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कोई छोर

जिन्दगी
जिन्दगी
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गहरी राज़ की बातों का
एकाकी सूनापन
ले जाता है किस और ….

मुड़ के देखती हूँ जब,
बिछुड़ी मंज़िल को
नजर आता नहीं कोई छोर |
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कान्ता गोगिया

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