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भारत माता की जय!

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हमारे धर्मशास्त्रों में मातृभूमि के महत्व पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। वेद का कथन है- ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं। इस आदेश का असंख्य महापुरुष पालन करते हुए मातृभूमि की समृद्धि के लिए, उसकी अखंडता की रक्षा के लिए सदैव सन्नद्ध रहे हैं। मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पित करने की प्रेरणा पुराणों तथा उपनिषदों में भी दी गई है। परमगति को कौन प्राप्त होते हैं, इसका विश्लेषण करते हुए कहा गया है-
द्वाविमौ पुरुषौ लोके सूर्यमंडलभेदिनौ। परिव्राड् योगयुक्तश्च रणे चाभिमुखो हत:।।
अर्थात् योगयुक्त संन्यासी और रण में जूझते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाला वीर- ये दो पुरुष सूर्यमंडल को भेदकर परमगति को प्राप्त होते हैं। धर्मशास्त्रों के वचनों से प्रेरणा लेकर समय-समय पर माता के सपूत मातृभूमि की रक्षा के लिए अनादिकाल से आत्मोत्सर्ग करने, प्राणदान करने, शीशदान तक करने को तत्पर रहते रहे हैं।

चाणक्य के अनुसार राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ, और अपनी माँ, माता के समान हैं. मामी, चाची, भाभी, फुआ आदि सभी माता तुल्य ही हैं. आदर्श अवस्था में मातृवत परदारेषु – अर्थात दूसरे की पत्नी माँ के समान होती हैं. हमारे भारत में भूमि के अलावा, नदियाँ, देवियाँ, यहाँ तक कि कन्यायें भी माता के समान हैं.
पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भारत एक खोज(डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया) में और भी विस्तार से बताया था भारत माता मतलब. यहाँ की जमीन, नदियाँ, पहाड़, झरने, वन संपदा के अलावा यहाँ के आवाम ही भारत माता हैं. हम सब इन्ही की जय चाहते हैं. यानी भारत के आवाम की जीत!
वर्तमान सन्दर्भ में संभवत: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा – हर भारतीय को भारत माता की जय बोलना चाहिए. उनका बोलना था कि असद्दुदीन ओवैसी ने विरोध कर कह दिया कि हमारी गर्दन पर छुरी रख कर कहोगे कि भारत माता की जय बोलो तब भी नहीं बोलूँगा. शायद ओवैसी ने सोचा था, सारे मुसलमान उसका समर्थन करेंगे. पर अधिकाँश मुसलमानों के अलावा विश्व सूफी सम्मेलन में मौजूद लोगों ने भी प्रधान मंत्री की उपस्थिति में भारत माता की जय के नारे लगाये. जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने ओवैसी को खुली चुनौती दे डाली. कभी-कभी वार उल्टा भी पड़ जाता है. वैसे भी ओवैसी के समर्थक भी जय हिन्दुस्तान! जय हिन्द! जय भारत! तो कह ही रह हैं. भारत भूमि को माता कहने में उनका धर्म आरे आ रहा है. पर अब बहुत से मुसलमान अपनी बौद्धिकता का परिचय दे रहे हैं. वे धर्म से ऊपर देश को मान रहे हैं. मानना भी चाहिए. यह धरती ही तो सब की जन्मदात्री है. यहाँ जन्म लेने के बाद ही लोगों ने अलग-अलग धर्म बनाये और अलग-अलग जातियां, अलग-अलग भाषाए/बोलियाँ. इस भारत भूमि की खासियत है कि यहाँ विविधता में एकता है. इसीलिए हमारे राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों के अलावा, चौथा रंग नीला है और चक्र यह बतलाता है कि हम गतिमान हैं. यानी समय के अनुसार परिवर्तनशील भी. परिवर्तन ही जीवन है और यह किसी के रोके नहीं रुका है.
कहते हैं, अबनिंद्रनाथ टगौर की कल्पनाशीलता से बनी हमारी पहली भारत माता। 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान अबनिंद्रनाथ टगौर की कूची से जब भारत माता का स्वरूप अवतरित हुआ तो देश की आज़ादी का सपना देख रहे लोगों की कल्पनाओं में मानो आग लग गई। जब यह पहली बार एक पत्रिका में छपी तो शीर्षक था ‘स्पिरिट आफ मंदर इंडिया’। अबनिंद्रनाथ टगौर ने पहले इनका नाम बंग माता रखा था बाद में भारत माता कर दिया। उसी बंगाल में इस तस्वीर से पहले आनंदमठ की रचना हो चुकी थी और वंदे मातरम गाया जाने लगा था। इस भारत माता के चार हाथ हैं। शिक्षा, दीक्षा, अन्न और वस्त्र हैं इनके हाथों में। कोई हथियार नहीं है कोई झंडा नहीं है। ज्ञात तस्वीरों के हिसाब से पहली भारत माता एक सामान्य बंगाली महिला सी नज़र आती हैं।
जल्दी ही देश भर में भारत माता की अनेक तस्वीरें बनने लगीं। क्रांतिकारी संगठनों ने भारत माता की तस्वीरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। छापों के दौरान भारत माता की तस्वीर मिलते ही अंग्रेजी हुकूमत चौकन्नी हो जाती थी। अनुशीलन समिति, युगांतर पार्टी भारत माता की तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं तो पंजाब में भारत माता सोसायटी, मद्रास में भारत माता एसोसिएशन का वजूद सामने आता है। सब अपनी-अपनी भारत माता गढ़ने लगते हैं लेकिन धीरे-धीरे तस्वीरों में भारत माता का रूप करीब-करीब स्थाई होने लगता है।
भारत माता के चार हाथ की जगह दो हाथ हो जाते हैं। शुरू में ध्वज दिखता है फिर त्रिशूल और तलवार दिखने लगता है। कई तस्वीरों में तिरंगे का भी आगमन होता है। कुछ तस्वीरों में भारत माता के चरणों में श्रीलंका भी आ जाता है। तो आज अगर आप पुरानी तस्वीरों को देखेंगे तो विभाजन से पहले का पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी नज़र आएगा। देखने वालों ने देवी दुर्गा में भारत माता को देखा और भारत माता में मां दुर्गा को। अबनिंद्रनाथ टैगोर की भारत माता बंगाल की होने के कारण न तो शेर के साथ हैं न त्रिशूल के साथ। कई तस्वीरों में शेर के रूप भी अलग-अलग दिखते हैं। कहीं शेर गुर्रा रहा है तो कहीं विजयी भाव से शांत है। देवी होने के कारण कुछ लोगों को लगता है कि भारत माता तो हैं मगर सबकी माता नहीं हैं। दरअसल हमारी आज़ादी की लड़ाई में कई आधुनिक तत्व हैं मगर स्वतंत्रता आंदोलन अतीत के हिन्दुस्तान के साथ चलता है। उसके प्रतीकों से पूरी तरह अलगाव नहीं कर पाता। इस वजह से आपको राष्ट्रवाद के साथ धार्मिक प्रतीक दिखेंगे और धार्मिक व्यक्ति राष्ट्रवादी होने का दावा करते मिलेंगे।
सुमति रामास्वामी ने अपनी किताब में एक तस्वीर पेश की है। 20 अप्रैल 1907 की है। बंगाल में अबनिंद्रनाथ टगौर 1905 में भारत माता की कल्पना करते हैं तो सुदूर दक्षिण में महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर भारत माता की तस्वीर छापते हैं। यह तस्वीर नए साल की देवी के रूप में छपी है लेकिन उनका एक हाथ ग्लोब पर है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई दिख रहे हैं, जो नमन कर रहे हैं। तब तो किसी ओवैसी को दिक्कत नहीं हुई कि एक देवी के कैलेंडर में वे क्यों शीश नवा रहे हैं। एक तस्वीर को भारती ने कुछ समय बाद छापा था। भारत माता की इस तस्वीर में वंदे मातरम लिखा है देवनागरी में। भारत माता के चरणों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हैं, नाव पर खड़े हैं। इस तस्वीर में भारत माता के एक हाथ में उर्दू में लिखा हुआ है अल्लाहो अकबर। यह सबकी भारत माता हैं लेकिन क्या आज के जमाने में यह संभव है। अक्सर लोग भारत माता की तस्वीर में माता देखने लग जाते हैं और माता में सिर्फ देवी दुर्गा। भारती ने इस तस्वीर में सिर्फ भारत देखा। इसलिए वहां हिन्दी में वंदेमातरम है और उर्दू में ‘अल्लाहो अकबर’।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर सुब्रह्मण्यम भारती का जिक्र करते हैं। मार्च 2015 में श्रीलंका की संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण देते हुए भारती कि कविता की कुछ पंक्तियां पढ़ीं थीं और कहा था कि भारती महान राष्ट्रवादी कवि थे। भारती पहले शख्स हैं जिनके बारे में जिक्र मिलता है कि उन्होंने भारत माता की तस्वीर से लेकर मूर्तियां बनाने के प्रयास किए। हमारे बहुत सारे हिंदी कवियों ने भारत माता को ग्रामवासिनी कहा है. महात्मा गाँधी भी कहते थे. भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है. आजकल सोसल मीडिया पर भी भारत माता के बहुत सारे चित्र आ रहे हैं. इनमे बहुत लोगों भारत माता को ग्रामीण और विपन्न अवस्था में एक माँ का रूप बनाया है. हमें इसी भारत माँ को संपन्न बनाना है. तभी होगी असली भारत माता की जय! आज पूरा भारत टी 20 विश्व कप में पाकिस्तान पर भारत की जीत से खुशियाँ मना रहा है. भारत माता की खूब जय हो रही है. इसी बीच फिरोज शाह कोटला मैदान में टी 20 महिला विश्व कप में बारिश के चलते डकवर्थ लुईस प्रणाली के अनुसार पाकिस्तान को भारत पर दो रनों से जीत की घोषणा हुई. पर यह खबर पुरुष विश्वकप की जीत में दब गयी. इसे भी महत्व दिया जाना चाहिए तभी तो होगी सही अर्थों में भारत माँ की जीत और महिला सशक्तिकरण भी ! नहीं??? फैसला हम सबको करना है.

– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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