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जीएसटी में सुधार

jls
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गुवाहाटी में हुई दो दिवसीय जीएसटी काउंसिल की बैठक में कुल 211 वस्तुओं की जीएसटी दरों में बदलाव किया गया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद बताया कि 178 वस्तुओं पर जीएसटी दर घटाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है. जीएसटी की नई दरें 15 नवंबर से लागू होंगी. 28 प्रतिशत वाले स्लैब में अब 228 वस्तुएं नहीं सिर्फ 50 वस्तुएं ही रह गई हैं. इसमें अब पान मसाला, सॉफ्ट ड्रिंक, तंबाकू, सिगरेट, सीमेंट, पेंट, एयर कंडीशनर, परफ्यूम, वैक्यूम क्लीनर, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, कार, दोपहिया वाहन और विमान इस स्लैब में रहेंगे.


GST


इन चीजों पर 28 प्रतिशत की जगह लगेगा 18 प्रतिशत टैक्स

इलेक्ट्रिक कंट्रोल, डिस्ट्रीब्यूशन के लिए इलेक्ट्रिक बोर्ड, पैनल, कंसोल, कैबिनेट, वायर, केबल, इंसुलेटेड कंडक्टर, इलेक्ट्रिक इंसुलेटर, इलेक्ट्रिक प्लग, स्विच, सॉकेट, फ्यूज, रिले, इलेक्ट्रिक कनेक्टर्स, ट्रक (लोहे की पेटी), सूटकेस, ब्रीफकेस, ट्रैवलिंग बैग, हैंडबैग, शैंपू, हेयर क्रीम, हेयर डाई, लैंप और लाइट फिटिंग के सामान, शेविंग के सामान, डियोड्रेंट, परफ्यूम, मेकअप के सामान, फैन, पंप्स, कंप्रेसर, प्लास्टिक के सामान, शॉवर, सिंक, वॉशबेसिन, सीट्स के सामान, प्लास्टिक के सेनेटरी वेयर, सभी प्रकार के सिरेमिक टाइल, रेजर और रेजर ब्लेड, बोर्ड, सीट्स जैसे प्लास्टिक के सामान, पार्टिकल/फाइबर बोर्ड, प्लाईवुड, लकड़ी के बने सामान, लकड़ी के फ्रेम, फर्नीचर, गद्दे और बिस्तर, डिटर्जेंट, धुलाई और सफाई में इस्तेमाल होने वाले सामान,कटलरी, स्टोव, कुकर, नॉन इलेक्ट्रिक डोमेस्टिक एप्लाइंस, कपड़े, चमड़े के कपड़ों के सामान, संगमरमर, ग्रेनाइट के बने सामान, कलाई घड़ी, घड़ी और वॉच केस एवं उससे जुड़े सामान, ऑफिस, डेस्क इक्विपमेंट, सीमेंट, कंक्रीट और कृतिम पत्थर से बने सामान, वॉल पेपर, ग्लास के सभी प्रकार के सामान, इलेक्ट्रॉनिक वेट मशीन, अग्निशमक उपकरण, बुलडोजर्स, लोडर, रोड रोलर्स, एस्केलेटर, कूलिंग टॉवर, रेडियो और टेलीविजन प्रसारण के विद्युत उपकरण, साउंड रिकॉर्डिंग उपकरण, सभी प्रकार के संगीत उपकरण और उससे जुड़े सामान, कृत्रिम फूल, पत्ते और कृत्रिम फल, कोको बटर, वसा और तेल पाउडर, चॉकलेट, च्विंगम और बबलगम, रबर ट्यूब और रबर के बने तरह तरह के सामान, चश्में और दूरबीन.


18 की बजाय इन वस्तुओं पर लगेगा 12 फीसदी जीएसटी

मधुमेह रोगियों को दिया जाने वाला भोजन, प्रिंटिंग इंक, टोपी, कृषि, बागवानी, वानिकी, कटाई से जुड़ी मशीनरी के सामान, जूट, कॉटन के बने हैंड बैग और शॉपिंग बैग, रिफाइंड सुगर और सुगर क्यूब, गाढ़ा किया हुआ दूध, पास्ता और सिलाई मशीन का सामान.


अब इन वस्तुओं पर 18 की बजाय लगेगा सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी

चटनी पाउडर, पफ्ड राइस चिक्की, पीनट चिक्की, सीसम चिक्की, रेवड़ी, तिलरेवड़ी, खाजा, काजू कतली, ग्राउंडनट स्वीट गट्टा, कुलिया, नारियल का बुरादा, इडली और डोसा, कपास के बुने हुए कपड़े, तैयार चमड़ा, चमड़े से बने सामान, फ्लाई एश, फिशिंग नेट और फिशिंग हुक.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जीएसटी परिषद की सिफारिशों से जनता को आगे फायदा होगा और टैक्स व्यवस्था को मजबूती मिलेगी. पीएम मोदी ने कहा कि जनता की भागीदारी सरकार के कामकाज के तौर तरीकों का मूल है और सरकार के सभी फैसले ‘लोगों के अनुकूल’ और लोगों के लिए हैं. ये सिफारिशें जीएसटी पर अनेक पक्षकारों से हमें लगातार मिल रहे फीडबैक पर आधारित हैं.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार देश के आर्थिक एकीकरण के लिए ‘अथक’ प्रयास कर रही है.


अब टीकाकारों का मानना है कि जीएसटी की भी नोटबंदी जैसी गत बन रही है. नोटबंदी में जिस तरह से रोज़-रोज़ रद्दोबदल करने पड़े थे, उसी तरह से जीएसटी में भी शुरू हो गए. अलबत्ता सरकार का पूरा अमला प्रचार करने में लगाया गया है कि जीएसटी की वसूली के रेट कम करने को जनता के लिए बड़ी राहत के तौर पर प्रचारित किया जाए. टीकाकारों का मानना है कि टीवी पैनल की चर्चाओं में यह बात खासतौर पर चलवाई जा रही है कि इससे गुजरात के व्यापारियों की नाराज़गी कम होगी. इस तरह से आरोप की शक्ल में इस प्रचार पर जो़र है कि गुजरात चुनाव के मद्देनज़र यह फैसला किया गया है.


पहला सवाल यह कि क्या वाकई यह टैक्स गब्बर सिंह जैसा था, जिसे अब कम भयावह बनाने का ऐलान हुआ है. अगर ऐसा है तो यह सवाल सबसे पहले कौंधेगा कि यह भारी भरकम टैक्स लगाया किसने था? जब लगाया गया था तब तर्क दिया गया था कि सरकार को देश के हित में बहुत सी योजनाएं चलानी पड़ती हैं. उसके लिए पैसे की जरूरत पड़ती है सो ऐशोआराम की चीज़ों पर ज्यादा टैक्स तो लगाना ही पड़ेगा. सो नया सवाल यह पैदा हुआ है कि ऐशोआराम की चीजों पर टैक्स घटाने से अब देश हित की योजनाएं चलाने में कमी नहीं आ जाएगी क्या? गौरतलब है कि खासतौर पर ऐशोआराम की चीजों पर टैक्स वसूली के रेट घटाने से सरकार के ख़ज़ाने में बीस हजार करोड़ रुपए कम पहुंचेंगे.


व्यापारी लोग जीएसटी भरने की समय खपाऊ और हिसाब बनाने की खर्चीली प्रक्रिया से परेशान हैं. सो उनके लिए भी सरकार ने टैक्स के कागज़ तैयार करने का बोझ कुछ कम कर दिया. क्या इसे पहले नहीं सोचा जा सकता था? इस तरह सरकार खुद को नौसिखिया साबित करवा रही है. जानकार लोग नफे नुकसान का हिसाब भी बैठा रहे हैं. व्यापारी और नागरिक बेजा तरीके से खा न पाएं उससे सरकार को जितना पैसा बच सकता है, उससे कई गुना उस चोरी न हो पाने का इंतजाम करने में खिन्न होकर बर्बाद तो नहीं हो रहा है?


केंद्र और राज्य सरकारें तरह-तरह के जो टैक्स वसूलती थीं उसकी जगह एक ही टैक्स की व्यवस्था बनाने पर रजामंदी बनाई गई थी. यह रजामंदी इस आश्वासन पर बनी थी कि राज्यों को नई व्यवस्था से अगर कोई घाटा हुआ तो केंद्र सरकार उसकी भरपाई का इंतजाम करेगी. वैसे तो राज्य सरकारें बिल्कुल भी जोखिम उठाने को राजी नहीं होतीं, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य ऐसा है कि ज्यादातर राज्यों में भी भाजपा की ही सरकारें काबिज़ हैं. सो राज्य सरकारों की तरफ से केंद्र की इच्छा, मंशा या योजना पर नानुकुर करने का कोई सवाल ही नहीं उठता, लेकिन राज्यों के संसाधनों में कमी को आखिरकार उन्हें ही झेलना पड़ता है. वे किस तरह से झेलेंगी यह भी आने वाले दिनों में पता चलेगा.


जीएसटी से नया हाहाकार न मचने लगे इसे दोनों प्रकार की सरकारों को सोचकर रखना पड़ेगा. सरकार के तरफदार विशेषज्ञों की सबसे दिलचस्प थ्योरी यह है कि जीएसटी की कंपलायंस यानी इसके मुताबिक टैक्स जमा होने में दिक्कत आ रही थी. उनका तर्क है कि ऐशोआराम की चीजों पर टैक्स कम होने से टैक्स जमा करने वालों की संख्या बढ़ जाएगी. इस तरह से उन्होंने दिलासा दिलाना शुरू किया है कि बदले ऐलान से सरकार के खजाने को 20 हजार करोड़ से कम का ही नुकसान होगा. ऐसा तर्क देने वाले क्या उस समय यह तर्क नहीं दे सकते थे जब 28 फीसद टैक्स वाली स्लैब बनाई गई थी.


इतना तो साफ है कि केन्द्र सरकार ने GST लागू करने में आवश्यक सावधानी नहीं बरती. यहां के बहुस्तरीय बाजार और सामान के उपभोग, उपयोग की प्रवृत्ति और प्रणाली का गंभीर अध्ययन नहीं किया. एक सही उद्देश्य मगर गलत चिंतन. दिल्ली से दौलताबाद वाली स्थिति इसी से पैदा हुई है. अब दिन प्रतिदिन होने वाली तब्दीलियों से क्या परेशानियाँ कम होंगीं या जटिल होती जायेंगी. चाहे जो हो प्रधान मंत्री को कोई भी फैसला हड़बड़ी में नहीं करनी चाहिए और उनके सलाहकारों को भी समझ-बूझकर ही निर्णय करना चाहिए. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास का सपना साकार.

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