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आदमी मशीन न बन जाए इसलिए बनाए गए हैं त्योहार

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विश्वकर्मा की नगरी टाटानगर। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब विप्र सुदामा विपन्न अवस्था में अपने सहपाठी मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे, श्रीकृष्ण भगवान ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को आदेश दिया था कि सुदामा जी के लिए सुन्दर महल का निर्माण किया जाय. विश्वकर्मा ने सुदामा जी के उनके घर पहुँचने से पहले ही सुन्दर सा महल खड़ा कर दिया था. सुदामा जी भी अपने घर पहुंचकर आश्चर्यचकित हो गए थे.


Lord Vishwakarma


थोड़ी कल्पना की कलम से –


देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा जी को कलियुग में भी कुछ करने की इच्छा हुई. उन्होंने जमशेदजी नुशेरवानजी टाटा को स्वप्न में दर्शन दिया. जमशेदजी चौंक कर उठ बैठे.
विश्वकर्मा जी बोले – मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है वत्स.
टाटा – आज्ञा देवशिल्पी.
विश्वकर्मा – पूर्व दिशा में कालीमाटी (वर्तमान जमशेदपुर) नामक एक जगह है, जहाँ अभी भूमि पर तो वनसंपदा है पर वहीं पर आसपास में काफी मात्रा में खनिज सम्पदा भी है. वस्तुत: यह धरती रत्नगर्भा है. उन रत्नों को पहचानकर उसे परिष्कृत कर उसका वास्तविक रूप देना है. यह काफी मजबूत रत्न है, जिसका इस्तेमाल हर जगह प्रचुरता से किया जाना है. तुम जाओ और विशेषज्ञों की मदद लेकर उस क्षेत्र में लौह संयंत्र की स्थापना करो. मेहनत तुम्हे और तुम्हारे साथियों/सहयोगियों को करनी होगी, सुफल जरूर मिलेगा. हम तुम्हारे साथ हैं.


टाटा ने देवशिल्पी से प्रेरणा पाकर कालीमाटी जगह की खोज की और उसे विकसित कर टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी की स्थापना की, जो आज टाटा स्टील के नाम से विख्यात है. टाटा स्टील के बाद टाटा मोटर्स एवं अन्य कम्पनियां अपना विस्तार करने लगीं और आज यहाँ लगभग १५०० छोटे-बड़े उद्योग धंधे स्थापित हैं. इस शहर की आबादी अब १५ लाख से ऊपर है. १७ सितम्बर को यहाँ विश्वकर्मा पूजा बड़े धूमधाम से मनायी जाती है. उस दिन यह वास्तव में विश्वकर्मा नगरी लगती है.


टाटा एक व्यवस्थित नगर तो है ही. यहाँ टाटा कंपनी द्वारा दी गयी नागरिक सुविधा किसी भी राज्य सरकार द्वारा दी जानेवाली नागरिक सुविधा से बेहतर है. जैसे अयोध्या के राजा राम थे. वैसे ही टाटानगर के नागरिकों के ह्रदय के राजा टाटा साहब हैं. विश्वकर्मा पूजा के दिन हम सभी जमशेदपुरवासी विश्वकर्मा भगवान के साथ टाटा साहब को भी नमन करते हैं.


जितने तरह के कामगार, कारीगर, मैकेनिक, मिस्त्री, इंजीनियर, शिल्पी आदि अपने वर्कशॉप या दुकान में काम करते हैं. जो गाड़ियाँ बनाते या गाड़ियाँ रखते हैं, सभी इस दिन साफ़-सफाई कर विश्वकर्मा भगवान की पूजा करते हैं. उनसे अपनी और अपने उपकरण की सकुशलता की कामना करते हैं. अब तो हर घर में कुछ न कुछ मशीनरी होती है, इसलिए घरों में भी हमलोग अपने-अपने उपकरणों की साफ़-सफाई कर विधिवत पूजा करते ही हैं.


जितनी तरह की भी पूजा हमारे यहाँ या कहीं भी की जाती है, सबका एक कॉमन काम होता है साफ़-सफाई फिर पूजा और प्रसाद. मिलजुलकर काम करने की टीम भावना और आपसी सौहार्द्र बढ़ाने का जरिया तो है ही साथ ही कुछ मनोरंजन या मन का बदलाव भी होता है. नित्य के कार्यकलापों से हटकर कुछ अलग करना.


संयोग से इस बार १७ सितम्बर रविवार को पड़ा है, इसलिए इस दिन ज्यादातर जगहों में (अत्यावश्यक कार्य या लगातार उत्पादन के कार्य को छोड़कर) छुट्टी का दिन होता है, इसलिए इस साल लोगों में अच्छा उत्साह देखा गया है. एक संयोग यह भी रहा कि ज्यादातर संस्थानों में दुर्गापूजा से पहले होने वाले बोनस का भी भुगतान हो गया है, इसलिए कामगारों के पास खर्च करने और पूजा को उत्साहपूर्वक मनाने के लिए अतिरक्त रकम भी है. रेलवे और ऑटोमोबाइल के कारखानों में भी विश्वकर्मा पूजा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है.


संयोग ही कहें कि १७ सितम्बर को ही हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी का जन्म दिन भी है. काफी लोग इन्हें ‘नये भारत’ (न्यू इण्डिया) का विश्वकर्मा मान रहे हैं और अभी हाल ही में उन्होंने अहमदाबाद से लेकर मुंबई तक के लिए बुलेट ट्रेन चलाने का शिलान्यास जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ मिलकर किया. संभावना है कि अगले पांच साल में बुलेट ट्रेन की सेवा शुरू हो जायेगी. आज ही यानी १७ सितम्बर के दिन उन्होंने गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सबसे बड़े और ऊंचे सरदार सरोवर डैम को देश को समर्पित किया. यह पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का सम्मिलित सपना था. इससे गुजरात सहित राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र को भी पानी के साथ-साथ पनबिजली का भी लाभ होगा.


ज्ञातव्य है कि 56 साल पहले पंडित नेहरू ने ही सरदार सरोवार बांध की नींव रखी थी. पंडित नेहरू को भी आधुनिक भारत का शिल्पी कहा जाता है. आजादी के बाद साल 1963 में भाखड़ा नांगल बांध को देश को समर्पित करते हुए नेहरू ने इसे आधुनिक भारत का मंदिर बताया था. देश में आधारभूत ढांचे का निर्माण और औद्योगीकरण की शुरुआत का श्रेय नेहरू को ही जाता है. यह बात अलग है कि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी ने नेहरू का जिक्र न करके लोगों द्वारा आलोचना झेलने का मन बना ही लिया है. इसमें उन्हें और उनके समर्थकों को आनंद आता है.


देखा जाय तो पूरी दुनिया सहित भारत में भी काफी निर्माण कार्य हुए हैं और जो भी शिल्पी हैं, जो भी शिल्पकार्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगे हैं, उन सबके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। अगर प्रेरणास्रोत के रूप में ही श्री विश्वकर्मा को मानें, तो भी हमारी कार्यकुशलता और मनोबल तो बढ़ता ही है. आज के कम्प्यूटर युग में कम्प्यूटर के साथ-साथ नए-नए रोबोट भी बनाये जाने लगे हैं, जो कई मनुष्यों का काम अकेले बिना थके कर रहे हैं. ये सभी मनुष्यों द्वारा ही निर्मित हैं और लगातार विकास का क्रम जारी है. आदमी मशीन न बन जाए, इसलिए बीच-बीच में पूजा, त्योहार आदि बनाये गए हैं, ताकि रोजमर्रा के कार्यों में उबाऊपन महसूस न हो.


६ दिन लगातार कार्य करने के बाद एक दिन की छुट्टी वैधानिक है। उसके बाद बीच में मनाये जाने वाले पर्व-त्योहार को सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए. हाँ अति उत्साह में दुर्घटना या अप्रिय घटना को रोकने का पूरा-पूरा प्रयास किया जाना चाहिये. जमशेदपुर के हर छोटे बड़े संयत्र में यह सावधानी रखी जाती है. अभी तक किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है. उम्मीद है बाबा विश्वकर्मा सबका उचित ख्याल रखेंगे. हम सभी यही कामना करते हैं कि बाकी के दिन सुरक्षित और खुशहाली के साथ व्यतीत हों.

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