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दीमापुर, पर्थ, होली, आप और भारत !

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नागालैंड के सबसे बड़े शहर दीमापुर में एक चौंकाने वाली घटना में रेप के आरोपी को गुस्साई भीड़ ने जेल से निकालकर मौत के घाट उतार दिया । एक कॉलेज स्टूडेंट से रेप के इस आरोपी को भीड़ ने दीमापुर सेंट्रल जेल से बाहर निकालकर पीटा और उसका दम निकल जाने पर लाश को चौराहे पर टांग दिया। घटना गुरुवार शाम करीब चार बजे की है।
एक आदिवासी कॉलेज स्टूडेंट से रेप की घटना के बाद लोगों में भारी गुस्सा देखा जा रहा था। हजारों लोगों ने गुरुवार दोपहर को दीमापुर सेंट्रल जेल पर हमला बोल दिया, जहां पर आरोपी को रखा गया था। भीड़ ने आरोपी को जेल से निकाला और करीब सात किलोमीटर उसे घसीटा और जमकर धुनाई की। बुरी तरह से जख्मी होने की वजह से उसकी मौत हो गई, तो भीड़ ने लाश को एक चौक पर फांसी पर टांग दिया।
सचमुच यह भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के लिए शर्मनाक घटना है, पर क्या हमारे न्यायविदों, पुलिस, राजनेता, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी वर्ग कुछ भी सीख लेंगे इस घटना से या इसे भी सामान्य घटना की श्रेणी में डालकर कानूनी प्रक्रिया में उलझा दिया जायेगा? एक तरफ देश के क्रूरतम बलात्कार और निर्मम हत्या कांड के दोषी को अब तक जेल में संभालकर रक्खा गया है और उससे इंटरव्यू लेकर डॉक्यूमेंट्री बनाई गयी जिसका राज्य सभा में घोर विरोध हुआ. भारत सरकार ने उसपर बैन लगाया फिर भी BBC ने उसे प्रसारित किया और यूट्यूब पर उपलब्ध भी करा दिया. हो हंगामा हुआ फिर सब कुछ शांत. बलात्कार, छेड़छाड़, और नारी प्रताड़ना की घटना, दिन-रात जारी है बल्कि बढ़ती ही जा रही है, पीड़ित महिलाएं या तो मार दी जा रही है या आत्महत्या कर ले रही हैं…..और हमारी न्यायब्यवस्था ऐसी कि उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता. आखिर आम जनता क्या करे? न्याय की आश में कबतक भटकती रहे या चुपचाप ऑंखें बंदकर सो जाय?
वह तो दीमापुर जैसे छोटे शहर में उतने लोग इकठ्ठा हो गए और आवेश में आकर जेल में घुसकर अपराधी को खींच निकाला और उसकी निर्मम हत्या कर दी. क्या दिल्ली जैसे बड़े शहर में यह सम्भव है? यहाँ मोमबत्ती और तख्ती लेकर भले ही लोग खड़े हो जाएँ, पर हत्या जैसी घटना का अंजाम देनेवाली भीड़ नहीं हो सकती है. साथ ही यहाँ पुलिस ज्यादा संख्या में है और नियंत्रण करने में सक्षम है. भले ही अपराध को रोकने में सक्षम नहीं है.
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवश पर जारी किया गया अरविन्द केजरीवाल का सन्देश काबिले तारीफ है. यह हर भारतीयों और विश्व के पुरुषों के अनुकरणीय हो सकता है…. वैसे भी महिला दिवश पर खूब चर्चाएं हुई, खूब लेख लिखे गए—परिणाम क्या निकला? क्या महिला उत्पीड़न कम होंगे? क्या बलात्कार रुकेंगे? क्या दहेज़ हत्याएं बंद होंगी? क्या फिल्मों में और विज्ञापनों में अंग प्रदर्शन कम होगा? क्या पोर्न साइट्स बंद होंगे? क्या एक बलात्कार को ख़बरें बनाकर बेंचने का कार्यक्रम बंद होगा? क्या बलात्कार पीड़िता को उसका खोया हुआ आत्मसम्मान वापस आएगा? क्या दोषियों को जल्द सजा-ए मौत दी जाएगी? नहीं तो फिर इस महिला दिवश का क्या अर्थ है? …मुझे नहीं मालूम. ….महिला को खुद सशक्त होना होगा…चाहे उसके लिए जो भी करना पड़े….

उसके बाद आते हैं, आम आदमी पार्टी के अंतर्कलह पर. प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को जिस तरह PAC से बाहर का रास्ता दिखाया गया, केजरीवाल की इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी और दिल्ली में रहकर भी बैठक में भाग न लेना, सवाल तो खड़े करता ही है. देश के काफी समर्पित कार्यकर्ता इस घटना से मर्माहत हैं. कुछ लोग आप के विभाजित होने की आशंका जताने लगे हैं. अवश्य ही सभी सीनियर नेताओं को इसे आपसी बात चीत से हल कर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देनी चाहिए ताकि उनके मन का मलाल दूर हो सके. भाजपा, कांग्रेस और आप के ही शाजिया, बिन्नी, किरण बेदी आदि इस मौके की तलाश में हैं और आप को कमजोर करने के लिए हर सम्भव प्रयास करती रहेंगी. आप के बारे में यही प्रचार किया गया कि यह सभी पार्टियों से अलग है, पर कुछ दिनों के बाद ऐसा लगाने लगा है कि यह भी बाकी पार्टियों की तरह ही है. आलाकमान के खिलाफ आवाज उठाने की इजाजत यहाँ भी नहीं है. यह भी अन्य पार्टियों की तरह व्यक्ति आधारित पार्टी हो गयी है. आप के ही नेता मयंक गांधी ब्लॉग के माध्यम से लगातार सवाल उठा रहे हैं और भय भी जाता रहे हैं की उनपर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती या उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. यह विवाद कहाँ जाकर शांत होगा पता नहीं. पर जो कुछ हो रहा है इस नयी पार्टी के लिए अच्छी बात तो कत्तई नहीं है. वैसे सत्ता में एक नशा तो होती ही है उसी से सम्बंधित कुछ पंक्तियाँ रख रहा हूँ.
हुकूमत हाथ में आते, नशा कुछ हो ही जाता है,
अगर तहजीब न बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.
मुखौटे ओढ़कर हमने, फिजां अनुकूल ढाली थी,
समय के साथ चलना है, तभी फ़रियाद रक्खोगे!

तीसरी घटना कश्मीर में सरकार बनने और मुफ्ती मोहम्मद सईद के विवादस्पद बयान को लेकर चर्चा गर्म है. दो विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां कब तक साथ निभाएंगी या समानांतर रेखा की तरह साथ साथ चलेंगी?
मोदी जी सबका साथ सबका विकास का नारा, जमीन अधिग्रहण कानून के पक्ष में अपनी दलील से सबको समझाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि यह काम संसद के अंदर करने का है. जनता तो अपना मत दे चुकी है. नहर अस्पताल सड़कें, स्कूल आदि पहले से भी बनते रहे हैं. कारखाने पहले भी बने हैं. फिर नया कानून में सख्ती क्यों? हर बार गरीबों के नाम से योजनाएं बनाई जाती है, पर उसका फायदा कितने गरीबों को मिल पाता है. बातें काम और काम ज्यादा होने चाहिए पर मोदी जी थकते भी नहीं हैं, धाराप्रवाह एक ही बात को बोलते जाते हैं. बार बार सुनते सुनते आम आदमी ऊब चूका है. इसका अहसास मोदी जी को भी है, वे भी इस बात को समझा चुके हैं, झूठ एक बार चल सकता है, बार बार नहीं.
होली का जश्न पूरा देश मना रहा था तभी पर्थ में टीम धोनी ने वेस्ट इंडीज को चार विकेट से हराकर होली की सबसे बड़ी सौगात दे दी. अब होली की उमंग से बड़ा जीत का उमंग हो गया और सभी चैनेल क्रिकेट का ही गीत गाने लगे. वैसे होली आपसी सौहार्द्र और मेल मिलाप का पर्व है. इसमें चाहे जितने भी कष्ट हो बिहार के लोग अपने परिजनों के पास बस और ट्रेन की छत पर भी बैठकर चले जाते हैं. होली में रसीले गीतों और हास्य कविसम्मेलनों की बहार आ जाती है. सबी टी वी चैनल इसे प्रायोजित कर खुशियां बिखेड़ने लगते हैं. पर बे मौसम बारिश से किसानों को भयंकर क्षति हुई है. ठंढा जाते जाते लौट आया है. स्वाइनफ्लू का आतंक बढ़ता जा रहा है. रोज नए नए मरीज इससे आक्रांत हो रहे हैं. मौतों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है.
भारत विविधताओं से भरा देश है. यहाँ विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों के लोग आपस में मिलजुलकर रहना चाहते हैं. पर कुछ कट्टर ताकतें हमेशा इसे कमजोर करने की कोशिश करती रहती हैं. कुछ मुश्लिम संगठन, कुछ हिंदूवादी संगठन भी जहर फ़ैलाने का काम करते रहते हैं. ऐसे में इन साध्वियों को क्या कहें, जो प्रेम और भाईचारा का सन्देश देने के बजाय अपनी बदजुबानी से सुर्ख़ियों में रहना चाहती है. आश्चर्य होता है उनके ज्ञान पर और उनके अनुयाइयों पर.
हमारे यहाँ होली, ईद दीवाली, क्रिसमस और गुरुपर्व सभी भाईचारे का सन्देश देते हैं. हम सभी को इसे सुदृढ़ करने का प्रयास करना चाहिए. तभी बनेगा एक भारत, नेक भारत, श्रेष्ट भारत, सशक्त और विश्वगुरु भारत!

– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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