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इतनी नफरत —(दहशतगर्दों से मुखातिब)

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इतनी नफरत——( दशतगर्दों से मुखातिब)
इतनी नफरत ?
कहाँ से लाये हो ?
शैतान भी हैरान
है तुम पर
इतनी वहशत ?
कहाँ से लाये हो ?
हर बुत को तोड़ डालोगे,
करोगे नेस्तनाबूद ,
हर खूबसूरत शै को
ये तौरे इबादत ?
कहाँ से लाये हो ?
काट डाली हैं
हर शजर से
सब्ज़ शाखें
हर चमन को
उजाड़ डाला है,
तोड़ कर फ़ेंक दिए हैं
सब गुल
ये अकीदत ?
कहाँ से लाये हो ?
कोई बच्चा ,कोई बूढा,
कोई जवां,कोई मासूम
न बख्शा तुमने
ये ज़लालत ?
कहाँ से लाये हो?
खूं बिखेरा है
हर गली कूचे
क़त्ल इंसानियत
का कर डाला
ये बताओ तो
कौनसी दोज़ख से
ख्वाब जन्नत का
ले के आये हो ?
जानते तुम भी हो,
कि कुछ भी नहीं
हासिल ,दहशत का
क्यूँ मुहब्बत ?
को भूल आये हो?
——ज्योत्स्ना सिंह !

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