जिन्दगी
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रातो को उठ कर रोते हैं
तारों की छावं में ,
यों सह रहे हैं गम कि
किसी को खबर नहीं |
दुनिया में रह कर रहते हैं
दुनिया से दूर-दूर ,
यों जी रहे हैं हम कि
किसी को खबर नहीं |
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कल मैं सोई तो स्वप्न आया,
जिंदगानी है इक ख्वाब हंसीं
आंख खुली तो हुआ एहसास
जिंदगी सिवाए फ़र्ज़ कुछ नहीं |
कान्ता गोगिया
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