dotuk
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सुकून की तलाश में हमने
सबको अपना बनाया,
पर बन सका ना कोई अपना।
किसी की चाहत,
किसी की मजबूरी,
जो साथ मिला,
था वो खुशफहमी।।
मैं था तन्हा,
हूं तन्हा,
हर खुशी हर गम में।
रहा आंसू मेरा साथी
बिना किसी चाहत
बिना किसी मजबूरी के।।
इस अनमोल रत्न ने हर वक्त दिया
संबल आगे बढऩे का, मंजिलें पाने का,
जब भी दिल में हुआ दर्द या खुशी
ये छलक पड़ा नि: स्वार्थ।
भले ही ये हो खुशफहमी
पर यह सबसे अच्छा साथी
सबसे अच्छा हमसफर
सबसे बड़ी ताकत
नहीं इसमे कोई संदेह।।
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