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वृक्ष—-

poems and write ups
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वृक्ष—-
ईश्वर का
मानवता के लिए ,
ईश्वर का
पृथ्वी के लिए ,
हर प्राणी के लिए
वरदान हैं वृक्ष !
शृंगार हैं धरा का
पर बेज़ुबान हैं वृक्ष !
खुद धूप सहते सहते
खड़े रहते छाओं देते !
न बारिश की परवाह
न आँधियों की इनको
सहते है ज़ुल्म सारे
हंस हंस क ये बेचारे
सहते हैं ज़ख़्म फिर भी
देते हैं फूल फल भी !
सहलाते हुए ज़ख्म को
बस मुस्कुराते रहते!
खुद जज़्ब करके ज़हर
हमें आबे ज़मज़म देते
जाने क्यूँ फिर भी हम
दुश्मन बने हैं इनके !
काट ते हैं सौ पर
नहीं एक भी लगाते!
कितनी है इनमे देखो
ज़िंदगी की हसरत ,
हर ज़ख्म से उगाते
ये कोंपलें नई हैं
नई डालियाँ हैं जिनपे
नए फूल और पत्ते !
चिड़िया का नीड इनपे
मधु मक्खियों के छत्ते !
मिलता है शहद,खुशबू
ताज़ी हवा ,और कपडे
ईंधन जो मिलता इनसे
दुनिया चले उसी से
चाहे लकड़ी या कोयला
पेट्रोल या कि डीसल !
गर वृक्ष नहीं होंगे
आओगे तुम ज़मीन पे
छत आसमां बनेगा
बैठो गे कहाँ तुम
सोवोगे किस पलंग पे !
हैं नेमतेये सारी इनके
अकेले दम पे !
आओ इनका करें वंदन
ये हैं तो बस है हम !

——ज्योत्स्ना सिंह !

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