उत्थान
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मैंने देखी हैं तुम्हारी चमकती आँखें,
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तुम कभी कह ना पाओगी, ये जानता हूँ मैं;
रिश्ता कोई इसे बाँध न पायेगा, ये भी मानता हूँ मैं.
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इस अनुभूति को नाम देना कितना कठिन है,
बिना कहे, बिना सुने भी तो ये मुमकिन है.
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काँपते होठों से शायद ना कह पाऊँ तुझे,
पर तुम मेरी हो ये विश्वास है मुझे.
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-पंकज जौहरी.
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