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धन तो काला था ही, अब मन भी काला कर डाला, विदेश से लाने के बदले, घर में ही उसने डाका डाला।

जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
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धन तो काला था ही, अब मन भी काला कर डाला,
विदेश से लाने के बदले, घर में ही उसने डाका डाला।

जहाँ सरकारें बनती हैं काले धन से, काले धंधे होते हैं,
वोटर की यहाँ ख़रीदी में, मतदाता भी मंदे होते हैं,
नेताओं की बंद तिजोरी से, जब चुनावी खेप पहुँचती है,
फिर काले चश्मे में नेताओं के चेहरे नंगे होते हैं।

उन काली बंद तिजोरी में सोना चाँदी और हीरे हैं,
अब बतलाओ नेता जी, ऐसे कितने दिल चीरे हैं,
नेताओं की धन धरती का कुछ बाल ना बाँका कर पाए,
और उस पे लूट मचा बैठे जो आम आदमी के तीरे है।

क्या बीतेगी उस माँ पर जिसने पाई पाई जोड़ी होगी,
बेटी के सपनों की ख़ातिर, कितनी ख़्वाहिश तोड़ी होंगी,
कुछ चंद दिनों के लिए उसे कितना परेशान किया तुमने,
बैंक बाज़ारी के चक्कर में तकलीफ़ नहीं थोड़ी होगी।

उस माँ को क्या समझाओगे, की ये जुमलों के मयखाने थे,
फिर वो पन्द्रह लाख कहाँ रक्खे जो काले धन के लाने थे,
उस भरे भारतीय भंडारों को कौन से बिल में ठेल दिया,
क्यों पर्दा डाल रहे उसपे, जिसपे हल चलवाने थे।

बाबा ने कठिन कमाई से, जो दो दो पायी जोड़ी थीं,
वो बैंक आदि से दूर रहे, उनको भी आफ़त में डाला,
बाहर से लाने में असमर्थ हुये, अब मुद्दे पे ही पर्दा डाला,
गोलू की मिट्टी वाली गोलक को झटके में निपटा डाला।

धन तो काला था ही, अब मन भी काला कर डाला,
विदेश से लाने के बदले, घर में ही उसने डाका डाला।
…ज़िद्दी जीतू

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