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माथे पे लकीरें !

Vichar Gatha
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दिन इतवार,
अनपरा बाजार.
होली का त्यौहार,
मस्तियों का उल्लास
माथे पे लकीरें,
उसकी चिंता बताती थी.
खर्च अधिक पर पैसे कम थे.
कैसे बच्चों को समझाएगी,
कैसे उन्हें मनाएगी.
जब वह अकेली है,
अशिछित लाचार है.
कैसे बीतेगी होली बिना-
नए कपड़ों के,
मीठे पकवान के
नमकीनों के घण के
बीत सकती है जब जिंदगी
बिना हमजोली के.
मना सकते हैं होली-
पुराने कपड़ों में
सादगी भरे खानों में
बिना नमकीन के
भर आये मन में
कठोर नव भाव जब
पा सकते निर्बल
नए आसमान तब.

कमलेश मौर्य
सोनभद्र(उ.प्र.)

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