चुनाव में एक नया प्रचलन देखने में आरहा है वह है चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार की घोषणा .इस उम्मीदवार के नाम से न केवल दल के लिए वोट मांगे जारहे है वरन उसी के नाम आगामी सरकार की भी घोषणा की जारही है.बारबार प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार का नाम लेकर नए नए आश्वासन दिए जारहे हैं और जनता में दाल के प्रति रुझान भी उसी नाम के बल पर बढ़ाने की कोशिश की जारही है .
कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहेंहै इसे व्यक्तिवाद कहकर और कुछ इसे तानाशाही बोल रहे है. पर अमेरिका में अध्यक्षीय प्रणाली में तो दल के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम से ही जनता वोट मांगे जाते है और यह तो वहां एक संवैधानिक परंपरा बन गयी है.इसीलिए अगर किसी दल में कोई मजबूत इरादोवाला,आत्मविश्वासी ,और प्रखर नेता है तो उसे प्रधानमन्त्री पद के लिये आगे करके उसके नाम से वोट मान्गनेमे क्या बुराइ है?यह प्रचलन दलीय कूटनीति के लिये लाभदयक है.यह न तो व्यक्तिवाद है और न ही इसमे तानाशाही की सम्भवना है.क्योकि प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति के लिये तानाशाह बनने के रास्ते मे अनेक सम्वैधानिक बाधाये है.
Jayshree Purwar, Orai
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