Menu
blogid : 3428 postid : 1386946

वो भी दिन क्या थे !

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

जागरण नगर में होली की हुड़दंग

holi-20123

images[1]जागरण नगर में होली की हुडदंग और महामूर्ख सम्मलेन होने वाला है. सभी प्रमुख ब्लोग्गर इसमें शिरकत करनेवाले हैं. पुरुष और महिला टीम अपने अपने साथियों के साथ एक मैदान में उपस्थित हुए हैं. S D टी वी इसका विशेष कवरेज करेगा और इसे अपने चैनेल पर प्रसारित करेगा ऐसी उम्मीद है.

कुशवाहा जी पहले से ही अपनी मूछों पर ताव दे रहे हैं और अपने प्रिय मित्र शशि जी को भी साथ देने को कह रहे हैं. सभी को फोन से या इ मेल से निमंत्रित किया गया है.

निश्चित दिन और समय पर सभी एकत्रित हो गए हैं और अपनी जेबों को फिर से टटोल कर देख रहे हैं की पूरी सामग्री साथ में है तो?

कुशवाहा जी सबों में उम्र और तजुर्बे में बड़े हैं इसलिए उन्हें ही सर्वसम्मति से मुख्य संचालक बना दिया गया है. उनके सहयोग के लिए शशिभूषण जी भी अपनी गुलाल की पोटली और रंग की बाल्टी लेकर पधार चुके हैं.

कुशवाहा जी का मानना है कि पेड़ हमारे पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत ही जरूरी है इसलिए वे गुनगुनाते है – “पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ जी, शीतल छाया, शुद्ध हवा का झोंका पाओ जी.”

उसके बाद वे मैदान के किनारे लगे एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं और वहां से मुआयना करते है कि और लोग आ रहे है कि नहीं. पेड़ पर चढ़ते ही उनको याद आता है – “यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता जमुना तीरे, मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे!”

इधर शशि भूषण जी नेताओं के चाल चलन देखते हुए दहाड़ने लगे हैं और उसी अंदाज में कुशवाहा जी को चेतावनी देते हैं – उतरिएगा…… कि हिलाएं पेड़ को!

कुशवाहा जी तो उतर ही गए, उधर डॉ. सूर्या जो अपनी प्रेमिका के साथ खजूर के पेड़ पर बैठ कर आँखें चार कर रहे थे — “अपनी प्रेमिका से बोले उतरो भाई, नहीं तो ई बजरंग बली का अवतार कहीं हमको भी न गिरा दे और यहाँ तो खजूर के नीचे बबूल भी नहीं है सीधा तालाबे में गिरेंगे”.

अशोक भाई आते ही बोले – हम खाना थोड़ा कम खायेंगे पर होली तो अपनी पत्नी के संग ही मनाएंगे.

भ्रमर जी जो हमेशा तितलियों और कलियों के बीच विहार करते रहते हैं – मन ही मन बुद बुदाये ई कहाँ हम भी इन बुढाऊ लोगों के बीच में फंस गए है!

अबोध जी जो खाड़ी देश से खास निमंत्रण पर आये हैं कहने लगे – हमको अब अबोध बालक समझने का भूल मत करियेगा, हम सब समझते हैं आप लोग यहाँ अपना अपना भड़ास निकालने के लिए जमा हुए हैं. कुछ ठंढई का इंतजाम है न कि सूखे-सुखी रहेगा.

तभी संतोष भाई, आनंद जी के साथ दो बाल्टी ठंढई लेकर उपस्थित हो गए. आते ही बोले – का बात करते हैं अबोध भाई, हम पंजाबी पुत्तर हैं, एक साथ चार गिलास चढ़ा लेते हैं तब जाकर मस्ती आता है इसबार तो ससुरा इटली खानदान को जड़ से उखाड़ फेकेंगे, भले ही भगत सिंह जैसा शहीद होने की नौबत क्यों न आ जाय. हम तो यही गायेंगे – मेरा रंग दे बसन्ती चोला मेरा रंग दे बसन्ती चोला…………

आनंद जो हमेशा मुस्कुराता रहता है बोला – संतोष भाई आप अकेले थोड़े हैं हम सब आपके साथ हैं न.

शाही जी बेचारे थोड़ा अनमने से दूर से देख रहे थे -” कर लो खुरापात बबुआ लोग एही साल भर, का पता अगला साल होली आवे के पहले ही तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाय और सब एक दुसरे के दुश्मन बन जाएँ.

संदीप जी भी ऊपर देखते हुए बोले – गुरूजी आप तनिको चिंता मत करिए, विश्व युद्ध शुरू तो होने दीजिये हम तो पहले ई जागरण नगर में ही आग लगायेंगे, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!

तभी आनंद का दोस्त अनिल भी आ गया और दोनों गाने लगे – हम तो बच्चा है जी, दिल के कच्चा हैं जी.पहने कच्छा हैं जी, लेकिन सबके चच्चा हैं जी! समझिये कि हमलोग तैयार ही हैं आपलोगों के हुक्म का इन्तजार है.

मुनीश बाबु भी आज खूब मस्ती में थे और अपनी पत्नी को भी साथ में लेकर आये थे – वे अपने स्टाइल में बोले – वैसे भी मैं अपनी पत्नी के बारे में हमेशा पोजिटिव ही रहता हूँ उनकी पत्नी भी नए रंग की साड़ी में बड़ी अच्छी लग रही थी. आते ही महिला दल में शामिल हो गयी और सरिता जी, निशाजी आदि लोगों से तुरंत घुलमिल गयीं.

इसी तरह से त्रिपाठी जी, दुबे जी, पीयूष जी, राजीव जी, गजेन्द्र जी, अश्विनी कुमार जी, अमर सिंह जी, कुमारेन्द्र जी,आशुतोष जी, डॉ. नवीन, अजय जी, चन्दन जी, ……आदि सभी नए कुरते पैजामे और टोपी लगाकर आए थे, सभी ने थोड़े थोड़े भंग चढ़ाये थे.

और शुरू हो गया – बुढवा भोले नाथ, बैठक में होली खेले,

होरी खेले रघुबीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा…

गंगा सुरसरि… जा के नाम लिए तरी जाय ……….

वोही गंगा जल से, रंग बनत हैं, बालू के उड़त अबीर. गंगा सुरसरि …….

उधर महिला मंडली की मुख्य संचालिका निशाजी और सह संचालिका सरिता जी के साथ नारा लगा रही थी – नारी शक्ति जिंदाबाद! अब गुलामी नहीं सहेंगे. फिर थोड़ा सम्हल कर बोलीं – सुनिए मेरी प्यारी बहनों, हमलोग आजतक घर से लेकर दफ्तर तक का काम अकेले सम्हालते आये हैं और ये मर्द लोग हमलोगों से हमेशा सेवा और आज्ञा का पालन करवाते आए हैं, पर अब हमें इस बंधन को काट कर निकलना होगा. इसकी शुरुआत आज हमलोग यहीं से करेंगे. सरिता जी तुरंत बोल उठीं – हम तो शुरुआत कर दिए हैं, आज शुबह शुबह बिस्तरे पर चाय मांग रहे थे – मैंने कहा – पहले उठिए ब्रश करिए तब चाय मिलेगा, ई कौन गन्दा आदत कि बिना मुंह धोये चाय गटक लिए.

निशा जी – मेरा मतलब केवल घर तक ही सीमित नहीं रहना है. हरसाल ई पुरुष लोग हमलोगों को दौड़ा दौड़ाकर रंग लगाते थे, इस बार हमलोग इनलोगों को घेर कर बाल्टी-बाल्टी रंग डालेंगे.

तमन्ना जी भी पूरे जोश में थी और आगे बढ़कर बोली – ई मर्दों को सबक सिखाना ही होगा!

मीनू जी बड़े पेशोपेश में थी, वे बेचारी पुरुषों से सहानुभूति रखती थीं और बराबरी के दर्जा में बिस्वास रखती थीं. बोली – मेरे यहाँ तो बराबरी का हिशाब है घर बाहर दोनों जगह हमलोग कन्धा से कन्धा मिलाकर काम करते हैं.

साधना जी – हमारे यहाँ तो दामाद जी को देवता के सामान आदर दिया जाता है हमलोग इतना जल्दी थोड़े बदल जायेंगे? पर अब धीरे धीरे परिवर्तन तो हो ही रहा है.

अलका जी – ठीक ही कहते हैं बराबरी का दर्जा तो मिलना ही चाहिए. तो आज का प्लान क्या है.

इनलोगों के अलावा और भी महिला ब्लोग्गर्स जिनमे दीप्ति जी, दिव्या जी, वंदना जी,रचना जी, यमुना जी, रचना जी, रेखा जी, अनामिका जी, रोशनी जी, अमिता जी, ………..आदि सभी

आ जाती हैं और फिर शुरू होता है होली का धमाल!

निशाजी ने माइक सम्हाला – अभी थोड़ी ही देर में एस डी चैनेल का रिपोर्टर सचिनदेव आने वाले हैं, तबतक सब लोग अपना रंग और पिचकारी देख लीजिये, सब अपनी जगह पर ठीक ठाक है न?

सचिन देव जी पुरुष टोली का कवरेज करने का बाद महिला दल के पास आ गये – और शुरू हुआ होली का धमाल –

अंग से अंग लगाना सजन मुझे ऐसे रंग लगाना

होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं.

होली ई रे कन्हाई होली चमके चुनर मोरी…….

टी.वी पर लाइव शो देखने के बाद राजकमल जी अपनी फिल्म के सूटिंग छोड़कर भागे भागे आए और आते ही कहने लगे – अरे आपलोगों ने मुझे बताया नहीं

उनसे निपटने के लिए भ्रमर जी आगे आए – आपका तो मोबाइल भी स्विच ऑफ बतला रहा था तो आपको सूचना कैसे देते?

राजकमल जी – अरे हाँ भाई ऊ महेश भट्ट के नयका फिल्म में हीरो का रोल हमही को मिला है, उसी का सूटिंग में ब्यस्त थे, महेशवा छोड़ ही नहीं रहा था, ऊ तो हिरोइन को सीन समझाने के ले गया, तबतक हम चुपके से भाग आए हैं.

आते ही वे शाही जी को खोजने लगे – संक्षेप में उनको सारी बात बताई गयी तो तुरंत वे शाही जी और संदीप जी के पास गए और उन्हें भी बुलाकर या कहें मनाकर ले आये सबलोगों ने आपस में गले मिले और खुशी जताई.

यह सब देखकर जागरण परिवार से भी रहा नही गया और उनका संपादक मंडल पंडित आर के राय के साथ रंग अभीर, गुझिया,पुआ,मिठाई और दही बड़े लेकर आ गया और अबों से मिलकर होली की बधाई दी.

अगले साल इसी तरह मिलने का वादा कर यह कार्यक्रम समाप्त हुआ.

मेरा उद्देश्य यही है कि होली के इस पावन त्यौहार पर सभी अपने बैर भाव भुलाकर एक दुसरे के साथ भाईचारा और बहनचारा बनाये रखें और भंग की तरंग में अगर कुछ मुझसे गलती हो गयी हो, किन्ही का नाम अगर छूट गया हो तो भी वे अपने को इसी मंडली का हिस्सा समझें और इस जागरण जंक्सन के मंच को सुखी और समृद्ध बनाने का हर संभव प्रयास करें. हम सभी लोगों के बीच में एक अनजाना सा बंधन है जो हाँ सबको एक सूत्र में पिरोये रखता है.

सबको होली की ढेर सारी शुभकामनायें !!!!!!!!!(बुरा न मानो होली है!!!)

| NEXT

Tags: होली का हुडदंग

पूरी प्रतिक्रिया पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें क्योंकि प्रतिक्रिया के साथ पोस्ट बहुत बड़ा हो जा रहा

https://www.jagran.com/blogs/jlsingh/2012/03/07/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A4%A6/

114 प्रतिक्रिया

D33P के द्वारा March 13, 2012

सिंह सा माफ़ी चाहूंगी कुछ मार्च में कार्यालय की व्यस्तता कुछ घर की जिम्मेदारियों के कारण आपकी होली के हुडदंग का आनंद किश्तों में लिया .पर सच कहू इसका आनंद बहुत आया ,कितनी ख़ूबसूरती से आपने पूरे जागरण जॅंकशन को एक साथ मिलने का अवसर दिया ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद

jlsingh के द्वारा March 13, 2012
आदरणीय दीप्ति जी, सादर अभिवादन! आपको अच्छा लगा मेरा प्रयास इससे बड़ी प्रसन्नता मेरे लिए और क्या हो सकती है! बहुत आभार आपका जो आप इस मंच (ब्लॉग) पर आयीं. मेरे उद्देश्य सफल हुआ!
abodhbaalak के द्वारा March 13, 2012
क्या बात है जवाहार भाई. क्या रंग बिखेरा है
वैसे मुझे याद रखें के लिए आपका अआभारी हूँ
ttp://abodhbaalak.jagranjunction.com/

jlsingh के द्वारा March 13, 2012
आदरणीय अबोध जी, नमस्कार! आपको भूल जाऊं, ऐसा तो शायद इस जन्म में संभव न हो. अगले जन्म का तो नहीं मालूम! आप थोड़े विलंब से आये इसका भी अहसास था मुझे! धन्यवाद! हौसलाफजाई के लिए!
Amita Srivastava के द्वारा March 10, 2012
सिंह साहिब
नमस्कार
इधर कुछ व्यस्तता के कारण मंच पर उपस्थिति नही हो पा रही है आज ब्लॉग खोलते ही आपका रसभरा मस्त -२ लेख पढ़ मजा आ गया . होली पे आप का ये प्रयास सफल रहा .इसके लिए आपको बहुत -२ बधाई

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh