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वो प्यारी सी सोयी रहती है

जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
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मैं जागता हूँ जिसकी ख़ातिर,
वो प्यारी सी सोयी रहती है,

हम जब भी उसे देखते हैं,
कहीं और ही खोई रहती है,

डर के सहम सी जाती है,
जब मेरी नज़रें पड़ती हैं,

शायद कुछ मजबूरी है या,
कोई अड़चन है ऐसे जीने में,

या तो कोई है बसा हुआ,
या है ख़ुद बंद कसीने में,

एक भय सा उसको रहता है,
मैं डुबो ना दूँ उसकी कश्ती,

सब दरवाज़े कर बंद मेरे से,
अपनी दुनिया में रहती है,

वो सपना नहीं मेरा कोई,
फिर भी सपनो में आती है,

मैं अपना नहीं कोई उसका,
पर वो अपनों में आती है,

नहीं वास्ता उसे मेरा पर,
जब मिलती है मुश्काती है,

नज़रों से ओझल होकर वो,
अपनी धुन में खोई रहती है,

मैं जागता हूँ जिसकी ख़ातिर,
वो प्यारी सी सोयी रहती है।

…ज़िद्दी जीतू

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