Vichar Gatha
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(विश्व कविता दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है मेरी पहली कविता के कुछ अंश…)
मेरे बछड़े मेरे प्रदीप
जीवन के तुम प्रदीप
तू तो अमिय पिया था
माता का पहला दूध,
पैहूस खूब पिया था
बलधारी बनना था
धरा- संबल होना था
तेरे पद चापों की प्यासी
थी मेरे खेतों की क्यारी
जोतता धरती का ललाट
फूटती – फसलों के कपाट
मेहरी पाथेंगी -नित
तेरे गोबर की उपलें
पकेगा खूब खाना
जलेगा भरपूर जड़ा
खेलेंगे तेरे साथ ही
यौवन भर खेल कूद
तू कूदेगा पूरे द्वार
बरगद के उस पार….
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