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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमारा उद्गार

jls
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घर में भी तो झगड़े होते, बैठ के हम सुलझाते हैं.
भारत माँ के हम सब बेटे भारत माँ की खाते हैं.
पर्वत खाई समतल नदियाँ, हरे भरे भीषण जंगल
खेतों में हैं फसलें सारी, अन्नदाता क्योंकर विह्वल.
सबको दो सम्मान उचित, सब जन गण मन से गाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
कोई धन्ना सेठ बना है, कोई प्लेन से है उड़ता.
कोई पैदल चला मुसाफिर, ट्रेन बस में है ठुंसता.
अम्बुलेंस तो दे दो उनको, साइकिल पर शव लाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
मिलजुलकर सरकार चलायें, देश को मंदिर सा महकाएं
देश हमारा सर्वोपरि है, राष्ट्र-गान को मन से गाएं
लिए तिरंगा सबल हाथ में, जन गण मन को गाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
शिक्षा पहुंचे हर जन जन तक, स्वस्थ हो तन मन स्वस्थ भ्रमण
शुद्ध हवा पानी हो निर्मल, ऐसा हो जब पर्यावरण
विश्वगुरु हम तब बन जाएँ, स्वयम को खुद समझाते है. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
वन्दे मातरम ! जयहिंद !

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