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दलितों के मसीहा बाबा साहेब

jay mata di 2
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baba ss

दलितों के मसीहा बाबा साहेब

दलितों के मसीहा, संविधान के रचयिता बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर लखनऊ में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया इस कार्यक्रम के दौरान इण्डियन हेल्पलाइन की प्रबंध सम्पादक सुनीता दोहरे ने अपने विचारों को प्रकट करते हुए ये बाते कही । आइये देखते हैं राजधानी से ये रिपोर्ट ।
विश्वविख्यात दलितों के मसीहा बाबा साहेब की जयंती के अवसर पर बाबा साहेब को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर जी के नाम का प्रताप ऐसा है कि दुराचारी भी सदाचारी हो जाता है, इस नाम के प्रभाव से ही सारे अमंगल दूर हो जाते हैं। इस दौरान भारी संख्या में लोग मौजूद थे उन्होंने बाबा साहेब के गुणों का बखान करते हुए कहा कि बाबा साहेब के गुणगान मात्र से ही सारे कष्टों से निजात मिल जाती हैं आज देश ने भौतिक उन्नति तो खूब कर ली किन्तु देश के प्रति ईमानदारी और अपने कर्तव्यों से दूर होते जा रहे हैं जिससे मानवीय मान बिन्दुओं में लगातार गिरावट हो रही है  बाबा साहेब ने संविधान लिखने का जो चमत्कार किया है उससे बडा कोइ्र चमत्कार हो ही नही सकता । उन्होने हर एक की जिंदगी की बेहतरी के लिये  आधुनिक भारत की कल्पनाओं को साकार किया है । देखा जाए तो सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक सभी मामलें संविधान की मर्यादा में निपटते है । यदि हम संविधान को हटा कर देखे तो आधुनिक भारत के विकास की कल्पना नही कर सकते है । आज बाबा साहेब की जयंती के अवसर पर मैं अपने सभी दलित भाइयों को ये बताना चाहूंगी कि अपने कर्म से कभी पीछे मत हटिये इस बात का ईतिहास साक्षी है  कि उन्होने किन विषम परिस्थितियों में संविधान निर्माण जेसा कार्य किया ! बाबा साहेब के गुणों का बखान जितना भी किया जाये उतना कम है कई किताबें भर जाएँगी उनकी महिमा का गुणगान करने में !

आज आप तक एक बात और पहुँचाना चाहूंगी कि आज उत्तर-प्रदेश की राजनीति में अगर आपकी जाति ‘पावरफुल’ है तो आप पर लगे करप्शन, क्राइम के दाग भी अच्छे हैं। और समाजवादी पार्टी भी सियासत की इस जमीनी सच्चाई को बखूबी समझती है ! जहाँ तक मैं समझती हूँ कि दलितों के साथ हुई घटनाओ के लिये तथाकथित दलित नेता ही जिम्मेदार होते है जो एक बार सत्ता मे पहुंचने के बाद दलितों का हित पूरी तरह भूलकर अपनी जेबें भरने मे तल्लीन रहते है ! ये कैसा भारत देश है जहाँ एक कमजोर वर्ग को अपने ही मुल्क के अंदर अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है ! दलितों की दुर्दशा का एक सबसे और अहम् कारण मुझे ये भी नजर आता है कि भारतीय संविधान के अनुसार दलितों को मूल अधिकारो मे से एक समानता का अधिकार आजादी के इतने सालों बाद भी नही मिला है। कभी कभी तो मुझे लगता है कि हिन्दुओ के धार्मिक नियंत्रण दलितों और आदिवासियो के हाथों मे आने चाहिए जिससे कि ब्राह्मणवादी मानसिकता के ब्राह्मणों के जुल्मों का अंत हो और सामाजिक स्तर पर दलितों को बराबरी का सम्मान मिले।
स्वंतत्र भारत में हर व्यक्ति को कानून के दायरे में अपने ढंग से जीने की स्वंतत्रता है, परन्तु वास्तविक धरातल पर आज भी दलित समुदाय पर वही पुराना दबंग वर्ग का कानून चलता है  पुलिस में केस भी दर्ज होता है, कोर्ट कचहरी में भी मामले जाते हैं पर क्या न्याय मिलने तक दलित दबंगों का विरोध, मारपिटाई उनकी महिलाओं से छेड़छाड़ सह पाने लायक रह पाते हैं ? दलितों को न्याय मिलना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु त्वरित न्याय मिलना आवश्यक है क्योंकि सामाजिक संरक्षण, सरकार की तत्परता, दलित समुदाय की जागरूकता तथा ठोस एवं त्वरित कारवाई जैसे कार्यों के अधिक प्रयास करने होंगे आखिर दलित समाज का कमजोर वर्ग कब तक इन यातनाओं को झेलता रहेगा और उन्हें स्वछन्द जीवन जीने का अधिकार कब मिलेगा ?सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये है कि इस कमजोर वर्ग के लिए अनुसूचित जाति से निर्वाचित होकर आये सांसदों के दलितों के प्रति होने वाले अत्याचारों पर मुंह बंद क्यों रहते है ?

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juranlist ashok kumar

mumbai maharastra

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