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अन्तरिक्ष में इसरो की बढती उड़ान

''स्वर्ण रेणुकाएँ''
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भले हीं स्वाधीन होने से पहले तथा उसके काफी समय बाद तक भी विश्व पटल पर भारत की छवि मात्र साधू महात्माओं और मदारियों के देश की रही हो, वैज्ञानिक उपलब्धियों के नाम पर उसकी दशा-दिशा तथा गति-गन्तव्य केवल एक बड़े से शून्य के अतिरिक्त और कुछ न रहा हो पर सच तो यही है कि प्रतिभा के मामले में यह अति प्राचीन देश हमेशा से हीं अत्यन्त समृद्ध रहा है, तभी तो एक बार जो इसने विज्ञान के क्षेत्र में अपने कदम आगे बढ़ाए तो इसके आविष्कारों, अन्वेषणों और उपलब्धियों को देखकर पूरी दुनिया ने दाँतों तले ऊँगली दबा ली l सांस्कृतिक रूप से धनी, आस्थाओं और विश्वास वाला यह देश किसी भी क्षेत्र में दुनिया से पिछड़ा हुआ नहीं है, यह इसने तब साबित करके दिखा दिया जब ग्रहों की परिधियों को तोड़ता हुआ देश काल और अन्तराल की हर सीमा को चीर कर यह न केवल अन्य नक्षत्रों के अन्तरसतह पर अपने पग-चिन्ह अंकित कर आया बल्कि सफलता पूर्वक उन सुदूर रहस्मय, अभेध्य-अगराय तारिकाओं के वक्ष पर विजय ध्वजा भी गाड़ कर चला आया जो सदियों तक संसार के लिए एक अकल्पनीय गति, एक घनघोर मिथक हीं हुआ करते थे lआज की समयावधि में भारत न केवल अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में पूर्णतः सक्षम है बल्कि दुनिया के अन्य बहुत से देशों को भी अपनी अन्तरिक्षीय क्षमता से व्यापारिक तथा कई अन्य प्रकार के स्तरों पर सहयोग कर रहा है ।

पहला कदम –
पहली बार भारत ने सन 1963 ई० में तिरुअनन्तपुरम के निकट ” थुम्बा रॉकेट प्रक्षेपण सेन्टर ” की स्थापना कर अन्तरिक्षीय विज्ञान की दिशा में जो अपने कदम आगे बढ़ाये तो दुबारा पीछे पलट कर नहीं देखा l अगला सोपान था भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना यानि Indian Space Research Organisation, संक्षिप्त नाम ‘इसरो’ जिसके मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल था । इसके बाद तो एक एक कर भारत अपने चमत्कारों से पूरे संसार को चमत्कृत करता हीं चला गया l
सन 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्‍थापना की गयी और इसके तुरन्त बाद सन 1972 में अन्तरिक्ष आयोग और अन्तरिक्ष विभाग का गठन कर भारत ने अपने अन्तरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आगे बढाया l

प्रयोगात्मक काल –
70 के दशक में अपने आरम्भिक प्रयोगात्मक काल में सर्वप्रथम सन 1975 में भारत द्वारा ‘आर्यभट्ट’ के सफल प्रक्षेपण के पश्चात जब एक-एक कर यह भास्कर (1979), रोहिणी (1984) और एप्पल के सफल आनुसंधानिक कार्यक्रम को अन्जाम देता चला गया तब समूचे विश्व ने एक बार फिर से चौंककर भारत की तरफ देखा l इसी के साथ भारत प्रक्षेपण वाहन बनाने की दिशा में भी कार्य करने लगा l
पहली बार भारत ने सन 1963 में 21 नवम्बर को अमेरिका द्वारा प्रदत्त राकेट छोड़ कर अन्तरिक्ष की ओर अपना पहला कदम बढाया था पर बहुत जल्द हीं यह अपने मेहनत और लगन से तकनीकी ज्ञान को विकसित करते हुए आगे हीं आगे बढ़ कर स्वदेशी कृत्रिम उपग्रहों केनिर्माण में सिद्धहस्त हो गया l

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का इतिहास –
वैसे तो भारत का अन्तरिक्षीय कार्यक्रमों का अनुभव बहुत पुराना है l परन्तु देखा जाय तो वस्तुतः भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिनको भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक भी कहा गया है । सन 1957 में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भांपा था ।
भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य के लिए वैज्ञानिक विकास को अहम् हिस्सा माना था ने सन 1961 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा था । भारतीय परमाणु प्रोग्राम के जन्मदाता होमी जहाँगीर भाभा (उस वक़्त परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक ) ने सन 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार)का गठन किया था, जिसमें डॉ॰ विक्रम साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया गया था l जैसे-जैसे अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम बढ़ता गया तो इसे परमाणु उर्जा विभाग से विभाजित कर, अपना अलग ही सरकारी विभाग दे दिया गया ।
शुरुआत से ही, उपग्रहों को भारत में लाने के फायदों को ध्यान में रखते हुए साराभाई और इसरो ने मिलकर एक स्वतंत्र प्रक्षेपण वाहन का निर्माण किया, जो कि कृत्रिम उपग्रहों को कक्ष में स्थापित करने, तथा भविष्य में वृहत प्रक्षेपण वाहनों में निर्माण के लिए आवश्यक अभ्यास उपलब्ध कराने में सक्षम था l
जैसे-जैसे भारत प्रक्षेपास्त्रों की विकास यात्रा की तकनीक के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए सचेष्ट होता गया अन्य देशों के सर में दर्द होने लग गया और जब भारत ने पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बने उपग्रह इन्सैट-2A का सफल प्रक्षेपण किया तो अमेरिका भी सतर्क हो गया और तब अमेरिका द्वारा 1992 में भारतीय संस्था इसरो और सोवियत संस्था ग्लावकास्मोस पर प्रतिबंध की धमकी दी गयी फलस्वरूप सोवियत संघ भारत को सहयोग करने से पीछे हट गया । इस प्रकार इन तरह तरह की धमकियों का परिणाम यह हुआ कि भारत ने दो वर्षों के अथक शोध के पश्चात् अनुचित धमकियों के साए से निकल कर सोवियत संघ से बेहतर खुद की स्वदेशी तकनीक विकसित कर ली l

उपलब्धियाँ –

शुरुआत आर्यभट्ट से –
भारत के प्राचीन गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम का यह उपग्रह भारत का पहला उपग्रह था जो कि सौर भौतिकी पर परीक्षण करने के लिए सन 1975 को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से लॉन्च किया गया था इस के बाद भास्कर, रोहिणी, एप्पल समेत अनेकों सफलप्रक्षेपण करने के पश्चात अभी 2015 में 29 सितंबर को खगोलीय शोध को समर्पित भारत ने अपनी पहली वेधशाला एस्ट्रोसैट का सफल प्रक्षेपण किया है । इसके पहले 24 सितंबर, 2014 को 43.43 मीटर ऊँचे जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन वाले मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने इतिहास रच दिया था l यह अन्तरिक्ष यान 5 नवंबर, 2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया था जो 1 दिसंबर, 2013 को पृथ्वी के गुरूत्वाकषर्ण से बाहर निकल गया था । अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ का मंगलयान‘मावेन’ 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था । काबिलेगौर है कि भारत के एम.ओ.एम. (MOM) की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है । इस कामयाबी के साथ ही भारत अंतरिक्ष के रहस्यमय संसार में अपना नाम दर्ज़ कराने वाला दुनिया का चौथादेश बन गया है । इसके साथ हीं भारत निर्मित सहश्त्रों उपग्रहों में से भारतीय रिमोट सेंसिंग (IRS) उपग्रह प्रणाली आज विश्व का सबसे बड़ा कार्यवाही दूरसंवेदी उपग्रहों का समूह है l
जिसके अन्तर्गत वर्तमान में दस क्रियाशील उपग्रह अपनी कक्षा में हैं l भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (INSAT) एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ा घरेलू दूरसंचार उपग्रह है इसमें भी वर्तमान में दस उपग्रह प्रयोग में हैं l ये सभी उपग्रह महासागर और मौसम विज्ञान प्रतिचित्रण और मानचित्रण विभिन्न विषयगत क्षेत्रों में सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों से संबंधित विशिष्ट मुद्दों का समाधान करने के साथ हीं साथ दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, टेली मेडिसिन, मौसम विज्ञान, आपदा चेतावनी, टेली एजुकेशन आदि क्षेत्रों में अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं ।

रचा इतिहास –
इसरो की सबसे बड़ी उपलब्धि उस वक़्त सामने आई जब इसने चन्द्रमा अभियान के छः वर्ष के भीतर-भीतर सफलतापूर्वक लाल ग्रह की कक्षा में मंगलयान (mars orbitar) को स्थापित कर लिया l जहाँ अमेरिका का भी लाल-ग्रह मंगल पर पहुँचने की पहली छः कोशिशें नाकामयाब रहीं थी वहीँ भारतीय मंगलयान का लगभग अड़सठ करोड़ किमी का सफ़र तय कर पहले हीं प्रयास में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचना भारत और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के लिए एक कालजयी घटना है l और इसी के साथ 24 सितम्बर 2014 को भारत मंगल पर कदम रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया l
आज अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत के निरन्तर बढ़ते तकनीक ज्ञान की गतिशीलता पूरी दुनिया पर विदित हो चुका है l वह दिन दूर नहीं जब अपनी लगन और मेहनत से भारत अपनी विकास यात्रा को अहर्निश भव्यतम बनाते हुए अन्तरिक्षीय उपलब्धियों में अव्वल स्थान पर होगा l

– कंचन पाठक.
लेखिका, कवियित्री, स्तंभकार

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