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शिक्षक दिवस —–
आज फिर हर वर्ष कि तरह शिक्षक दिवस आया और जाने वाला है! बच्चों ने भी कुछ रस्म अदायगी कर दी है शिक्षकों कि तारीफ कर ,सरकार ने भी कह दिया कि शिक्षक कि भूमिका बहुत अहम होती है! पर क्या सचमुच अब ऐसा है,बहुत तरह के स्कूल हैं ,कहीं तो खस्ता हाल ,सरकारी स्कूल ,जिनकी दीवारें और छतें अब गिरी तब गिरी की हालत में होती हैं ! जहाँ न पंखा है नरोशनी ,जहाँ के ब्लैकबोर्ड सलेटी या सफ़ेद हो चुके हैं ! जहाँ मूलभूत सुविधाएँ जैसे पीने का पानी या शौचालय उपलब्ध नहीं हैं ,जहाँ बच्चे पढ़ने नहीं आते, बस इसलिए आते हैं कि उन्हें ,मुफ्त कपडे,साइकिल और खाना मिलता है ,और शिक्षक भी अक्सर सिर्फ अपनी पगार समेटने आते हैं ! वैसे उनका कोई ज़्यादा दोष है भी नहीं , गर्मियों में गर्मी ,बरसात में टपकती छत और सर्दियों में टूटी खिड़कियों से आती हवा उनका ध्यान पढ़ाने से हटा देती है ,फिर जहाँ एक कमरे में दो तीन कक्षाओं के छात्रों को बिठाना पड़ता है ,चपरसिगिरी से लेकर क्लर्क तक का काम शिक्षक को करना पड़े ! जहाँ बसों में धक्के खाते हुए आना पड़े वहां कोई पढ़ाये भी तो क्या ?/ कुछ लोहा खोटा कुछ लोहार,तो गढ़ा भी क्या जाएगा ??/ दूसरी तरफ शानदार चमचमाते स्कूल ,जहाँ के कमरे वातानुकूलित हैं ,बच्चों से लाख दो लाख रूपए हर तीसरे महीने वसूल किये जाते हैं ! तो शिक्षकों का स्तर भी कुछ बेहतर होगा ! सर्व शिक्षा एक छलावा ही साबित होरहा है क्यूँ नहीं सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का स्तर सुधारा जा सकता ! यदि सभी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो उनका स्तर निश्चय ही सुधरेगा ,तब सभी चाहेंगे की उनके बच्चों का स्कूल अच्छा होना चाहिए,तो जो पैसा स्कूल को बनाने खर्च होना चाहिए वो वहीँ खर्च होगा जहाँ उसे होना चाहिए न कि सब की जेबें भरने में ! अक्सर ऐसा होता है ,कि चीज़ें खरीद ली जाती हैं पर उनका उपयोग नहीं होता ,न उन्हें रखने कि जगह न उनको प्रयोग करने के लिए कुशल कर्मचारी और फिर वो पड़े पड़े बेकार होजाते हैं ! बच्चों पर खर्च किये जाने वालापैसा भी अक्सर उन पर खर्च नहीं किया जाता और किया भी जाता है तो बस उनके हस्ताक्षर लेने के लिए ! ऊप्पर से योजनाएं थोपने के बजाये यदि प्रशासन ,सरकारी स्कूलों में अच्छी सुविधाएँ दे,शिक्षकों से शिक्षकों वाले काम ही कराये क्लर्क या चपरासी वाले नहीं , उनकी प्रतिनियुक्ति घर के आस पास के क्षेत्र में हो,बदले की भावना से उन्हें इधर से उधर न पटका जाए ! वैसे तो अब सरकारी शिक्षको की तनखा काम नहीं है,पर निजी संस्थानों में ये बहुत कम है और वहां काम भी उनसे बहुत अधिक लिया जाता है !और जो शिक्षक मेहमान (गेस्ट टीचर ) के रूपमें लगाये जाते हैं उनका भविष्य तो बिलकुल असुरक्षित ही रहता है!
पहले ये चीज़ें सिर्फ निजी स्कूलों में होती थी कि ख़ाली जगह होते हुए भी लोगों को पक्की नौकरी नहीं दी जाती थी और कुछ तनखा देकर कुछ पर हस्ताक्षर कराये जाते थे पर आज कल ये रिवाज हर जगह ही होगया है !
खैर बहुत सी बातें हैं जो दोनों तरफ से समाधान चाहती हैं ,नियोक्ता की तरफ से भी और शिक्षक की तरफ से भी
नियोक्ता वो सब सुविधाएँ बच्चों और शिक्षकों को दे जिनका प्रावधान है और शिक्षक को अपना कर्तव्य ,कर्तव्य निष्ठां से निभाना चाहिए ! एक अच्छा शिक्षक वही है जो अपने विषय में तो पारंगत हो ही साथ में बच्चों को भी शिक्षा की ओर प्रेरित कर सकें उन्हें सही राह कि ओर अग्रसर होने की दिशा दें !उनमें एक अच्छा इंसान बनने के योग्यता पैदा करें ! आखिर बच्चे ही हमारे देश का भविष्य हैं और शिक्षक उसको सुन्दर बना सकते हैं !
—–ज्योत्स्ना सिंह !
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