Vichar Gatha
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ए मेरे विद्यालय!
ज्ञान पुंज के आलय.
दिल करता है बार-बार
एक बार फिर तेरी
बगियां में आ जाऊँ.
रह गयी कसक जो जीवन में,
उसको मैं पूरा कर आऊं
रह गए पाठ जो बाकी ,
उनको मैं पूरा पढ़ आऊं
जिनमें भी नम्बर कम आये
उनको में फिर से पढ़ आऊं
एक बार फिर तेरी
बगियां में आ जाऊँ.
पहले था नादान बहुत
पाया मैं नुकसान बहुत
शत्रु- मित्र का भेद नही था.
छला गया मैं अपनों से भी.
पहले था नादान बहुत
कमी ज्ञान की आज सालती
दुखती रग सी मुझे रुलाती
कई बार सपनो में
तेरे चक्कर मैं करता हूँ
कभी गुरूजी क्लास में
कभी परीछा के ज्वर में
मैं भगते-२ आता हूँ
छूट न जाये पेपर मेरा
मैं सपने में डरता हूँ
कुछ भी पढ़ने से
आज भी अच्छा लगता है.
पुरानी यादों से दिल को
बहुत शुकुन मिलता है.
कमलेश मौर्य
सोनभद्र(उ.प्र.)
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