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आंगनवाड़ी बच्चों का पोषण, स्वास्थ्य और स्कूल से पहले की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए एक सामुदायिक कार्यक्रम है। आज के समय में इसके अंतर्गत वो गॉंव और झुग्गी झोपड़ियों की बस्तियॉं आती हैं, जो सामाजिक और आर्थिक स्तर पर पिछड़े हुए हैं। इसके अंतर्गत 6 साल से कम के बच्चों को शामिल किया जाता है। आई.सी.डी.एस. के घटक विकास चार्ट के आधार पर–
(1) आहार की आपूर्ति
(2) टीकाकरण और विटामिन ए की आपूर्ति
(3) स्कूल से पहले की पढ़ाई
(4) स्वास्थ्य शिक्षा
(5) मांओं के लिए पोषण संबंधी शिक्षा
(6) स्वास्थ्य जांच। जिस समूह को इसका लाभ मिलना होता है उसे दो उपसमूहों में बांटा जाता है।
एक 36 महीनों से कम के बच्चों का समूह और दूसरा 36 से 72 महीनों तक की उम्र के बच्चों का समूह। छोटी उम्र वाले बच्चे घरों में अपनी मां के साथ रहते हैं। इसलिए उनके लिए यह कार्यक्रम तब तक बेकार रहता है, जब तक कि उनके घरों में न जाया जाए। इनके लिये अंगनवाड़ी से टेक होम रेशन का पॅकेट मिलता है| 3 साल से बड़ी उम्र वाले बच्चे आंगनवाड़ी (जो कि खिलाने का केन्द्र और बालबाड़ी होती है) में समय बिताते हैं।
ये आंगनवाड़ियॉं सुबह के समय चलती हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में टीकाकरण और आई.सी.डी.एस. के तहत स्वास्थ्य जांच होती है। आंगनवाड़ी की कार्यकर्ता थोड़ा बहुत पढ़ाने का काम करती हैं। ये कार्यकर्ता थोड़ी पढ़ी लिखी गॉंव की महिला होती हैं। एक और सहायक महिला खाना पकाने और खिलाने का काम करती है।
वृद्धि का रिकाॅर्ड रखना
आई.सी.डी.एस. (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस) कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बच्चे के विकास का चार्ट बनाना होता है। यह इस अध्याय में पहले बताया गया है। अगर वजन सबसे ऊपरी लाइन से भी ऊपर आए तो इसका अर्थ होता है कि आमतौर पर वृद्धि अच्छी है। कभी कभी ऐसे अपवाद भी हो सकते हैं जिनमें बच्चे का भार सामान्य से ज़्यादा हो और अधिक भार स्वास्थ्य की समस्या बन जाए।
‘स्वास्थ्य का रास्ता’ क्षेत्र से नीचे के भाग में 2 हिस्से होते हैं, जो क्रमश: कुपोषण की पहली, और दूसरी श्रेणियॉं दर्शाते हैं। वृद्धि चार्ट में से कोई निष्कर्ष निकालने से पहले यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि रेखा का अचानक नीचे गिरना, या आडी रहना, उसकी पूरी स्थिति से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। अगर बच्चा पहले से ही कुपोषित है तो बेहतर आहार देकर उसे इस स्थिति से उबरने में मदद करने की ज़रूरत है। अचानक वजन कम होने का कारण बीमारी या सीधे सीधे कुपोषण हो सकता है। इसलिए जैसे ही आपको वृद्धि चार्ट में वजन में गिरावट दिखे, तुरंत इसके लिए कदम उठाएं। सभी बच्चों का वजन उस तरह से नहीं बढ़ता जैसा की चार्ट के हिसाब से बढ़ना चाहिए।
उम्र के हिसाब से वजन वृद्धी आलेख – लड़के के लिए
उम्र के हिसाब से वजन वृद्धी आलेख – लड़कियों के लिए
कुछ बच्चे कुपोषण की पहली श्रेणी में ही रहते हैं। अगर बच्चा ठीक से खाना खा रहा है, खेलता है और चुस्त है तो चिंता की कोई बात नहीं है। परन्तु अगर बच्चा कुपोषण की दूसरी श्रेणी में है तो तुरंत कुछ न कुछ करने की ज़रूरत है। वजन के रिकाॅर्ड के अलावा चार्ट में और भी काम की जानकारी होती है जैसे टीकाकरण आदि के बारे में। इसलिए आई.सी.डी.एस. कार्यक्रम में वृद्धि चार्ट का खास महत्व है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का सबसे महत्वपूर्ण काम होता है नियमित रूप से बच्चे का वजन लेना और ज़रूरत के अनुसार पूरक आहार देना। इसकी तुलना में पोषण की जानकारी देना ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा है।
तीन साल की उम्र से कम के बच्चों को आई.सी.डी.एस. के कार्यकलापों से खास फायदा नहीं होता है। दोनों उपसमूहों में से यह उपसमूह ज़्यादा ज़रूरतमंद होता है। क्योंकि कम उम्र में ही पोषण की कमी और संक्रमण रोगों को पहचानना और उनका इलाज करना बेहतर होता है। आई.सी.डी.एस. कार्यक्रम का एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि इससे बच्चों के अत्यधिक कुपोषण की पहचान और उसका नियंत्रण हो पाया है। इसका एक और फायदा यह हुआ है कि इससे बहुत सारी महिलाओं को बुनियादी स्वास्थ्य शिक्षा मिल पाई है।
बांह का छल्ला
हम मानक बांह छल्ला तरीके से भी कुपोषण की जांच कर सकते हैं। यह एक फिल्म का छल्ला होता है जिसका हरा भाग 13.5 सेंटीमीटर लंबा और लाल भाग 12.5 सेंटीमीटर लंबा होता है। इनके बीच का एक सेंटीमीटर का पीला भाग होता है। अगर एक बच्चे (जिसकी उम्र 13 से 36 महीने हो) का बांह का घेरा 13.5 सेंटीमीटर से ज़्यादा हो तो उसका पोषण का स्तर संतोषजनक मान सकते हैं। लाल भाग कुपोषण दर्शाता है। यानि की अगर घेरा लाल भाग के अंदर आता है तो बच्चा कुपोषित है और पीला भाग दर्शाता है कि बच्चे का पोषण बस ठीक-ठाक है। बांह के छल्ले का तरीका केवल कुपोषण की जांच के लिए उपयोगी है, इससे पोषण के स्तर की जांच नहीं हो सकती है। पोषण के स्तर की निगरानी केवल वृद्धि चार्ट के माध्यम से ही हो सकती है।
इसके अलावा आँगनवाड़ी सेविकाओं को सरकार के कुछ अन्य काम भी दिए जाते हैं. जैसे सर्वे का काम. राशन कार्ड वितरण का काम. जन जागरूकता का काम. सरकार द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी जमीनी स्तर तक पहुँचाना.
पिछले दिनों मेरी मुलाकात कुछ आंगनवाड़ी सेविकाओं से हुई और अधिकांश लोगों का व्यवहार मुझे संतोषजनक लगा. उपर्युक्त चित्र मुनिया मुंडा आंगनवाड़ी सेविका और उनकी सहायिका का है. वह अपने ही घर में यह कार्यक्रम चलाती हैं. पिछले दिनों अपने राशन कार्ड की तलाश के दौरान इनसे मिला और इनसे प्रभावित होकर ही मैंने यह लेख लिखा ताकि आंगनवाड़ी सेविकाओं के बारे में जो गलत धारणा बनी हुई है वह दूर हो सके. सभी एक से नहीं होते पर उनमे अधिकांश अच्छे लोग भी होते हैं तभी दुनिया चल रही है.
इनका मानदेय हर राज्यों में अलग अलग है. अभी हाल ही में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इनके मानदेय में बढ़ोतरी कर के लगभग १०००० रुपये कर दी है और सहायिका को ५००० रुपये है, जबकि दूसरे राज्यों में इनकी आधी है, जो कि इनके मेहनत के अनुसार बहुत ही कम कही जाएगी. हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग जमीनी स्तर पर ज्यादा मेहनत का काम करते हैं, उनकी सैलरी बहुत ही कम होती है. हमारे जैसे लोगों का काम है ऐसे लोगों का उत्साह बढ़ाना और सोशल मीडया के माध्यम से आवाज उठाना, ताकि सरकार तक आवाज पहुंचे.
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