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आखिर कितना पैसा चाहिए?

jls
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वर्षों पहले पढ़ा था – “भैस बहुत दूध देती है, पर यह दूध काफी नही होता .. ग्वाला उसे काफी बनाता है ..पर दूध को छान लेना चाहिए, ताकि मेढकी निकल जाए!”
यह बहुत ही आम बात होती थी. अगर ग्राहक बढ़ जाय या भैस कम दूध देने लगे, तो ग्वाला क्या कर सकता है? फिर बहुत लोगों को भैंस का गाढ़ा दूध पचता भी तो नहीं. इसलिए ग्वाला उसे सुपाच्य भी बनाता है. असल में ग्वाला को अपना और ग्राहक का ख्याल भी तो रखना होता है!
आज बीस से पचास रुपये कमाने वाला सोचता है – अपना पेट कैसे भरे ? अगर अपना भर गया तो फिर बीबी, बच्चे .. अब मजदूरी बढ़कर १०० रुपये से १५० रुपये हो गयी है, चलो पेट तो भर ही जायेगा, कुछ बच गया तो कपड़े भी बनवा लेंगे .. बीबी बच्चे को भी काम में लगा देंगे, आमदनी कुछ और बढ़ जायेगी. रहने के लिए कहीं भी ठिकाना तो मिल ही जायेगा. इतनी बड़ी दुनिया है … रैन बसेरा न सही, दुकानों के आगे वाले शेड के नीचे ही गुजारा कर लेंगे.
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यह मनुष्य बड़ा लालची होता है – पहले खड़े रहने की जगह तलाश करता है. खड़े होने की जगह मिल जाय तो थोड़ा और जगह बनाकर बैठने, पैर फैलाने से लेकर सोने तक का जुगाड भी कर लेता है. पहले तो बिना बिछौनों के भी नींद आ जाती है. बाद में जरूरत होती है बिछावन की, तकिये की और चादर की. बड़े लोगों ने समझाया है – “उतना ही पैर फैलाओ, जितनी लंबी चादर हो”. पर चादर छोटी हो ही जाती है और पैर बाहर हो ही जाता है. एक और चादर होने से अच्छा था….
अब आइये पेट भर गया, आराम भी मिल गया अब और क्या चाहिए – बरसात में बड़ी दिक्कत होती है. सर के ऊपर छत हो जाती, तो ठीक होता. अँधेरा होने से पहले ही सब काम कर लेंगे या अँधेरे में भी बाकी काम कर लेंगे. …..अच्छा होता एक मोमबत्ती या दिया भी मिल जाता … उसके बाद … हम तो नहीं पढ़ सके, पर मेरा बिटवा पढ़ लेता तो पैसे गिनने आ जाते. थोड़ा चिट्ठी पत्री भी लिख पढ़ लेता.
सरकारी स्कूलों में पढाई के साथ-साथ खाना भी मिलता है – “जा बिटवा जा थाली लेता जा, अगर पूरा न खा सका, तो थोड़ा छोटी बहन के लिए लेते आना…

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नौकरी का पैसा भी ज्यादा कहाँ होता है ..ऊपरी आमदनी के बिना …बच्चो का स्कूल खर्च, बीबी की साड़ी और गहने ..समाज में हैसियत दिखाने की लालसा… फिर आगे का भविष्य… लड़की की शादी ..आदि आदि..गाडी, एक फ्लैट या ड्यूप्लेक्स .. नौकरी में प्रोमोसन ! आहा ! सोने में सुहागा ! पर महंगाई के अनुसार वेतन वृद्धि भी तो होती रहनी चाहिए.
नेतागिरी …समाज सेवा, देश सेवा या फिर अपनी सेवा ! पूरे काले सफ़ेद तो यहीं होते हैं. नेता को लोगों ने बदनाम कर दिया है ..नेता है, जो कुछ भी सुन लेता है. सुनकर भी चुप रहता है, नए नए तर्कों कुतर्कों से सबको उल्लू बनाता रहता है. ये बड़े बड़े उद्योग घराने ही कौन सा खैरात लेकर बैठे हैं. उनका भी तो उद्देश्य होता है अधिक से अधिक मुनाफा ..एक के बाद दूसरा उद्योग … चंदे भी तो देने होते हैं राजनीतिक पार्टियों को…. फिर अतिरिक्त पैसों का जुगाड़ रखना ही पड़ता है…. कहाँ कब किसे पटाने की जरूरत पड़ जाय. कुछ अफसर बड़े घाघ किशम के होते हैं ….सीधे मुंह मांगेगे नहीं. इसलिए उनके पसंद- नापसंद का ख्याल रखना पड़ता है. हर जगह अपने आदमी या किराये के आदमी लगाने होते हैं …..नेताओं और छुटभैये टाइप लोगों को बिना पटाए आजकल कोई भी धन्धा आगे नहीं बढ़ता.

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कौन सा कहानी लेकर बैठ गए हैं जी.. पब्लिक बोर हो रही है … अच्छा तो थोड़ा चकाचौंध वाली चाहिए, है न?
क्रिकेट में भी बहुत पैसा है! पर यह पैसा काफी नहीं होता. काफी उसे बुकीज बनाता है!.. श्रीशांत जैसे लोगों को अशांत बनाता है ..श्रीशांत है भी तो बहुआयामी…. देखा है, उसका डांस!….अगर वो क्रिकेट में न होता तो शाहरुख सलमान के साथ डांस कर रहा होता. ऐसा हम नहीं कह रहे…. वो तो फिल्मवाले ही कह रहे थे. बेचारा श्रीशांत को लोगों ने (दिल्ली पुलिस ने) बदनाम कर दिया … दिल्ली का अपराध तो रुकने का नाम नहीं ले रहा…. चले हैं मुबई में गिरफ्तारी करने! बहुत बदनाम हो रहे थे न! इसलिए सोचा थोड़ा नाम कमा लिया जाय … इन मीडिया वालों को देखो … लगता है, अब कहीं कोई अपराध नहीं हो रहा. सभी चैनलों पर, आईपीएल पर ही चर्चा कराये जा रहे हैं! अरे तुम लोग भी तो इन्ही के पैसे से पल रहे हो. अगर आईपीएल न हो तो कौन देगा विज्ञापन और विज्ञापन के बिना कोई भी चैनेल, अख़बार चला है क्या? क्रिकेट की ख़बरों और फिल्मीनामा का समय भी नियत रहता है. नहीं तो कौन देखेगा नीरस समाचार …गरीबों का दुःख, किसानों की आत्महत्या! महाराष्ट्र का सूखा ! ये सब रूखी ख़बरें! हाँ कोई बलात्कार आदि हुआ है, तो बताओ चटखारे लेकर बताओ सभी देखेंगे नजरें चुराकर देखेंगे और कान अड़ाकर सुनेंगे.

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फिल्मो में भी तो बहुत पैसा है, पर यह पैसा काफी होता है क्या? काफी तो तब होता है, जब हम कोई गलत काम करें! किसी गॉडफादर का हुक्म तामील करें! देश जाए भाड़ में हम तो भांड है, नाचना-गाना हमारा पेशा है ..इसी को देखकर तो लोग पैसा बहाते है. फिल्म से सबक लेना उनका काम है, हमारा काम तो एक्टिंग करना है जी !
आखिर शराब, सिगरेट, रंगीनी कहाँ से आयेगी?
मुन्ना बाबु जैसा या मुन्ना भाई जैसा…. पूरा देश जिस मुन्ना भाई को आदर्श मान गांधीगिरी करने लगा, वही मुन्ना भाई को अब जेल में नींद नहीं आ रही. कैसे आयेगी बिना शराब सिगरेट के सोने की आदत तो है नहीं.
ये शराब सिगरेट भी अजीब चीज है … थके हुए मनुष्य को राहत की नींद सुलाती है. थोड़ा ज्यादा पैसा होने से चोरी हो जाने का डर रहता है. इसलिए नींद नहीं आती. नींद लाने के लिए शराब … सुरा–सुन्दरी की आदत तो देवताओं को भी थी…. अभिजात्य वर्ग भी तो आज के देवता ही तो हैं. उन्हें मखमली गद्दे, शीतल मंद सुगन्धित वातावरण के अंदर हल्की सी रंगीन रोशनी में रंगरेलियाँ मनाना …आहा … स्वर्गिक आनंद!… पर्दे पर या खेल के मैदान में बहुत नाच कर लिया. थोड़ा निजी जिंदगी को भी तो नाचने का मौका देना चाहिए! नाचने के लिए, रंगरेलियां मनाने के लिए ही तो ज्यादा पैसा चाहिए!… भारत तो पहले से ही सोने की चिड़िया है! उसे शिकार करनेवाला बहेलिया चाहिए……. एक बुकीज टी वी स्क्रीन पर अँधेरे में कहा रहा था – भारत में सब कुछ सम्भव है, यहाँ हर कोई बिकाऊ है… एंटी-करप्सन में भी उसके आदमी मौजूद रहते हैं…. पार्टियों में मौजूद रहते हैं… यहाँ तक कि मीडिया पर्सन बनकर भी मिल लेते है और अपना मतलब साध लेते हैं…… पैसे से सारे दाग धुल जाते हैं. किसी बड़े आदमी को देखा है शरमाते हुए? चाहे वह हटाये गए मंत्री हों या संतरी! बुजुर्ग (नारायण दत्त तिवारी हों या अभिषेक मनु सिंघवी) गोपाल कांडा हो या हो अमरमणि त्रिपाठी, महिपाल मदेरणा हो या हो विजय माल्या! अजहरुद्दीन हो या और कोई ….
मुकेश अम्बानी दुनिया के अमीर लोगों में से एक हैं तो क्या वे पैसा कमाना छोड़ देंगे. नहीं न विजय माल्या कर्ज में डूबे हैं तो क्या शराब पीना छोड़ देंगे …नहीं न! फिर काहे को हाय तौबा! आईपीएल चल रहा है न! BCCI का भी सफाई आगया नया कानून बनेगा RTI के अन्दर BCCI को भी लाया जायेगा. संजय दत्त की फिल्मे भी चल ही रही है!… महेश भट्ट के अनुसार संजय दत्त में एक चमत्कार हुआ है! वह सोने के समान तप कर निखरेगा और फिर से फिल्मों में काम करेगा. अपने पिता का नाम रोशन करेगा !…

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जाइये! अपना-अपना काम करिए….. वक्त बर्बाद कर रहे हैं, सबका…. अब तो आज ABP न्यूज़ का सर्वे भी देख ही लिए होंगे, हर जगह भाजपा+ (यानी एन डी ए) को बढ़त मिल रही है! …..अब तो रामराज्य आ ही गया समझिये! देवराज इंद्र को भी हमेशा अपने राजसिंहासन की चिंता लगी रहती थी. ‘आप’ यानी आम आदमी पार्टी का तो कही नाम भी नहीं है! आप भी अपनी चिंता करिये!…चिंता… ता.. ता… चिता.. चिता… चिंता … ता… ता…ता !

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