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बहकते कदम —

poems and write ups
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बहकते कदम —–
मीता और नीलाक्ष अपने घायल बेटे के सिरहाने आँखों में आंसू लिए खड़े थे! मन ही मन इश्वर से उसके जीवन के लिए दुआ मांग रहे थे ! इसी बेटे पर न्योछावर रहते थे ,एक से एक खिलौना ,ब्रांडेड कपडे ,जूते ,रेडी मेड खाना ,पिज़्ज़ा, नूडल्स, बर्गर ,जो उसकी फरमाइश होती वो ही आता ८ साल का होते न होते प्ले स्टेशन ,आई फोन ,और अब मोबाइल फ़ोन भी ला दिया गया!वो भी अपने आप को अफ़लातून से काम नहीं समझता ! उन्हें अब अपनी गलती का अहसास हो रहा था, बच्चा जैसे उनके हाथ से निकला जा रहा था ! रोज़ स्कूल से कोई न कोई शिकायत आती ! कभी लड़कियों पर फब्तियां कसने की या सीटी बजाने की! और कान में ईयर प्लग लगा कर मटर गश्ती करना उसका रोज़ का शगल था और आज नतीजा उनके सामने था ! लेकिन गलती किसकी थी कदमों के बहकने में!
– —- ज्योत्स्ना सिंह

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