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हिन्दू और हिन्दू नववर्ष 2069

ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
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हिन्दू और हिन्दू नववर्ष 2069
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु शब्द से हुई। सिन्ध नदी के आसपास के क्षेत्र को सिन्धु कहाँ गया। कालांतर में सिन्धु घाटी की सभ्यता का विस्तार हुआ । यह सिन्धु शब्द ईरानी शब्द में बदलकर हिन्दु हो गया। हिन्दु से हिन्द बन गया । ईरानी में ‘स’ का ‘ह’ हो जाता है। यह शब्द सिन्दु से रूपांतरित होकर हिन्दु व हिन्दु से हिन्दू बन गया। ईरानी में ‘सप्त’ का ‘हफ्त’ और सप्ताह का हफ्ता व सिन्धु का हिन्दु शब्द बनता है। हिन्दु शब्द भारत का सूचक हो गया है। भारत हिन्दुस्तान कहा जाने लगा। यूनानी में इंदिका या अंग्रजी में इण्डिया का विकसित रूप है। हिन्दी शब्द का सबसे पहले प्रयोग जफ़रनामा पुस्तक में 1424 ई. में किया गया । आर्यों के आसपास चहँुओर बसे होने के कारण इसे आर्यावत्र्त कहा गया। आर्य का अर्थ सभ्य, शतुन्तला व दुष्यंत के पुत्र भरत के कारण इसे भारतवर्ष कहा गया। भारत के साथ जुड़े शब्द वर्ष का अर्थ सन् नहीं बल्कि भू-खण्ड है। भारत वर्ष याने भारत का भूखण्ड । हिन्दुस्तान नामकरण मुगलों के द्वारा किया गया था।
हिन्दुत्व क्या है?
विद्वानों ने हिंन्दुत्व को धर्म नहीं, एक जीवन पद्धति या दर्शन कहा है। केरी ब्राउन ने इसे हिन्दुओं की विचारधारा कहा है। डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है ”हिन्दुत्व उन लोगों का समुदाय है, जो सत्य को पाने के लिए दृढ़ता के साथ प्रयत्नशील हैं इस हिन्दुत्व में मूर्ति पूजा, अवतार मान्यता, पुनर्जीवन, स्वर्ग-नर्क की धारणा, कृतज्ञता, कृपा, क्षमा, दया, अहिंसा, परोपकार, माता,पिता, गुरू सेवा, संयम,इंद्रिय निग्रह, मन ,वचन ,कर्म की शुद्धता, परिवारवाद माता-पिता की कल्पना एवं पूजा, स्त्रियों के प्रति आदर, परधर्म का आदर मुख्य रूप से शामिल हैं। शून्य का आविष्कार व विश्व को दाशमिक प्रणाली देने का कार्य आर्यभट्ट जैसे हिन्दुओं ने किया। ई.पू.700 में हिन्दुओं का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ। संस्कृत को यूरोपीय भाषाओं की जननी माना गया है। महर्षि चरक ने 2500 वर्षों पूर्व आयुर्वेद पद्धति का सूत्रपात किया नौका परिवहन हिन्दुस्तान में 6000 वर्षो पूर्व शुरू हुआ। भास्कराचार्य ने एक वर्ष (365.2587 5484 दिन)में पृथ्वी के द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण होना माना। इस कालावधि को 1 वर्ष की संज्ञा दी गयी। 2600 वर्ष पूर्व सुक्रत ने शल्य क्रिया का कार्य किया। ये सभी विषय वस्तुएँ हिन्दुत्व व हिन्दुस्तान के सनातन होने की साक्षी हैं।
हिन्दु घर की अनिवार्य वस्तुएँ :
पुराने समय में ‘ऊँ’ का जाप, गीता, रामायण ,शंख दीप प्रज्जवलन दो वक्त की आरती ,रूद्राक्ष ,मोरपंख,तुलसी,कदलीवृक्ष,गोमाता ,नारियल,शिवलिंग, त्रिशूल/ कमण्डलु,गंगाजल, गोबर लेपन, घर में मंदिर (पूला स्थल) हिन्दू परिवार के लिए आवश्यक माना जाता था।
वर्तमान परिदृश्य और भारतीय परिवार :
भारत के तमाम परिवार, वर्तमान में पूर्वी संस्कृति को भूलकर पश्चिमी संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं। आज भारतीय परिवारों में तुलसी, गाय, माता-पिता (अलगाव के कारण) गोबर लेपन (टाइल्स के कारण) सुबह-शाम आरती, ऊपरोक्त सभी अनिवार्य वस्तुओं की कमी हो गयी है। अब वे हैप्पी बर्थ डे, हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी वेलेण्टाइन डे की रट लगाए हुए हैं। माता, मॉम (मोम)हो गयीं, पिता डैड (मृत) हो गये। ‘जीÓलगाना भूलते जा रहे हैं। आप ऐसा कर लो। (शुद्ध: आप ऐसा कर लीजिए) जैसे वाक्य प्रचलित हो गये हैं। क्या यह सभ्यता की निशानी है? कि हम एक वाक्य भी शुद्ध नहीं बोल सकते। आाज अभिमान , आदर से बड़ा हो गया हैं । नयी पीढ़ी को सीख लेकर आदर सूचक वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। टीवी की अप-संस्कृति ने षडय़ंत्र रचना,बाप- बेटे का,सास -बहु का झगड़ा, ननद -भौजाई का मन मुटाव ही ज्यादा परोसा है। नैतिकता खत्म सी हो गयी है। हिन्दू नववर्ष हमें इस पर चिन्तन करने के लिए प्रेरित करता है।
हिन्दू नववर्ष कब ? क्यों ? कैसे?
चैत्र मास की प्रतिप्रदा (शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि)से हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है।आज हम 1 जनवरी को ही नया वर्ष मान बैठे हैं। इस दिन बाजे -गाजे धूम धड़ाके , आतिशबाजी, ग्रीटिंग कार्ड, की प्रथा चल पड़ी है। तात्पर्य यह है कि हम वास्तविक भारतीय नववर्ष को भूलकर विदेशी नववर्ष में खुश रहने लगे हैं । यानी बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।
टैक्स /बजट वाले लोग 1 अप्रैल से नया सत्र (वर्ष) मानते हैं जबकि एक अप्रैल मूर्ख दिवस होता है। चैत्र प्रतिपदा से रामनवमी की शुरूआत हो जाती है। हिन्दू नववर्ष की शुरूआत चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नव संवत्सर के रूप में होती है। इसे बहुत ही पवित्र तिथि मानी गयी है। यह भी मान्य विचार है कि इसी निथि से प्रजावत्सल सृष्टिकत्र्ता भगवान ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरंभ किया था।
चैत्र मासि जगद् ब्रहा्रा ससर्ज प्रथमेऽह्नि।
शुक्ल पक्षे समग्रेतु सदा सूर्योदये सति।।
इसी तिथि को प्रजापालक भगवान श्री हरि विष्णु के आदि अवतार मत्स्य रूप का आविर्भाव माना जाता है। युगों के प्रथम क्रम पर आने वाले सतयुग का आरंभ इसी तिथि से हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसी दिन सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों पर विजय श्री प्राप्त की थी। इस विजयगाथा की याद को चिरस्थायी बनने के लिए महाराज विक्रमादित्य ने इस तिथि का चयन विक्रम सम्वत् की शुरूआत के लिए किया । आगामी विक्रम संवत् 2069 है। इससे पूर्व हिन्दुओं के पास साल की गिनती का साधन नही था। महाराज विक्रमादित्य अपनी न्याय प्रियता के लिए पूरे विश्व में विख्यात हैं। प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। इसी तरह द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर व वर्तमान युग में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक चैत्र प्रतिपदा के दिन ही हुआ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हिन्दू नववर्ष के आरंभ के दिन 1889 में हुआ था। इसी तिथि को धर्मगुरू झूलेलाल के जन्म दिन के रूप में मनाते हैं। राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में ही चीनी यात्री फाह्यान का भारत आगमन हुआ था। वैसे तो प्रत्येक माह का पहला पक्ष कृष्ण पक्ष ही होता है। चैत्र मास का पहला पक्ष भी कृष्ण होता है फिर नये सम्वत की शुरूआत शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि (15 दिनों के बाद) क्यों ? इसके उत्तर में इस लेख के ऊपर में बहुत से कारण गिनाये गए हैं। एक कारण की संभावना इस तर्क से भी बनती है। तात्कालीन पंडितों /ज्योतिषियों ने महाराज विक्रमादित्य को उक्त कारणों के अलावा यह भी बताया/ सुझाया होगा कि महाराज कृष्ण पक्ष अंधेरा का पक्ष है। अंधेरा शब्द ही अपने आप में अप्रिय, भयानक, दुष्कार्य,छलकपट, अपयश का द्योतक है। ये सभी दुष्कृत्य या तो अंधेरे में होते हैं या अंधेरे में रखकर किया जाता है। हमारा इष्ट तो सूर्य हैं । सूर्य यानी प्रकाश, प्रकाश अर्थात् ज्ञान। अंधेरा कल्मषता लेकर आता है, यह कालिमा किसी को पसंद नहीं है। रात्रि के अंधकार में सभी चीजें धूमिल हो जाती हैं। सिर्फ काले रंग का साम्राज्य रह जाता है। प्रकाश के अभााव में सब काला ही काला दिखाई देता है। सभी का पृथक अस्तित्व तब दिखता है जब हम प्रकाश करते हैं या सूर्योदय होता है। अत: इससे बचना सब के लिए शुभमंगल होगा । इस प्रकार सम्वत् की शुरूआत कृष्ण पक्ष को छोड़कर शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि से की गयी। हालाकी उपरोक्त बातें ज्योतिषीय सिद्धांत से सम्बन्धित नहीं हैं, यह व्यावहारीक परिदृश्यों पर आधारित मेरा आकलन मात्र है। ज्योतिषीय एवं खगोलशास्त्र में इस विषय पर गूढ़ संविधान-सूत्र हैं, जिसे यहाँ समझा पाना आसान नहीं है।
हिन्दू नववर्ष का यह पर्व ऐसा है जब मनुष्यों और प्रकृति के बीच सुखद सामंजस्य स्थापित होता है। पूरी पृथ्वी में नयी ऊर्जा , नव चेतन, नवीन प्राण संचार होता है क्योंकि यह प्रकृति व ब्रह्माजी के सृष्टिकर्म की वर्षगाँठ होती है। सम्पूर्ण मानव जीवन हर्ष से रोमांचित व आनन्द से आह्लादित हो जाता है। हिन्दू नववर्ष का यह उत्सव हमें वर्षभर चेतना व आनंद से परिपूरित रखता है। आज पाश्चात्य- संस्कृति के चकाचौंध में हम इस महत्वपूर्ण दिन की उपेक्षा करते जा रहे हैं, जो सृष्टिकत्र्ता ब्रह्माजी के प्रति अपराध है। नयी पीढ़ी इस दिन को अनदेखा नही कर सकती। सभी धर्मावलम्बी जनों को आदर और श्रद्धा पूर्वक मनाना चाहिए।
आईए हम मन से नहीं अपितु आत्मा से संकल्प लें (जिसका कोई विकल्प न हो वही संकल्प है) कि चैत्र प्रतिपदा को सृष्टि दिवस के रूप में उत्साह पूर्वक मनाएँगे । इसे आचरण मे उतारकर अन्य भारतीय जनमानस को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे।
जय जय जय हिन्दू नववर्ष ।
देदे हमें सर्व सुख -हर्ष।।
पौराणिकता तुम्हारा आधार।
जिस पर अवलम्बित जीवन- संसार।।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, ” ज्योतिष का सूर्य ” राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2012/03/2069.html

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