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भूख के पहिये —-

poems and write ups
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प्रतियोगिता के लिए —-
भूख के पहिये —-
“रिक्शा ,रिक्शा ” घोष बाबू ने हाथ रिक्शा को आवाज़ दी !आज पहली तारिख है,घोष बाबू को तनख्वाह मिली है ,जेब भारी है, सोना गाछी जाने को दिल मचल गया, उनका पर ये क्या झमाझम बारिश हो गयी और पूरे इलाके में घुटनो तक पानी भर गया,घर जाने का बिलकुल मन नहीं है चंदा का मुख उनकी आँखों के सामने नाच रहा था ,मौसम सुहाना है पर कीचड ???गलियारे में खड़े हो गए वो ,रिक्शा वाले को आवाज़ लगायी ! रिक्शा वाला ठिठक गया “बाबू 2०० तक लूँगा ,घुटनो घुटनो पानी है रिक्शा खीचने में जान निकल जाती है ” घोष बाबू की आँखें चौड़ी हुईं ,जेब पर हाथ फेर उन्होंने ,पर फिर वो रिक्शा में बैठ गए ! भीगता हांफता रिक्शा वाला रिक्शा खींच रहा था ! भूख के पहिये दोनों को को चला रहे थे, रिक्शा को भी और घोष बाबू को भी.!
——ज्योत्स्ना सिंह !

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