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हिंदी लेखन का आर्थिक परिदृश्य(हिंदी पखवाड़ेपर)

Vichar Gatha
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हिंदी विश्व की चौथी सबसे बड़ी भाषा है. केवल बोलने वाले लोगों की संख्या को
को लिया जाये तो यह आज दूसरी भाषा के तौर पर मानी जा रही है. हम भारतीय लोग इसके शान में कशीदे पड़ने से परहेज भी नही करते.सचमुच यूनिकोड के बाद से हिंदी के विकास वप्रसार में चार चाँद लगे है. आज हिंदी का बाजार बढ़ा है. देशी वेदेशी कंपनियों के बोर्ड तक हिदी कीबात हो रही है. प्रोडक्ट रिसर्च व् मार्केटिंग में हिंदी का मान बढ़ा है. हम हिंदी में लिखते हैं इसके दो कारण है. प्रथम यह की इसमें हम अपने भावों को आसानी से प्रकट कर सकते है.दूसरा यह की यह हमारी मातृ भाषा हैं. यह अपनी संस्कृति व् सभ्यता से लगाव है. बहुतरे ऐसे भारतीय लेखक हैं जो इंग्लिश के विद्वान ओ प्रोफेसर हैं पर वे चाहते हैं की लेखन वे अंग्रेजी में न करके हिंदी में करे .बहुत से मध्यवर्गीय लोग भी हैं जो टूटी फूटी इंग्लिश में भी लिखकर अच्छा पैसा बना ले रहे है,
हमलोग देश में में हिंदी पखवारा मना रहे हैं ऐसे में हिंदी लेखन के आर्थिक परिदृश्य पर एक चिंतन समीचीन होगा. आज भी हिंदी भाषा के लेखक व् प्रकाशक आर्थिक रूप से आजाद नही हैं. हिंदी में स्वतंत्र लेखक होकर जीवन नहीं गुजारा जा सकता है.इसके लिए कहि न कहीं हिंदी प्रदेशों का आर्थिक पिछड़ापन भी दोषी है.हिंदी प्रदेश के लोगों की क्रय शक्ति कम हैं .लोग भाषा प्रेम के बावजूद साहित्य को बढ़ावा देन के लिए पुस्तकें नही खरीद सकते,जबकि अंग्रेजी में यह समस्या नही है क्यों की अंग्रेजी पाठको की क्रय शक्ति ज्यादा है, वे पुस्तके आसानी से खरीद लेते हैं.
धनी होते अंग्रेजी के नए लेखक:
अंग्रेजी के नए धनी लेखकों में अनीता नायर, निकिता सिंह और प्रीती शेनॉय का नाम लिया जा सकता है. इन लेखकों की भाषा पर थोड़ी पकड़ हो गयी इससे यह अच्छा लिखकर पैसे बना ले रही हैं. ये लोग देश के युवाओं को क्या पसन्द आ रहा हैं ऐसे विषय पर लिखकर अपनी पहचान बांये हुए है.इनमे से ज्यादातर लोग महज आर्ट ग्रेजुएट है.कुछ एजुकेशन का आधार भी हिंदी का है.पर अंग्रेजी में लिखने से इनलोगों को प्रसिद्धि जायद मिल रही है.ऐसे में ऐसे लेखक जो दोनों भाषाओं में लिख सकते है. या जो अंग्रेजी के फ्रंटियर लेखक हैं पूरी तौर परअंग्रेजी में शिफ्ट हो जाये यह एक तरह का खतरा है व् हिंदी साहित्य के लिए अच्छा नही हैं.हिंदी में लिखिए – देश ,संस्कृति व् साहित्य प्रेम दिखाइए और जीवन भर भिखारी बने रहिये!क्या आज हिंदी के लेखक होने का यह मतलब नही रह गया है ??शायद यही है!.ऑनलाइन लिखने वाले बृज किशोर सिंह ने ऐसा ही लेख कुछ दिनों पहले लिखकर पेश किया था.
मध्यमार्गी लेखकों की समस्या:
बहुतेरे ऐसे लेखक हैं जो कमोवेश अंग्रेजी में भी लिखकर कुछ स्टार पर आ सकते है.मातृ भाषा प्रेम उन्हें रोकता है.एक्सप्रेशन अगर है तो भाषा साल दो साल में आ ही जाएगी.हिंदी लेखकों को कोई भी कंपनिया व् टॉप एजुकेशनल इंस्टिट्यूट ट्रेनिंग व् विकास के सेशन के लिए नहीं बुलाते.जबकि निकिता सिंह जैसी नवोदित अंग्रेजी लेखिका को आईआईएम जैसे इंस्टिट्यूट में लेक्चर दे चुकी हैं,ऐसे हम हिंदी की तौहीनी माने या देश की प्रगतिशील जनता
की अंग्रेजी की तरफदारी.हिंदी लेखों के साथ दोयम रवैया कब तक चलेगा? हिंदी लेखक कब तक निराला जी की तरह हाथ में चवन्नी लेकर प्रयाग की सड़कों पर सब्जियां ढूंढता रहेगा?

जहाँतक मुझे जानकारी हैं हिंदी का कोई भी लेखक करोड़पति लेखक नही है. जबकि अंग्रेजी में एक अच्छा स्टार्टअप करोड़पति बना देता है.राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय ब्रांड बन जाता है.टेड्स (ट्रेनिंग व् डेव्लोप्मेंट्स ) की बाढ़ आ जाती है.

आपका

कमलेश मौर्य
सोनभद्र (उप)
मेल आईडी : कमलेश_कर @रेडिफमेल.कॉम
(लेख पसन्द आया हो तो कृपया अपने कमेंट्स लिखें. धन्यबाद.)

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