Menu
blogid : 3428 postid : 1388303

कर्नाटक में लोकतंत्र की जीत!

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

वाराणसी का पुल तो उसी दिन गिर गया था जिस दिन भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप जीत की खुशी मनाने का दिन था। प्रधानमंत्री ने शाम को अपने वक्तव्य में इसकी चर्चा भी की थी, कोई भी लापरवाही बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है।  इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए, अति आत्मविश्वास और अति आत्मश्लाघा अक्सर धोखा दे जाती है।

 

 

२८ मई १९९६ को माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी सबसे बड़े दल के नेता के रूप में संख्या बल नहीं होने के कारण विश्वास मत का सामना करने से पहले ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, पर वह भाषण शानदार था। उनका व्यक्तित्व भी विशाल था, उसके बाद भाजपा की तेरह दिन की सरकार भले ही गिर गयी थी पर उसके बाद वे प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आये थे। उनके भाषण का वह हिस्सा आज भी सभी की जुबान पर है- “पार्टियाँ आयेंगी जायेंगी पर यह देश रहना चाहिए और देश में लोकतंत्र रहना चाहिए”। उन्होंने कभी कांग्रेस से भारत को मुक्त करने की बात नहीं की, अलोकतांत्रिक और अनैतिक तरीके से सरकार चलाने की बात नहीं की। इसीलिए उनका आदर तब भी पूरा पक्ष और विपक्ष करता था।

१९ मई २०१८ को कर्नाटक विधानसभा में बीएस येदियुप्पा ने सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी के विधायक और स्पीकर राष्ट्रगान खत्म होने से पहले ही चले गए। इससे साबित होता है कि संस्थाओं का कितना सम्मान करते हैं। इतनी जल्दबाजी क्या थी महोदय? दुसरे को राष्ट्रभक्ति का उपदेश देनेवाले खुद इतनी बड़ी गलती कर बैठे? इस्तीफे से पहले बीएस येदियुरप्पा ने भावुक भाषण दिया।  कहा कि वह किसानों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे, उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के सुशासन की वजह से बीजेपी ने 104 सीटें जीती हैं। खबर है कि बीजेपी आलाकमान ने पहले ही संकेत दे दिया था कि नंबर न होने की स्थिति में बीएस येदियुरप्पा इस्तीफा दे देंगे ताकि चुनावी साल में किसी भी तरह के खरीद-फरोख्त का आरोप न लगे।  १५ मई २०१८ को मतगणना के बाद कर्नाटक विधानसभा में किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। बीजेपी 104 सीट पर जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस 78 सीटों पर जीत दर्ज की। जेडीएस के खाते में 38 सीट गई जीत दर्ज करने में सफल रहे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 19 मई की शाम 4 बजे कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्‍पा को अपना बहुमत साबित करना था। वे 17 मई की सुबह 9:30 बजे कर्नाटक के 25वें मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ लिए थे।

 

कर्नाटक संकट में शुरू से लेकर आखिर तक जो एक शख्स कांग्रेस के लिए संकटमोचक बना रहा। जब एक एक विधायक के लिए मार मची हुई थी ऐसे समय में जिसने कांग्रेस के सभी विधायकों को एकजुट रखा। उसका नाम है डी के शिवकुमार कर्नाटक में अब जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी। कांग्रेस इसे अपनी जीत बता रही है लेकिन इस जीत का असली श्रेय सिद्धरमैया सरकार में मंत्री रह चुके कांग्रेसी विधायक डी के शिवकुमार को जाता है। डी के शिवकुमार की रणनीति के आगे बीजेपी के सारे दांव फेल हो गए। दरअसल कांग्रेस-जेडीएस की जीत का नायक कांग्रेस का वो विधायक है जो पिछले 4 दिनों से सभी कांग्रेसी विधायकों को सेंधमारी से बचाने में लगा है।

 

 

कांग्रेस के 7 बार के विधायक डी के शिवकुमार ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण के पहले ही ये भविष्यवाणी कर दी थी कि येदुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे और उन्हें इस्तीफा देना होगा। शिवकुमार का ये दावा भी उस वक्त सही साबित हुआ जब विश्वास मत के पहले वो खुद आनंद सिंह का हाथ पकड़कर उन्हें विधानसभा के अंदर लाते देखे गए। इसके ठीक पहले विधानसभा के बाहर वो कांग्रेस के दूसरे विधायक प्रताप गौड़ा के साथ भी नजर आए, जब किसी ने गौड़ा को एक तरफ खींचने की कोशिश की तो डी के शिवकुमार ने हाथ पकड़कर उन्हें रोका।. दरअसल कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस ने डी के शिवकुमार को सभी कांग्रेसी विधायकों को एक साथ रखने की जिम्मेदारी सौंप दी थी। बेंगलुरु के ईगलटन रिसॉर्ट से लेकर हैदराबाद तक और फिर वहां से विधानसभा तक कांग्रेसी विधायकों को पहुंचाने की जिम्मेदारी को शिवकुमार ने पूरी जिम्मेदारी से निभाया। ये पहला मौका नहीं है जब डी के शिवकुमार कांग्रेस के संकटमोचक बने, पिछले ही साल राज्यसभा चुनाव के वक्त सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को जिताने के लिए गुजरात के कांग्रेस विधायकों की सुरक्षा का जिम्मा डी के शिवकुमार को सौंपा गया था। यही नहीं 2002 में महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख सरकार को गिरने से बचाने के लिए वहां के 40 कांग्रेसी विधायक को भी डी के शिवकुमार की देखरेख में बेंगलुरु के ईगलटन रिसॉर्ट में भेजा गया था।

 

स्वतंत्र पत्रकार राजेश कश्यप जी के शब्द – आज यही बात जेहन में बार-बार घूम रही है। मोदीजी आखिर क्या बना दिया आपने अपने पद को? ठीक है कि यह दौर शर्मनिरपेक्षता का है। लेकिन क्या वाकई सत्ता के ऐसे निर्लल्ज खेल में उतरे बिना आपका काम नहीं चल सकता था? पार्टी की फजीहत, नेताओं के झुके कंधे और विरोधियों के गर्वोन्मत अट्टाहास। आखिर क्यों मोल लिया आपने यह सब? सच बताउं तो आपकी फजीहत देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई अरबपति आदमी किसी मॉल में दो-चार सौ रूपये की कोई मामूली चीज़ चुराता हुआ रंगे हाथो पकड़ा गया हो। प्रधानमंत्री अगर चाहते तो सीना ठोककर यह कह सकते थे कि कर्नाटक की जनता ने हमें सबसे बड़ी पार्टी बनाया है और कांग्रेस को नकार दिया है। हमारे पास नंबर नहीं है तो हम विपक्ष में बैठेंगे. अगर कांग्रेस चुनाव के बाद सत्ता की खातिर गठजोड़ करके अपने विरोधी के साथ सरकार चलाना चाहती है तो चला लें. प्रधानमंत्री अगर यह स्टैंड लेते तो गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में बीजेपी की पुरानी कारगुजारियों के दाग धुल जाते। कार्यकर्ताओं में एक अलग तरह का नैतिक बल आता और कांग्रेस बैकफुट पर होती।  यह भी संभव था कि कुछ समय बाद जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिर जाती और बीजेपी किसी तरह सत्ता में आ जाती। लेकिन इसके बदले मोदीजी ने खुलेआम खरीद-फरोख्त का घटिया रास्ता चुना. बीजेपी तमाम नेता खुलेआम दावा करते रहे कि वे जरूरी विधायक खरीद लेंगे. राज्यपाल बेहयाई की सीमाएं तोड़ते हुए अनूठी स्वामीभक्ति दिखाई और जोड़-तोड़ के लिए 15 दिन का वक्त दिया। 20 से ज्यादा राज्यों में सरकार और अभूतपूर्व जनसमर्थन के बावजूद मोदीजी ने ऐसा रास्ता इसलिए चुना क्योंकि उनके बिना बालो वाले चाणक्य अपनी चुटिया खोलकर कांग्रेस के विनाश पर तुले हुए हैं। खुद मोदीजी परशुराम बनकर कांग्रेसियों के संहार के लिए निकल पड़े हैं. संहार उसी का होगा जो खरीदे जाने या बीजेपी में शामिल होने से बच जाएगा। लेकिन परशुराम भी क्षत्रियों का संहार पूरी तरह कहां कर पाये? जोगी ठाकुर तो आज भी बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं।

 

अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अब कर्नाटक, बीस मंत्री को लगाकर बोल देने से सब सही नहीं हो जाता। संविधान की झूठी व्याख्याओं के दंभ की हार हुई है. 26 जनवरी की रात अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन लगा था. नशे में चूर जनता को तब नहीं दिखा था, कोर्ट में हर दलील की हार हुई थी। उत्तराखंड में जस्टिस केएम जोसेफ़ ने कहा था कि राष्ट्रपति राजा नहीं होता कि उसके फैसले की समीक्षा नहीं हो सकती. आज तक जस्टिस जोसेफ़ इसकी सज़ा भुगत रहे हैं। मौलिक अधिकार का विरोध करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा था कि नागरिक के शरीर पर राज्य का अधिकार होता है। कोर्ट में क्या हुआ सबको पता है. अदालत और लोकतंत्र में हर मसले की लड़ाई अलग होती है. एक जज की मौत की जांच पर रोक लगी. और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं।

 

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व श्रीमान मोदी और श्रीमान अमित शाह के पास अब कुल एक साल का भी समय नहीं है। उन्हें चाहिए, कांग्रेस विरोध और विरोधियों के दमन का रास्ता छोड़कर जनता के काम में सकारात्मक रूप से जुड़ें. नौजवानों को रोजगार दें, किसानों को न्याय दें और बढ़ती हुई महंगाई और पेट्रोल की कीमतों पर लगाम लगायें। छद्म राष्ट्रवाद, धार्मिक उन्माद के बजाय रचनात्मक कार्यों पर जोर दें जैसे कि उन्होंने कश्मीर में सबसे बड़े टनल मार्ग का शिलन्यास करके किया। उसी तरह एनी नागरिक सुविधाओं पर केवल भाषणबाजी न करके जमीनी स्तर पर काम दिखाना चाहिए। महंगे प्रचार माध्यमों के इस्तेमल से उलटे राज्य सरकार पर बोझ पड़ता है और उसका खामियाजा अधिक कर चुकाकर जनता को ही भुगतना पड़ता है।

 

कर्नाटक में अश्वमेघ का घोड़ा थमा है अब विपक्षी पार्टियों में एक जुटता आयेगी तो एक सशक्त विपक्ष भी तैयार होगा जो सरकार को गलत करने से रोक सके. लोकतन्त्र में जितना महत्व सत्ता पक्ष का है उतना ही महत्व विपक्ष का भी है।  हाँ उसे सरकार रचनात्मक कार्यों में सहयोग करना चाहिए, संसद में बहस होनी चाहिए, हंगामा नहीं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh