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(संस्थापक को उनके जन्म दिन के अवसर पर श्रद्धांजलि)
टाटा न देखा था का सपना
जंगल में मंगल की घटना
यह कालीमाटी कहलाता था
मानव पशु-संग टहलता था
टाटा ने जंगल साफ़ किया,
पागल कहते उसे माफ़ किया.
पत्थर से लौह बनाने को
जीवन को सुघर बनाने को
हर यत्न लगाया था उसने
फल उसका पाया है सबने
अब लोग यहाँ के हैं उत्तम
हर क्षेत्र में आते सर्व प्रथम
जब वायुयान ले रतन उड़े
तब लोग अचंभित हुए बड़े
धन्य धन्य यह धरती है
टाटा के सपने गढ़ती है
सब सड़क भवन हैं सजे धजे
नर नारी भी हैं सजे धजे
जुबिली उद्यान के क्या कहने
फूलों में नग के हैं गहने
इस करामात के कारीगर
बाकी न छोड़ें कोई कसर
टाटा के वासी धन्य आज
निकले घर से ले साज बाज
महिलाएं पीछे नहीं यहाँ
कर्मठ कठोर से बना जहाँ
थकते न यहाँ के श्रमिक वीर
कहलाते मानक श्रम के वीर
जब श्वेद बिंदु तन से निकले
उत्पाद नया नित बन निकले
लाखों के जीवन की रेखा
टाटा ने सपने में देखा
नित नई ऊंचाई छूते हैं
हम करते काम अनूठे हैं
जब भी आता है मार्च तीन
हर जन के मन में बजे बीन
हम नमन उन्हें करने आते
श्रद्धा के पुष्प सजे लाते
हम करें उन्हें हर बार नमन
दिल में भी देखे उन्हें नयन
हम करें उन्हें हर बार नमन
दिल में भी देखे उन्हें नयन
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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