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देश के किसानों और नौजवानों की समस्या

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एक किसान की समस्या – अक्तूबर के महीने में आलू के जो बीज बोए थे उनका उत्पादन काफी कम हुआ है. वे पहले से बर्बादी का सामना कर रहे थे मगर इस बार मार और पड़ गई है. इस समस्या का समाधान आखिर कब निकलेगा. उस किसान के अनुसार- एक एकड़ में चालीस पैकेट आलू का बीज लगता है. आम तौर पर चालीस पैकेट से 250 पैकेट आलू उपजता है मगर इस बार तो 80 पैकेट भी नहीं निकला है. यूपी सरकार सारे ख़र्चे जोड़ कर 650 रुपये प्रति क्विंटल आलू देने की बात करती है मगर सारा आलू कहां खरीद पाती है. आलू किसान ने बताया कि नोटबंदी के समय से ही वे बर्बादी झेल रहे हैं. अब अगर आलू थोक मंडी में 30 रुपये किलो बिकेगा तभी उनकी लागत निकलेगी. इसके लिए 1500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव चाहिए. ज़्यादातर आलू उत्पादकों का यही हाल है.
गन्ना किसानों ने चीनी मिलों को गन्ना तो दे दिया मगर पैसा नहीं मिला है. केंदीय खाद्य व सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री सी आर चौधरी ने संसद में बयान दिया है कि 31 जनवरी 2018 तक देश भर में चीनी मिलों पर 14000 करोड़ से अधिक का बकाया है. इतना पैसा किसानों के पास नहीं गया है. यूपी के गन्ना किसानों पर 8000 करोड़ से अधिक का बकाया है. जबकि यूपी सरकार ने वादा किया था कि 14 दिनों के अंदर पेमेंट होगा. कई जगह से किसान बताते हैं कि जनवरी के बाद से पैसे नहीं मिल रहे हैं. सोचिए इतना पैसा हाथ में नहीं होने से किसानों की क्या हालत होती होगी. किसान बीज लेता है, खाद लेता है, टाइम पर नहीं देगा तो ब्याज देना पड़ेगा.
राजस्थान से एक किसान ने लिखा है कि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4000 रुपये प्रति क्विंटल है, मगर बाज़ार में कही 3500 से 3600 रुपये से ज्यादा का भाव नहीं है. चना का समर्थन मूल्य है 4400 रुपये प्रति क्विंटल और बाज़ार भाव है 3600 रुपये प्रति क्विंटल.

इतना हंगामा होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की ये हकीकत है. जब तक किसान प्रदर्शन नहीं करते तब तक सरकार भी चुस्त नहीं होती है. प्रदर्शन सहन्तिपूर्ण ढंग से हो और कोई सशक्त नेता उनके साथ न हो तो मीडिया भी खोज खबर नहीं लेता. उलटे सोशल मीदोया पर उन्हें नकली किसान या नक्सली तक बोल देते हैं. सब्जी अच्छी हुई तो दाम आधे… लागत भी नहीं निकलेगी. अभी रब्बी फसल की कटाई और संचयन का समय है तो आंधी पानी ओला वृष्टि हो रही रही है जिससे रब्बी की तैयार फसल बर्बाद हो रही है.

इन सबके बीच अच्छी या बुरी ख़बर जो भी कह लें यह है कि भारत में पेट्रोल की राजनीति ख़त्म हो गई है. होती तो 75 से 85 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल का दाम होने पर मिट्टी तेल डालकर पुतले फूंके जा रहे होते. महाराष्ट्र के ही 16 से ज़्यादा शहरों में पेट्रोल का भाव 80 रुपये से अधिक है. कुछ दिन पहले औरंगाबाद में एक लीटर पेट्रोल का दाम 85 रुपये से अधिक हो गया था. अब वैसे अर्थशास्त्री भी नहीं मिलते हैं जो चार साल पहले पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ने पर गंभीर लेख लिखा करते थे. लगता है कि वे सारे अर्थशास्त्री लाफ्टर चैलेंज में चले गए हैं.  मुंबई में एक लीटर पेट्रोल का दाम 81 रुपये 83 पैसे हो गया है और पटना में 79 रुपये 49 पैसे. इससे पहले भारत की जनता आर्थिक रूप से इनती समझदार नहीं थी वर्ना तो 70 रुपये प्रति लीटर दाम देखकर ही सड़कों पर पुतला दहन होने लगता था. दिल्ली में पहली बार पेट्रोल 74 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है.
राहुल गांधी ने जब एक ट्वीट किया तो उसके जवाब में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भी ट्वीट किया और कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों के दाम तय करना राजनीति की तरह एक गंभीर काम है, जिसके इतने अधिक कारक होते हैं, जितने लोकसभा में  कांग्रेस के एमपी नहीं है. धर्मेन्द्र प्रधान ने यह बताया कि पेट्रोल के दाम बढ़ाने के इतने फैक्टर होते हैं जितने कांग्रेस के सांसद नहीं हैं लोकसभा में. इससे पहले जब वे खुद विपक्ष में पेट्रोल के दाम बढ़ने पर विरोध करते थे तब कितने कारण होते थे उन्होंने यह नहीं बताया. धर्मेंद्र प्रधान ने एक और ट्वीट किया, जिसमें कहा कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम के पीछे का अर्थशास्त्र ऐसे व्यक्ति को समझ नहीं आएगा, जिसका यथार्थ और तर्क से ज़ीरो कनेक्शन है. उम्मीद है कि राहुल गांधी स्वीकार करेंगे कि देश की बेहतरी के लिए अच्छी अर्थव्यवस्था, लोकप्रिय राजनीति से हमेशा अच्छा होता है. तो देश की बेहतरी के लिए पेट्रोल के दाम 80 पार हैं. ये तो है कि जिस खुशी के साथ जनता ने 80 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीदना शुरू किया है उतना खुश वो कभी 65 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीद कर नहीं होती थी. पेट्रोल का दाम बढ़ना वाकई गंभीर विषय है. विपक्ष का आरोप हल्का था और मंत्री का आरोप भी वैसा ही था. उन्हें बताना था कि फिर वे 65 रुपये प्रति लीटर दाम बढ़ने पर क्यों प्रदर्शन करते थे, तब क्या उनका यथार्थ और लाजिक से कनेक्शन नहीं होता था.

आब आते हैं नौजवानों की समस्या पर – दिल्ली सबोर्डिनेट स्टाफ सलेक्शन बोर्ड ने बुधवार को हाईकोर्ट में हलफनामा भी पेश किया है. सोशल ज्यूरिस्ट नाम की संस्था ने कोर्ट में याचिका दायर की है कि दिल्ली सरकार के 9232 और निगम स्कूलों के लिए 5906 शिक्षकों की भर्ती परीक्षा की तारीख घोषित करे. छात्रों से बोर्ड की चेयरमैन ने कहा कि 1 महीने के अंदर परीक्षाओं के कैलेंडर बन जाए और लंबित परीक्षाएं होने लगेंगी. करीब 15000 शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है, परीक्षा नहीं हो रही है, क्लास ख़ाली रहते होंगे, इसे लेकर कहीं कोई इमरजेंसी चर्चा भी नहीं है. कितना दुखद है. अभी तक इन 15000 लोगों को नौकरी मिल गई होती तो समाज का कितना भला होता. नौजवानों को रोज़गार मिलता और बच्चों को मास्टर. पिछले 7 साल से कोई सीधी बहाली नहीं हुई है. क्या यह मज़ाक नहीं है. रेलवे ने खुद संसद की स्थाई समिति में माना है. अब जाकर मंत्री जी 1 लाख नौकरियां निकालने को लेकर ट्वीट कर रहे हैं, मगर जो भर्ती पूरी होने का ट्रैक रिकॉर्ड है उससे बहुत उत्साहित नहीं होना चाहिए. रेलवे में भर्ती होने में आम तौर दो से तीन साल लग जाते हैं. हां अगर अक्तूबर नवंबर तक नौकरियां मिल जाए तो क्या बात. वैसे कई परीक्षाएं जो पहले हो चुकी हैं उनका अप्वाइटमेंट लेटर आज तक नहीं मिला है. 2 लाख 20 हज़ार पद ख़ाली हैं तो वैंकेसी 1 लाख की ही क्यों आई है. बाकी के 1 लाख 20 हज़ार कब आएंगे. क्या बेरोज़गार कम हो गए हैं देश में. 90,000 की वैकेंसी के लिए ही ढाई करोड़ बेरोज़गारों ने फॉर्म भरे हैं.
500 रुपये फॉर्म का था मगर रवीश कुमार के प्राइम टाइम में जब बात उठी तो 100 रुपये करना पड़ गया. नौजवानों को भर्तियों का खेल समझना है. उन्हें पैनी नज़र रखनी चाहिए. नौकरी देने को लेकर जो प्रचार होगा और जो नौकरी दी जाएगी दोनों में समय और अप्वाइंटमेंट लेटर को लेकर कितना अंतर है. गोरखपुर के एक नौजवान का कहना है कि, ‘मैंने रेलवे के कैटरिंग इंस्पेक्टर की परीक्षा पास की है. नवंबर 2017 में ही फाइनल रिज़ल्ट आ गया था. अभी मेडिकल टेस्ट और ज्वाइनिंग लेटर का पता नहीं चल रहा है. चीफ पर्सनल ऑफिस गोरखपुर को ट्वीट किया तो जवाब नहीं मिला. अब सुन रहे हैं कि नई नीति के अनुसार कैटरिंग इंस्पेक्टर की ज़रूरत नहीं होगी तो इसमें हमारी क्या ग़लती है ?’
वाकई जब परीक्षा दी है तो ज्वाइनिंग होनी चाहिए. इस तरह से छात्र कैसे भरोसा करेंगे. इस तरह के कई और मामले हैं. इसलिए रेल मंत्री को एक लाख नौकरियों के विज्ञापन भी करें मगर इस बात पर ज़्यादा ध्यान दें कि नौकरी मिले. छह महीने के भीतर परीक्षा हो जाए.
एनआईटी मिज़ोरम के छात्र 31 मार्च की रात से यहां धरने पर बैठे हैं. इनका आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही से इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजिनयरिंग के प्रथम वर्ष के छात्र देवशरण की मौत हुई है. देवशरण भी यहां खराब खाना और अशुद्ध पानी के खिलाफ धरना में शामिल था. देवशरण बिहार के खगड़िया का रहने वाला था.

इस तरह देश भर के नौजवानों की यही समस्या है. टी वी पर मुद्रा योजना, स्टार्ट उप योजना के खूब विज्ञापन दिखलाये जाते हैं. उसी पर मीडिया ने इन सबकी वास्तविकता भी दिखला दी है. लोन के लिए कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं… bank मेनेजर के सामने नाक रगड़ने हूते है तब भी सबको उतनी आसानी से लोन नहीं मिलता. आंकड़े सब झूठे दिखलाये जाते हैं. लोन वैसे लोगों को आसानी से मिल जाता है जो लोन लेअक्र चुकता नहीं करते और और आराम से रसूखदार बन विदेशों में घूमते रहते हैं.

२०२२ का सपना दिखलाया जा रहा है उसके पहले २०१८-१९ तक के हालात पर चर्चा कर लें. घोषणाओं को जमीन पर उतारकर सच्चे आंकड़ें पेश करें…. अगर किसान और नौजवान खुश होंगे या कम से कम रोजगार पाकर अपना जीवन बसर करने लायक हो जायेंगे तो उन्हें न तो हड़ताल करने की फुर्सत रहेगी आ ही रैलियों, जुलूसों में झंडा बैनर लेकर चलने की फुर्सत होगी. पर सरकार और राजनीतिक पार्टियाँ यही तो चाहती हैं कि लोग बेरोजगार बने रहें. रैलियों, जुलूसों में भीड़ बढ़ाते रहें …. टी वी पर विकास दिखता रहेगा. टी वी पर बहसें होगी और संसद हंगामें की भेट चढ़ता रहेगा.
उम्मीद की जानी चाहिए मोदी जी और उनके सिपहसलार वास्तविक मुद्दे और समस्यायों को हल करने की कोशिश करेंगे, ताकि कुछ तो खुशहाली आये और लोग कह सकें कि अच्छे दिन आ गए..

जय जवान के किसान सिर्फ नारा से तो कुछ नहीं होगा.

  • जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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