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आतिश—-

poems and write ups
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आतिश ——
मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने यही बयान दिया “हुज़ूर इन लोगों को कोई गलत फहमी हुई है ,हमने कोई बम्ब नहीं बनाया,न किसी को दिया ” ” इन धमाकों से हमारा कोई लेना देना नहीं है” आतिशबाज़ी बनाते हैं हम ” सारा परिेवार मिल कर ” ” पूरा गाँव आपको गवाही देगा ” मजिस्ट्रेट ने उनकी तरफ देखा और ज़मानत के कागज़ों पर दस्तखत
ज़मानत तो मिल गयी थीउन्हें और उनकी बीवी को पर अब्दुल मियाँ सोच रहे थे कि अब क्या होगाऐसाकब तक चलेगा ,इस बार उनका यकीन अपने हमसायों पर से हिल गया था ! आतिश बाज़ी बनाना तो उनका पुश्तैनी धंधा है,हर दशहरा रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले ,दीवाली के पटाखे ,शादी या कोई भी उत्सव या त्यौहार, किसी भी धर्म के लोग हों ,उन्ही से आतिशबाज़ी बनवाते थे! पर अब तो लगता है कि सब लोग आतिश पर ही बैठे हैं ज़रा सी बात पर स्थिति विस्फोटक हो जाती है और आग लग जाती है एक ऐसी आग जो कभी बुझती नहीं सुलगती ही रहती है जिसे भड़काने के लिए बस हवा का एक झोंका ही काफी है !
—-ज्योत्स्ना सिंह !

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