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गुनगनाती हुई सी सुबह फागुनी.

poems and write ups
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कुनमुनाती सी, जाती हुई सर्दियाँ.
दोपहर धूपिया- रात है मखमली
होली आई है ,आने को हैं गर्मियां
सुगबुगाती हुई,लेती अंगडाईयां
गुनगुनाती हुई सी सुबह फागुनी

रंग ले आये हैं, दोस्त भीगे हुए
तुमको भी ना छोड़ेंगे कहते हुए
खींचे ले जा रहे हैं मुझे संग में
रंग लिया है मुझे अपने ही रंग में

रंग में सब रंगे, नीले- पीले हुए
भीगे तन हैं – कपडे भी गीले हुए
तन रंगा संग संग मन भी रंगा
रंग के संग, भंग की भी हैं मस्तियाँ
आज भूले हैं सब अपनी ही हस्तियाँ

माँ तो कल से रसोई से निकली नहीं
जाने क्या क्या पकाती रही सारे दिन
दाल पीसी, बनाए दही के बड़े और
खस्ता सी मीठी गुझियाँ तली
तेल में तिर रहीं थी वो कुछ इस तरह
जैसे हों झील में तैरती मछलियाँ

थक के सब चूर थे और सराबोर थे
होली के रंगों में रंगे ,मखमूर थे
रंग छूटा नहीं,पर छुड़ाया बहुत
माँ परसती रही प्यार से, पूरियां,
भूख सब को लगी थी, सब ने खाया बहुत.

सब के चेहरों का अलग एक अंदाज़ है
आज भूले हैं सब अपनी ही हस्तियाँ
सबने नाचा बहुत सबने गाया बहुत
मिट गयी वो सब जितनी थी दूरियां

होली आई है सब को मुबारक बहुत
खुशिया लायी है सब को मुबारक bahut
हलकी मीठी खुनक ले फिजाओं में लो
आगई गुनगुनाती सुबह फागुनी.

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